10 इतिहास

औद्योगीकरण का युग

इस अध्याय की मुख्य बातें:

आदि औद्योगीकरण

हममें से ज्यादातर लोग बड़ी मशीनों और बड़े कारखानों को औद्योगीकरण की निशानी समझते हैं। लेकिन बड़ी मशीनों के आने से पहले ही यूरोप में (खासकर ब्रिटेन में) औद्योगीकरण को गति मिल रही थी। बड़ी मशीनों, बड़े पैमाने पर उत्पादन और कारखानों के ठीक पहले के दौर को आदि-औद्योगीकरण कहा जाता है। इस अवधि में गाँवों में सामान बनते थे जिसे शहर के व्यापारी खरीदते थे।

व्यापारियों का गाँवों पर ध्यान देने का कारण:

शहरों में ट्रेड और क्राफ्ट गिल्ड बहुत शक्तिशाली होते थे। इस प्रकार के संगठन प्रतिस्पर्धा और कीमतों पर अपना नियंत्रण रखते थे। वे नये लोगों को बाजार में काम शुरु करने से भी रोकते थे। इसलिये किसी भी व्यापारी के लिये शहर में नया व्यवसाय शुरु करना मुश्किल होता था। इसलिये वे गाँवों की ओर मुँह करना पसंद करते थे।

ब्रिटेन में आदि औद्योगीकरण के लक्षण:

शहर के व्यापारी गाँवों के किसानों को पैसे देते थे। वे किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिये उत्पाद बनाने के लिये प्रोत्साहित करते थे।

गाँवों में कॉमंस की जमीन पर बाड़े लगाये जाने लगे जिससे छोटे किसानों के लिए जमीन कम पड़ने लगी थी। यह याद रखना चाहिए कि पहले छोटे किसान कॉमंस की जमीन पर थोड़ी बहुत खेती करते थे, वहाँ से जलावन लेते थे और अपने मवेशियों के लिए चारा इकट्ठा करते थे। लेकिन अब छोटे किसानों के लिए आय और संसाधनों के स्रोत कम पड़ते जा रहे थे। इसलिये किसानों को आय के अतिरिक्त साधनों की तलाश थी।

आदि औद्योगीकरण के समय विनिमयों का एक जाल फैला हुआ था जिसे व्यापारी लोग नियंत्रित करते थे। सामान का उत्पादन वैसे किसान करते थे जो कारखानों में काम करने की बजाय अपने घरों में काम करते थे। साथ में वे अपने खेतों पर ध्यान दे पाते थे। अंतिम उत्पाद कई हाथों से होता हुआ लंदन के बाजारों तक पहुँचता था। फिर इन उत्पादों को लंदन से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भेजा जाता था।

कारखानों की शुरुआत

सबसे पहले इंगलैंड में कारखाने 1730 के दशक में बनना शुरु हुए। अठारहवीं सदी के आखिर तक पूरे इंगलैड में जगह जगह कारखाने दिखने लगे। शुरुआती औद्योगीकरण कपास के कपड़ों के क्षेत्र में हुआ। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ब्रिटेन में कच्ची कपास का आयात 1760 में 2.5 मिलियन पाउंड से बढ़कर 1787 में 22 मिलियन पाउंड हो गया।

कारखानों से लाभ: कारखानों के खुलने से कई फायदे हुए। श्रमिकों की कार्यकुशलता बढ़ गई। जो मजदूर पहले हथकरधे से सीमित मात्रा में उत्पाद बना पाता था वही अब नई मशीनों की सहायता से आधिक मात्रा में और बेहतर उत्पाद बनने लगा। कारखानों में श्रमिकों की निगरानी और उनसे काम लेना अधिक आसान हो गया, क्योंकि किसी भी कारखाने में एक ही छत के नीचे बड़ी संख्या में मजदूर काम कर रहे थे।