10 नागरिक शास्त्र

जाति, धर्म और लैंगिक मसले

जाति और राजनीति

जाति व्यवस्था भारतीय समाज की अनूठी खासियत है। ऐसी व्यवस्था किसी अन्य देश में देखने को नहीं मिलती है। जाति व्यवस्था के अनुसार किसी भी जाति का एक तय पेशा होता है। उस पेशे का स्थानांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को होता है। अक्सर किसी भी जाति के लोगों में अपने समुदाय या जाति विशेसः के प्रति गहरा लगाव होता है। कुछ जातियों को ऊँची जाति माना जाता है तो कुछ को नीची जाति।

जाति पर आधारित पूर्वाग्रह:

हमारे समाज में जाति पर आधारिक कई पूर्वाग्रह हैं। अभी भी ग्रामीण परिवेश में नीची जाति के लोगों को ऊँची जाति के लोगों के सामाजिक या धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने की अनुमति नहीं होती है। ऊँची जाति के कई लोग तो दलितों की परछाई से भी दूर रहते हैं।

लेकिन कई सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कारण जातिगत विभाजन धूमिल पड़ते जा रहे हैं। आर्थिक विकास, तेजी से होता शहरीकरण, साक्षरता, पेशा चुनने की आजादी और गाँवों में जमींदारों की कमजोर स्थिति के कारण जातिगत विभाजन कम होते जा रहे हैं।

अभी भी जब शादी करने की बात आती है तो जाति एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है। लेकिन जीवन के अन्य संदर्भ में भारत में जाति का प्रभाव खत्म होता जा रहा है।

सदियों से उँची जाति के लोगों को शिक्षा के बेहतर अवसर मिले इसलिये उन्होंने आर्थिक रूप से अधिक तरक्की की। पिछड़ी जाति के लोग अभी भी सामाजिक और आर्थिक विकास के मामले में पीछे चल रहे हैं।

राजनीति में जाति

भारत की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। किसी भी चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन उस क्षेत्र की जातीय समीकरण के आधार पर होता है।

हर जाति के लोग राजनैतिक सत्ता में अपना हक लेने के लिये अपनी जातिगत पहचान को अलग अलग तरीकों से व्यक्त करने की कोशिश करते हैं।

चूँकि जातियों की बहुत बड़ी संख्या है इसलिये कई जातियों ने मिलकर अपना एक खास गठबंधन बना लिया है ताकि राजनैतिक मोलभाव में उन्हें बढ़त मिल सके।

जाति समूहों को मुख्य रूप से ‘अगड़े’ और ‘पिछड़े’ वर्गों में बाँटा जा सकता है।

लेकिन जातिगत विभाजन से अकसर समाज में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और हिंसा भी हो सकती है।

जातिगत असामनता

जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। उँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं, और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।

गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों की जनसंख्या का प्रतिशत
जाति ग्रामीणशहरी
अनुसूचित जनजाति45.8%35.6%
अनुसूचित जाति35.9%38.3%
अन्य पिछड़ी जातियाँ27%29.3%
मुस्लिम अगली जातियाँ26.8%34.2%
हिंदू अगली जातियाँ11.7%9.9%
ईसाई अगली जातियाँ9.6%5.4%
सिख अगली जातियाँ 0%4.9%
अन्य अगली जातियाँ16%2.7%

REF: NSSO 55th round 1999 - 2000