10 अर्थशास्त्र

भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

भारत में विभिन्न सेक्टर का विकास और वर्तमान स्थिति

भारतीय अर्थव्यवस्था में अलग अलग सेक्टर का वैल्यू

value of sectors in Indian economy
दिये गये ग्राफ को ध्यान से देखिए।

भारत के जीडीपी में अलग अलग सेक्टर का शेअर

share of sectors in gdp

दूसरे ग्राफ से यह पता चलता है कि जीडीपी में कृषि का शेअर तेजी से गिरा है, उद्योग का शेअर स्थिर रहा है लेकिन सेवाओं का शेअर तेजी से बढ़ा है। सेवा सेक्टर की वृद्धि 35% से 55% हो गई है। यह सेवा सेक्टर के लिये बहुत अच्छा माना जा सकता है।

भारत के अलग अलग सेक्टर में रोजगार के अवसर

share of sectors in employment

लेकिन तीसरा ग्राफ एक भयावह स्थिति को दिखाता है। रोजगार के अवसर और जीडीपी में शेअर के बीच कोई तालमेल नहीं है। 1973 में 75% कामगारों को कृषि क्षेत्र में रोजगार मिलता था। 2000 में 60% कामगारों को कृषि क्षेत्र में रोजगार मिलता था। एक ओर तो कृषि क्षेत्र का जीडीपी में शेअर तेजी से गिरा है लेकिन अभी भी कामगारों का एक बड़ा हिस्सा रोजगार के लिये कृषि क्षेत्र पर ही आश्रित है। इसका मतलब यह है कि दूसरे सेक्टर में रोजगार के अवसर सुचारु रूप से नहीं बढ़े हैं। कामगारों का एक बड़ा हिस्सा विकल्प के अभाव में अभी भी कृषि क्षेत्र में काम करने को मजबूर हैं।

ग्राफ में दिये गये आँकड़ों से हम निम्न बातें समझ सकते हैं:

कामगारों के एक बड़े हिस्से का कृषि क्षेत्र पर निर्भर होना कोई अच्छा संकेत नहीं है। कृषि में रोजगार के अवसर फसल के मौसम में ही होते हैं। इसलिए कृषि क्षेत्र में छिपी हुई बेरोजगारी की प्रबल संभावना होती है।

ऐतिहासिक आंकड़े देखने से पता चलता है कि जब कोई भी देश प्राइमरी सेक्टर से टरशियरी सेक्टर के चरण में पहुँच जाता है तब तक वह हर मामले में विकसित हो जाता है। लेकिन भारत के मामले में ऐसा नहीं हुआ है। आज भी हमारा देश विकसित नहीं हो सका है क्योंकि अन्य क्षेत्रों में रोजगार के अवसर ठीक से नहीं पनप पाए हैं।

सेकंडरी और टरशियरी सेक्टर में रोजगार के कम अवसर होने के कारण प्राइमरी सेक्टर पर अत्यधिक दबाव है। शिक्षित और कुशल कामगार तो सेकंडरी और टरशियरी सेक्टर में रोजगार पा लेते हैं, लेकिन अशिक्षित और अकुशल कामगार को वैसे अवसर नहीं मिल पाते हैं।