10 नागरिक शास्त्र

राजनीतिक पार्टी

राष्ट्रीय पार्टी

भारत में निष्पक्षष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए एक स्वतंत्र संस्था जिसका नाम चुनाव आयोग है। हर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। चुनाव आयोग की नजर में हर पार्टी समान होती है। लेकिन बड़ी और स्थापित पार्टियों को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। इन पार्टियों को अलग चुनाव चिह्न दिया जाता है जिसका इस्तेमाल उस पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार ही कर सकता है। जिन पार्टियों को यह विशेषाधिकार मिलता है उन्हें मान्यताप्राप्त पार्टी कहते हैं।

राज्य स्तर की पार्टी: जिस पार्टी को विधान सभा के चुनाव में कुल वोट के कम से कम 6% वोट मिलते हैं और जो कम से कम दो सीटों पर चुनाव जीतती है उसे राज्य स्तर की पार्टी कहते हैं।

राष्ट्रीय स्तर की पार्टी: जिस पार्टी को लोक सभा चुनावों में या चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कम से कम 6% वोट मिलते हैं और जो लोकसभा में कम से कम चार सीट जीतती है उसे राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की मान्यता मिलती है।

इस वर्गीकरण के अनुसार 2006 में देश में छ: राष्ट्रीय पार्टियाँ थीं। इनका वर्णन नीचे दिया गया है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: इसे कांग्रेस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बहुत पुरानी पार्टी है जिसकी स्थापना 1885 में हुई थी। भारत की आजादी में इस पार्टी की मुख्य भूमिका रही है। भारत की आजादी के बाद के कई दशकों तक कांग्रेस पार्टी ने भारतीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई है। आजादी के बाद के सत्तर वर्षों में पचास से अधिक वर्षों तक इसी पार्टी की सरकार रही है।

भारतीय जनता पार्टी: इस पार्टी की स्थापना 1980 में हुई थी। इस पार्टी को भारतीय जन संघ के पुनर्जन्म के रूप में माना जा सकता है। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य है एक शक्तिशाली और आधुनिक भारत का निर्माण। भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व पर आधारित राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना चाहती है। यह पार्टी जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण रूप से विलय चाहती है। यह धर्म परिवर्तन पर रोक लगाना चाहती है और एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहती है। 1990 के दशक में इस पार्टी का जनाधार तेजी से बढ़ा। यह पार्टी पहली बार 1998 में सत्ता में आई और 2004 तक शासन किया। उसके बाद यह पार्टी 2014 में सत्ता में आई है।

बहुजन समाज पार्टी: इस पार्टी की स्थापना कांसी राम के नेतृत्व में 1984 में हुई थी। यह पार्टी बहुजन समाज के लिये सत्ता चाहती है। बहुजन समाज में दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग आते हैं। इस पार्टी की पकड़ उत्तर प्रदेश में बहुत अच्छी है और यह उत्तर प्रदेश में दो बार सरकार भी बना चुकी है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी – मार्क्सवादी: इस पार्टी की स्थापना 1964 में हुई थी। इस पार्टी की मुख्य विचारधारा मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों पर आधारित है। यह पार्टी समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का समर्थन करती है। इस पार्टी को पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में अच्छा समर्थन प्राप्त है; खासकर से गरीबों, मिल मजदूरों, किसानों, कृषक श्रमिकों और बुद्धिजीवियों के बीच्। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इस पार्टी की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट आई है और पश्चिम बंगाल की सत्ता इसके हाथ से निकल गई है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी: इस पार्टी की स्थापना 1925 में हुई थी। इसकी नीतियाँ सीपीआई (एम) से मिलती जुलती हैं। 1964 में पार्टी के विभाजन के बाद यह कमजोर हो गई। इस पार्टी को केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, आंध्र प्रदेश और तामिलनाडु में ठीक ठाक समर्थन प्राप्त है। लेकिन इसका जनाधार पिछले कुछ वर्षों में तेजी से खिसका है। 2004 के लोक सभा चुनाव में इस पार्टी को 1.4% वोट मिले और 10 सीटें मिली थीं। शुरु में इस पार्टी ने यूपीए सरकार का बाहर से समर्थन किया था लेकिन 2008 के आखिर में इसने समर्थन वापस ले लिया।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी: कांग्रेस पार्टी में फूट के परिणामस्वरूप 1999 में इस पार्टी का जन्म हुआ था। यह पार्टी लोकतंत्र, गांधीवाद, धर्मनिरपेक्षता, समानता, सामाजिक न्याय और संघीय ढ़ाँचे की वकालत करती है। यह महाराष्ट्र में काफी शक्तिशाली है और इसको मेघालय, मणिपुर और असम में भी समर्थन प्राप्त है।

क्षेत्रीय पार्टियों का उदय: पिछले तीन दशकों में कई क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व बढ़ा है। यह भारत में लोकतंत्र के फैलाव और उसकी गहरी होती जड़ों को दर्शाता है। कुछ क्षेत्रीय नेता अपने अपने राज्यों में काफी शक्तिशाली हैं। समाजवादी पार्टी, बीजू जनता दल, एआईडीएमके, डीएमके, आदि क्षेत्रीय पार्टी के उदाहरण हैं।