10 अर्थशास्त्र
जब कोई उपभोक्ता किसी उत्पाद का इस्तेमाल करता है तो वह भी बाजार में भागीदार बन जाता है। उपभोक्ता के बगैर हम किसी कम्पनी के अस्तित्व के बारे में सोच भी नहीं सकते। उपभोक्ता के इतने महत्व के बावजूद उपभोक्ता को अपने समुचित अधिकार नहीं मिल पाते हैं। आपका पाला अक्सर ऐसे दुकानदारों से पड़ा होगा जो वजन करते समय बेईमानी करते हैं और कम तौलते हैं। बहुत सारे दुकानदार खाने के सामानों में मिलावट करते हैं। यदि आप कभी किसी दुकानदार से इसकी शिकायत करेंगे तो वह झगड़ा करने पर उतारू हो जायेगा।
ट्रेन में सफर करते समय तो ग्राहक की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। ट्रेन में हमेशा खाने पीने की घटिया चीजें मिलती हैं। ट्रेन की पैंट्री में जो खाना बेचा जाता है वह बहुत महंगा होता है और घटिया क्वालिटी का होता है।
भारत के व्यापारियों के बीच मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन, आदि की परंपरा काफी पुरानी है। भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे। 1970 के दशक तक इस तरह के आंदोलन केवल अखबारों में लेख लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित होते थे। लेकिन हाल के वर्षों में इस आंदोलन में गति आई है।
लोग विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से इतने अधिक असंतुष्ट हो गये थे कि उनके पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। एक लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने भी उपभोक्ताओं की सुधि ली। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट (कोपरा) को लागू किया।
सूचना पाने का अधिकार: हर उपभोक्ता को यह अधिकार होता है कि उसे उत्पाद के बारे में सही जानकारी मिले। ऐसे कानून बन चुके हैं जिनके अनुसार उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा की जानकारी देना अनिवार्य है। सही सूचना उपभोक्ता को इस बात में मदद करती है कि वह किसी उत्पाद को खरीदने के लिये उचित निर्णय ले सके। किसी भी उत्पाद के पैक पर अधिकतम खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य हो गया है। यदि कोई दुकानदार एमआरपी से अधिक मूल्य लेता है तो उपभोक्ता इसकी शिकायत कर सकता है।
चयन का अधिकार: एक उपभोक्ता को यह अधिकार होना चाहिए कि उसके पास चुनने के लिये कई विकल्प हों। कोई भी विक्रेता किसी भी उत्पाद का केवल एक ही ब्रांड पेश नहीं कर सकता है। इससे मोनोपॉली की रोकथाम होती है।
क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार: अक्सर उत्पादक अपने उत्पादों के बारे में झूठे वादे करते हैं। कभी भी किसी उत्पाद में कोई त्रुटि भी हो सकती है। यदि किसी उपभोक्ता को इनके कारण कोई क्षति होती है तो उसे क्षतिपूर्तिनिवारण का अधिकार होता है। मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने एक स्कूटर खरीदा और पहले महीने में ही उस स्कूटर का इंजन काम करना बंद कर दे। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता को यह अधिकार होता है कि बदले में उसके स्कूटर का इंजन मुफ्त में ठीक कराया जाये या इंजन को बदल दिया जाये।
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