7 नागरिक शास्त्र

बाजार में एक कमीज

बाजार में बिकने के लिए जो कमीज रखी होती है, वह कपास के उत्पादन के बाद एक लंबी यात्रा तय करके सुपरमार्केट में पहुँचती है। कमीज की इस यात्रा में विक्रेता और खरीददारों की एक लंबी चेन होती है।

कपास किसान का जीवन

अधिकतर किसानों के पास जमीन कम होती है। उन्हें कपास की अच्छी फसल के लिए जीतोड़ मेहनत करनी पड़ती है। खेत से कपास चुनने का काम बहुत मुश्किल भरा होता है। कपास के सभी डोडे एक साथ नहीं फूटते हैं। इसलिए कपास चुनने में कई दिनों का समय लग जाता है।

कपास की खेती में अत्यधिक संसाधन लगते हैं, जैसे कि खाद और कीटनाशी। इन चीजों को खरीदने के लिए किसानों को अक्सर स्थानीय व्यवसायी से कर्ज लेना पड़ता है। ये व्यवसायी ब्याज की बहुत ऊँची दर माँगते हैं। साथ में वे यह शर्त भी रखते हैं कि किसान अपने कपास को उसी व्यवसायी को बेचेगा और किसी अन्य व्यापारी के पास नहीं जाएगा। ऐसे में किसान को बाजार से बहुत कम कीमत पर कपास बेचना पड़ता है।

व्यापारी अपने इलाके में काफी प्रभावशाली होते हैं। किसानों को कई बार संकट के समय (शादी, पढ़ाई, बिमारी, आदि) इन्हीं व्यापारियों से कर्ज लेना पड़ता है। जिस साल फसल खराब होती है उस साल गुजारा करने के लिए भी किसानों को इन्हीं व्यापारियों से उधार लेना पड़ता है।

APMC

राज्य सरकारों ने कृषि उपज विपणन समिति (एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) का गठन किया है। एपीएमसी दो सिद्धांतों पर काम करती है।

एपीएमसी एक्ट के अनुसार, हर राज्य को कई मंडियों में बाँटा जाता है, जो राज्य के अलग-अलग हिस्सों में रहती हैं। इन मंडियों में किसानों को निलामी द्वारा अपने उत्पाद बेचने होते हैं। मंडी में काम करने के लिए किसी भी व्यापारी को लाइसेंस बनवाने की जरूरत पड़ती है। थौक विक्रेता या खुदरा व्यापारी या फूड प्रॉसेसिंग कम्पनी किसानों से सीधे सीधे माल नहीं खरीद सकती है। इन सबको मंडी से ही माल खरीदना होगा।

इरोड का कपड़ा बाजार

तामिल नाडु के इरोड में सप्ताह में दो दिन कपड़े का बाजार लगता है। यह दुनिया के सबसे विशाल बाजारों में से एक है। यहाँ पर कपड़ों की बड़ी विविधता देखने को मिलती है। इस बाजार में काम करने वाले लोग किसी न किसी रूप में इनमें से कोई एक हो सकते हैं।

बुनकर: आस पास के गाँवों के बुनकरों द्वारा बनाया कपड़ा इस बाजार में बिक्री के लिए आता है। व्यापरियों की जरूरत के अनुसार ये बुनकर कपड़े बुनते हैं।

कपड़ा व्यापारी: इस बाजार में इन व्यापारियों के दफ्तर होते हैं। ये लोग बुनकरों से खरीदते हैं और फिर पूरे देश के कपड़ा निर्माताओं और निर्यातकों को बेचते हैं। ये व्यापारी धागा खरीदकर बुनकरों को देते हैं और उन्हें यह भी निर्देश देते हैं कि किस तरह का कपड़ा बुनना है।

अन्य व्यापारी: दक्षिण भारत के अन्य शहरों के व्यापारी भी खरीददारी करने इस बाजार में आते हैं।