7 नागरिक शास्त्र

समानता

समानता: इस शब्द का मतलब है कि हर व्यक्ति एक समान है चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, लिंग या आर्थिक हैसियत का हो।

एक व्यक्ति एक वोट: भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर वयस्क को एक वोट देने का अधिकार है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, लिंग या आर्थिक हैसियत का हो।

इसका मतलब यह हुआ कि चाहे वह भारत के राष्ट्रपति हों या फिर कोई दिहाड़ी मजदूर, हर व्यक्ति के वोट की कीमत एक ही है। समान वोट के इस अधिकार को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहते हैं। भारत में 18 वर्ष से अधिक आयु वाला व्यक्ति वयस्क माना जाता है।

लेकिन वोट देने के इस अधिकार के बावजूद हमारे देश में कई तरह की असमानताएँ देखने को मिलती हैं। कई बार ऐसी असमानताओं के कारण कुछ लोग अपने मताधिकार का उपयोग नहीं कर पाते हैं।

असमानता का आधार

हमारे देश में जिन कारणों से असमानता व्याप्त है उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं।

काम पर जाने की जरूरत

कई लोग गरीबी और अकुशलता के कारण असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। असंगठित क्षेत्र में अक्सर मालिक की मर्जी के मुताबिक किसी को नौकरी पर रख लिया जाता है तो किसी को नौकरी से निकाल दिया जाता है। कई बार तो ऐसा होता है कि कोई मजदूर अगर एक दिन भी काम पर नहीं जाता है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। इसलिए अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए मजदूरों को रोज काम पर जाना पड़ता है और वे वोट देने के लिए छुट्टी नहीं ले पाते हैं। यदि उनके घर में कोई बीमार पड़ जाए तो उसकी देखभाल के लिए भी छुट्टी नहीं मिल पाती है।

जातिगत असमानता

जाति व्यवस्था एक ऐसा कड़वा सच है जिससे शायद ही कोई भारतीय अनजान होगा। यदि आप गाँव में रहते हैं तो बहुत छोटी उम्र में ही आपको जाति व्यवस्था के बारे में पता चल जाता है। शहरों में रहने वाले लोगों को शायद लगता हो कि जात पात कुछ भी नहीं है। लेकिन जब आप किसी अखबार में वैवाहिक विज्ञापन के पन्ने पर गौर करेंगे तो पता चलेगा कि पढ़े लिखे वर्ग के दिमाग में भी जाति व्यवस्था ने अपनी जड़ें जमाई हुई है।

ओम प्रकाश वाल्मीकि एक दलित लेखक हैं। अपनी आत्मकथा जूठन में उन्होंने अपनी जाति के कारण अपने ऊपर हुए अत्याचारों के बारे में लिखा है। बचपन में उन्होंने कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक यातनाएँ झेली थीं, जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं।

दलित

अति पिछड़ी जाति के लोगों को दलित कहा जाता है। दलित शब्द का अर्थ है टूटा या कुचला हुआ। अति पिछड़ी जाति के लोगों को भयानक यातनाएँ झेलनी पड़ी थीं और आज भी इसके कई उदाहरण सामने आते हैं। दलितों से ऐसे काम करवाए जाते थे जो सबसे घृणित माने जाते थे, जैसे मैला साफ करना, मरे हुए पशुओं को गाँव से बाहर फेंकना, आदि। दलितों को गाँव से बाहर रहने की इजाजत थी। वे कुँए या नदी के आम घाटों से पानी नहीं ले सकते थे। यदि किसी सवर्ण पर दलित की छाया भी पड़ जाती थी तो इसे अशुभ माना जाता था। इसलिए इन लोगों ने अपने लिए इस शब्द को चुना था।

धार्मिक असमानता

भारत में कई धर्मों के लोग रहते हैं, जिनमें हिंदुओं की जनसंख्या सबसे अधिक है। अन्य धर्मों के लोगों का प्रतिशत बहुत कम है, यानि वे अल्पसंख्यक हैं। अक्सर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ असमान व्यवहार होता है। अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को किराये पर मकान लेने, स्कूल में दाखिला लेने, नौकरी मिलने, आदि में बड़ी परेशानी होती है।

लैंगिक असमानता

हमारा समाज एक पितृप्रधान समाज है, जहाँ पुरुषों को महिलाओं से बेहतर माना जाता है। इसलिए महिलाओं के साथ असमान व्यवहार होता है। आज भी कई परिवारों में बेटी का जन्म अशुभ माना जाता है। कई लोग कन्या भ्रूण हत्या की साजिश करके बेटी को गर्भ में ही मार देते हैं। कई परिवारों में लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता है और कम उम्र मे ही उनकी शादी कर दी जाती है। कई परिवारों में महिलाओं को घर की चारदीवारी में कैद करके रखा जाता है।

किसी भी तरह की असमानता से व्यक्ति के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है। हर व्यक्ति को एक जैसा सम्मान मिलना चाहिए।

भारतीय लोकतंत्र में समानता

भारत का संविधान हर नागरिक को एक समान दर्जा देता है। इसका मतलब है कि भारत के कानून की नजर में हर व्यक्ति एक समान है चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, समुदाय, लिंग, सामाजिक पृष्ठभूमि या शैक्षिक पृष्ठभूमि से हो।

लोगों की मानसिकता बदलने में सैंकड़ो वर्ष लग जाते हैं। इसलिए केवल कानून बनाने से बहुत कुछ नहीं बदलता है। फिर भी कुछ कानूनों के डर से लोग एक दूसरे को समान रूप से देखने और सम्मान देने की कोशिश जरूर करते हैं।

अनुच्छेद 15: संविधान में प्रावधान

समानता को लेकर भारत के संविधान में कुछ प्रावधान हैं, जो नीचे दिए गए हैं।

भारत सरकार ने संविधान में दिए गए समानता के अधिकार को अमल में लाने के लिए दो कदम उठाए हैं।

  1. पहला कदम है कुछ ऐसे नियम बनाना ताकि लोगों के इस अधिकार की रक्षा की जा सके। यदि किसी दलित के साथ कोई भेदभाव करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होती है और उसे सजा मिलती है।
  2. दूसरा कदम है सरकार द्वारा ऐसी योजनाएँ चलाना जिससे समाज के पिछ्ड़े वर्ग के लोगों को भी आगे बढ़ने का मौका मिले। मध्याह्न भोजन एक ऐसा कार्यक्रम है जिसकी मदद से गरीब तबके के बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया जाता है। पिछड़े वर्ग के लोगों को बराबरी का मौका देने के उद्देश्य से सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में उन्हें आरक्षण दिया जाता है।