10 नागरिक शास्त्र

संघवाद

कांग्रेस की मोनोपॉली के समय:

आजादी के बाद एक लंबे समय तक भारत के अधिकांश हिस्सों में केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हुआ करती थी। यह कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर था। उस दौर में ऐसा अक्सर होता था जब केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार के अधिकारों की अवहेलना की जाती थी। छोटी से छोटी बात पर किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता था।

गठबंधन सरकार के दौर की स्थिति:

1989 के बाद कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर समाप्त हुआ। उसके बाद केंद्र में गठबंधन सरकार का दौर शुरु हुआ। इससे राज्य सरकार की स्वायत्तता को अधिक सम्मान मिलने लगा और सत्ता में साझेदारी भी बढ़ी। इससे भारत में संघीय व्यवस्था को और अधिक बल मिला।

भारत में भाषायी विविधता:

1991 की जनगणना के अनुसार भारत में 1500 अलग-अलग भाषाएँ हैं। इन भाषाओं को कुछ मुख्य भाषाओं के समूह में रखा गया है। उदाहरण के लिये भोजपुरी, मगधी, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, भीली और कई अन्य भाषाओं को हिंदी के समूह में रखा गया है। विभिन्न भाषाओं के समूह बनाने के बाद भी भारत में 114 मुख्य भाषाएँ हैं। इनमें से 22 भाषाओं को संविधान के आठवें अनुच्छेद में अनुसूचित भाषाओं की लिस्ट में रखा गया है। अन्य भाषाओं को अ-अनुसूचित भाषा कहा जाता है। इस तरह से भाषाओं के मामले में भारत दुनिया का सबसे विविध देश है।

भारत में विकेंद्रीकरण:

भारत एक विशाल देश है, जहाँ दो स्तरों वाली सरकार से काम चलाना बहुत मुश्किल काम है। भारत के कुछ राज्य तो यूरोप के कई देशों से भी बड़े हैं। जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश तो रूस से भी बड़ा है। इस राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बोली, खानपान और संस्कृति की विविधता देखने को मिलती है।

कई स्थानीय मुद्दे ऐसे होते हैं जिनका निपटारा स्थानीय स्तर पर ही क्या जा सकता है। स्थानीय सरकार के माध्यम से सरकारी तंत्र में लोगों की सीधी भागीदारी सुनिश्चित होती है। इसलिए भारत में सरकार के एक तीसरे स्तर को बनाने की जरूरत महसूस हुई।

1992 में विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। संविधान में संशोधन किया गया ताकि लोकतंत्र के तीसरे स्तर को अधिक कुशल और शक्तिशाली बनाया जा सके। स्थानीय स्वशासी निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

अब स्थानीय निकायों के नियमित चुनाव करवाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य हो गया है।

इन निकायों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के लिये सदस्यों और पदाधिकारियों के सीट रिजर्व होते हैं।

सभी सीटों का कम से कम एक तिहाई महिलाओं के लिये आरक्षित होता है।

पंचायत और म्यूनिसिपल के चुनावों को सुचारु रूप से करवाने के लिये हर राज्य में एक स्वतंत्र ‘राज्य चुनाव आयोग’ का गठन किया गया है।

पंचायती राज:

राज्य सरकारों को अपने राजस्व में से कुछ हिस्सा इन स्थानीय निकायों को देना होगा। यह हिस्सा अलग अलग राज्यों में अलग-अलग हो सकता है। ग्रामीण स्थानीय स्वशाषी निकाय को आम भाषा में पंचायती राज कहते हैं।

हर गाँव (कुछ राज्यों में गाँवों का एक समूह) में एक ग्राम पंचायत होती है। यह कई वार्ड सदस्य (पंच) का एक समूह होता है। पंचायत के अध्यक्ष को सरपंच कहते हैं।

पंचायत के सदस्यों का चुनाव उस पंचायत में रहने वाले वयस्कों द्वारा किया जाता है।

स्थानीय स्वशासी संरचना जिला के स्तर तक होती है।

पंचायत समिति: कुछ ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक पंचायत समिति या प्रखंड या मंडल बनता है। इस मंडली के सदस्यों का चुनाव उस क्षेत्र के सभी पंचायतों के सदस्यों द्वारा किया जाता है।

जिला परिषद: एक जिले की सारी पंचायत समितियाँ मिलकर जिला परिषद का निर्माण करती हैं। जिला परिषद के अधिकतर सदस्य चुनकर आते हैं। उस जिले के लोक सभा के सदस्य, विधान सभा के सदस्य और जिला स्तर के अन्य निकायों के कुछ अधिकारी भी जिला परिषद के सदस्य होते हैं। जिला परिषद का राजनैतिक मुखिया जिला परिषद का अध्यक्ष होता है।

नगरपालिका: इसी तरह से शहरी क्षेत्रों में भी स्थानीय स्वशासी निकाय होती है। शहरों में नगरपालिका का गठन होता है। बड़े शहरों में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन का गठन होता है। इनके सदस्य (वार्ड काउंसिलर) लोगों द्वारा चुने जाते हैं। फिर ये सदस्य अपने चेअरमैन का चुनाव करते हैं। म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में इसे मेयर कहा जाता है।