10 इतिहास

उपन्यास समाज और इतिहास

उपन्यास का उदय

साहित्य का एक आधुनिक रूप उपन्यास है। प्रिंट टेक्नॉलोजी के आने से उपन्यास का जन्म हुआ। इस नई टेक्नॉलोजी के कारण उपन्यास लोगों के एक बड़े समूह तक पहुँच पाया।

उपन्यास लिखने की शुरुआत सत्रहवीं सदी में हुई। यह परिपाटी अठारहवीं सदी में जाकर फली फूली। उपन्यास के नये पाठकों में इंग्लैंड के पारंपरिक अभिजात वर्ग के अलावा निम्न वर्ग के लोग भी थे।

पाठकों की बढ़ती संख्या के साथ लेखकों की आमदनी भी बढ़ने लगी। इससे लेखकों को अभिजात और कुलीन वर्ग के संरक्षण से आजादी मिली। लेखक अब अधिक स्वतंत्र होकर लिखने लगे। अब लेखक को इस बात की पूरी छूट थी कि वह अपनी लेखन शैली में मनचाहे बदलाव कर सकता था।

प्रकाशन बाजार

शुरु शुरु में उपन्यास इतने महंगे होते थे कि गरीब लोगों की पहुँच से दूर होते थे। 1740 में ऐसे पुस्तकालयों का प्रचलन शुरु हुआ जो किराये पर उपन्यास देते थे। इससे उपन्यास आम लोगों की पहुँच में आ गये। प्रिंट टेक्नॉलोजी में कई सुधारों के साथ साथ मार्केटिंग के नये तरीकों से उपन्यास की बिक्री बढ़ी और दाम कम हुए। उदाहरण के लिए फ्रांस के कुछ प्रकाशकों को ये समझ में आ गया कि उपन्यास को घंटे के हिसाब से किराया पर देने से बहुत मुनाफा कमाया जा सकता है।

उपन्यासों में चित्रित दुनिया अधिक वास्तविक होती थी और इसलिए विश्वसनीयता की सीमा में आती थी। उपन्यास पढ़ते समय पाठक आसानी से उपन्यास के पात्रों की दुनिया में चला जाता था। उपन्यास ने लोगों को एकांत में पढ़ने की आजादी दी। उपन्यास ने लोगों को इस बात की आजादी भी दी कि वे सार्वजनिक परिवेश में पढ़ सकें और कहानी पर चर्चा कर सकें। लोग अक्सर उपन्यास के चरित्रों के जीवन से अपने आप को आत्मसात कर लेते थे।

1836 में चार्ल्स डिकेन्स की पिकविक पेपर्स को एक पत्रिका में धारावाहिक के रुप में प्रकाशित किया गया। पत्रिकाएँ सस्ती होती थीं और चित्रों से भरपूर होती थीं। धारावाहिक के रूप में आने से लोगों में सस्पेंस बना रहता था जिसे लोग पसंद भी करते थे। वे कहानी के अगले प्लॉट के इंतजार में आसानी से अगले सप्ताह के आने का इंतजार करते थे।

उपन्यास की दुनिया

पुराने दौर के साहित्य के विपरीत, उपन्यासों में राजा या साम्राज्य की कहानी नहीं होती थी। उपन्यासों में साधारण लोगों की बातें होती थीं। उन्नीसवीं सदी में यूरोप में औद्योगिक युग शुरु हो चुका था। औद्योगीकरण से एक ओर नई उम्मीदें जगी थीं वहीं दूसरी ओर मजदूरों और शहरी जीवन की समस्याएँ भी खड़ी हुई थीं। मुनाफे की होड़ में हमेशा साधारण मजदूर ही मार खाता था। कई उपन्यासकारों ने नये शहरों में रहने वाले आम लोगों के इर्द गिर्द कहानी बुनी थी। उस काल के जाने माने लेखकों में चार्ल्स डिकेन्स और एमिल जोला का नाम शुमार है।

समुदाय और समाज

उपन्यास में समाज में होने वाले बदलावों की झलक मिलती है। कई उपन्यासकारों ने शहरी जीवन की समस्याओं के बारे में लिखा। कई लोगों ने आधुनिक टेक्नॉलोजी के कारण ग्रामीण जीवन में आने वाले बदलावों के बारे में लिखा। लोग अधिक से अधिक पेशेवर होते जा रहे थे और व्यक्तिगत मूल्यों का ह्रास हो रहा था। उपन्यासों में इन सभी बदलावों के बारे में लिखा जाता था।

थॉमस हार्डी का उपन्यास मेयर ऑफ कास्टरब्रिज (1886) ग्रामीण परिवेश पर लिखा गया उपन्यास है। हार्डी के उपन्यास में आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल हुआ है। आम बोलचाल की भाषा का उपयोग करके हार्डी ने उस जमाने में रहने वाले आम लोगों का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है।

नई महिला

अठारहवीं सदी में मध्यम वर्ग अधिक संपन्न हो चुका था। महिलाओं को अब खाली समय मिलने लगा जिसका इस्तेमाल वे उपन्यास पढ़ने या लिखने में कर सकती थीं। उपन्यासकारों ने महिलाओं के जीवन पर लिखना शुरु किया। कई उपन्यास घरेलू जीवन के बारे में थे। घरेलू जीवन के बारे में लिखने के मामले में किसी महिला लेखिका को पुरुष लेखक के मुकाबले अधिक दक्षता हासिल थी। कई महिला उपन्यासकारों ने समाज के स्थापित मान्यताओं पर सवाल उठाने शुरु कर दिये। कई उपन्यासकारों ने समाज में उपस्थित पाखंडों पर भी सवाल उठाया।

युवाओं के लिए उपन्यास

युवा लड़कों के लिए लिखे गये उपन्यासों में हीरो की छवि को प्रमुखता दी जाती थी। ऐसे उपन्यास का हीरो एक शक्तिशाली, आदर्श, स्पष्टवादी और बहादुर इंसान होता था। चूँकि यह उपनिवेशों के विस्तार का समय था इसलिए ज्यादातर उपन्यासों में उपनिवेशवाद की बड़ाई की जाती थी। आर एल स्टीवेंसन की ट्रेजर आइलैंड (1883) और रुडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक (1894) काफी मशहूर हुई थी। अंग्रेजी साम्राज्य के चरम पर जी ए हेनरी के ऐतिहासिक साहसिक उपन्यास काफी लोकप्रिय हुए थे।

उपनिवेशवाद के बाद

उपनिवेशवाद के समय अधिकांश उपन्यासों में उपनिवेशवाद की प्रशंसा की गई थी और इसे जीत के रूप में दिखाया गया था। बाद में बीसवीं सदी में कुछ उपन्यासों में उपनिवेशी शासन के नकारात्मक पहलुओं को भी दिखाया गया। जोसफ कॉनरैड (1857 – 1924) ऐसे ही एक उपन्यासकार थे।