10 अर्थशास्त्र

वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्वीकरण:

आधुनिक समय में पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था आपस में जुड़ी हुई है। विश्व की अर्थव्यवस्था के इस परस्पर जुड़ाव को वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन कहते हैं। इसे समझने के लिये एप्पल नाम की कंपनी का उदाहरण लेते हैं। यह अमेरिका की कंपनी है। एप्पल के मोबाइल फोन के पार्ट्स चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में बनते हैं। उसके बाद एप्पल के फोन दुनिया के हर देशों में बेचे जाते हैं। इससे पता चलता है कि एक उत्पाद के बनने और ग्राहकों तक पहुँचने में जितनी आर्थिक क्रियाएँ होती हैं, उनमें से विभिन्न क्रियाएँ दुनिया के विभिन्न भागों में संपन्न होती हैं। यह ग्लोबलाइजेशन का एक बेहतरीन उदाहरण है। इसलिए यदि चीन की अर्थव्यवस्था में कोई उथल पुथल होती है तो उसका असर अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ता है।

वैश्वीकरण का विकास

व्यापार ने प्राचीन काल से ही दुनिया के विभिन्न भागों को जोड़ने का काम किया है। आपने सिल्क रूट का नाम सुना होगा। चीन का रेशम जिस रास्ते से अरब और फिर पश्चिम के देशों और अन्य देशों में जाता था उस रास्ते को सिल्क रूट कहा जाता था। सिल्क रूट से न केवल सामान की आवाजाही होती थी बल्कि लोगों और विचारों का आवागमन भी होता था। भारत से शून्य और दशमलव प्रणाली व्यापार के रास्ते ही दुनिया के अन्य भागों में पहुँच पाया था। नूडल्स की उत्पत्ति चीन में हुई थी। व्यापार के रास्ते ही नूडल्स दुनिया के अन्य भागों में पहुँचे और इसके कई नाम हो गये; जैसे सेवियाँ, पास्ता, आदि।

औद्योगिक क्रांति के परिणाम्स्वरूप वैश्वीकरण में तेजी आ गई। उसके बाद शुरु में एशिया से कच्चे माल का निर्यात होता था और यूरोप से उत्पादों का आयात होता था। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से स्थिति बदलने लगी थी।

बीसवीं सदी के मध्य के बाद से कई कंपनियों ने विश्व के विभिन्न भागों में अपने पैर पसारने शुरु किये। इस तरह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जन्म हुआ।

वैश्वीकरण के कारण:

खर्च कम करने की आवश्यकता: हर कंपनी इस बात की पूरी कोशिश करती है कि उत्पादन के लागत को कम किया जाये। इसके लिये जरूरत पड़ने पर कंपनियाँ उत्पादन के कई चरणों को अलग-अलग देशों में पूरा करवाती हैं। यदि एप्पल नामक कंपनी अमेरिका में अपने उत्पाद बनाएगी तो वहाँ खर्च अधिक आयेगा क्योंकि अमेरिका में कामगारों को अधिक पारिश्रमिक देना होता है। यदि ताइवान या चीन में काम होगा तो खर्च कम आयेगा क्योंकि इन देशों में कामगारों को कम पारिश्रमिक देना होता है। कच्चे माल को हमेशा ऐसे स्थान से खरीदने की कोशिश की जाती है जहाँ वह सबसे सस्ते में उपलब्ध हो। इस तरह से विभिन्न देशों से काम करवाने में लागत कम की जा सकती है और मुनाफे को बढ़ाया जा सकता है।

नये बाजार की तलाश: हर बाजार में ग्राहकों की संख्या सीमित होती है। कोई भी कंपनी अपने उत्पाद को घरेलू बाजार में किसी खास सीमा तक ही बेच सकती है। उससे अधिक बिक्री के लिये नये बाजारों की जरूरत होती है। मान लीजिए कि किसी किसान के खेत में सब्जियों की जबरदस्त पैदावार हुई है। उसका गाँव इतना छोटा है कि वहाँ चाहकर भी वह अपनी सारी सब्जियाँ नहीं बेच सकता। अपनी सब्जियों को सही कीमत पर बेचने के लिये किसान को नये बाजार में जाना होगा। यही हालत कंपनियों की भी होती है। उन्हें हमेशा नये बाजार तलाशने की जरूरत होती है।