10 इतिहास

यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

नेपोलियन

नेपोलियन 1804 से 1815 के बीच फ्रांस का राजा था। नेपोलियन ने फ्रांस में प्रजातंत्र को तहस नहस कर दिया और वहाँ फिर से राजतंत्र की स्थापना हो गई। लेकिन नेपोलियन ने कुछ ऐसे कदम उठाये जिसके लिये उसे हमेशा याद किया जाता रहेगा। नेपोलियन ने प्रशासन के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी बदलाव किये और प्रशासन व्यवस्था को बेहतर और कुशल बनाया। नेपोलियन ने 1804 में सिविल कोड लागू किया। इसे नेपोलियन कोड भी कहा जाता है। इस कोड ने जन्म के आधार पर मिलने वाली हर सुविधा को समाप्त कर दिया। हर नागरिक को समान हैसियत प्रदान की गई और संपत्ति के अधिकार को पुख्ता किया गया। नेपोलियन ने फ्रांस की तरह अपने नियंत्रण वाले हर इलाके में प्राशासनिक सुधार किये। उसने सामंती व्यवस्था को खत्म किया। किसानों को दासता और जागीर को अदा होने वाले शुल्कों से मुक्त किया। उसने शहरों में प्रचलित शिल्प मंडलियों द्वारा लगाई गई पाबंदियों को भी समाप्त किया। यातायात और संचार के साधनों में सुधार किये गये।

जनता की प्रतिक्रिया:

आम आदमी को यह समझ में आ गया था कि एक समान कानून और मानक मापन पद्धति और एक साझा मुद्रा से व्यवसाय में कितना लाभ होगा। इसलिये किसानों, कारीगरों और मजदूरों ने इस नई आजादी का खुलकर स्वागत किया।

लेकिन फ्रांस ने जिन इलाकों पर कब्जा जमाया था, वहाँ के लोगों की फ्रांसीसी शासन के बारे में मिली जुली प्रतिक्रिया थी। शुरु शुरु में लोगों ने फ्रांस की सेना को आजादी के दूत के रूप में देखा। लेकिन जल्दी ही यह भावना बदल गई। लोगों को समझ में आने लगा कि इस नई शासन व्यवस्था से राजनैतिक आजादी की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। टैक्स में भारी बढ़ोतरी हुई। लोगों को जबरदस्ती फ्रांस की सेना में भर्ती कराया गया। इस सबके फलस्वरूप लोगों का शुरुआती जोश जल्दी ही विरोध में बदलने लगा।

क्रांति के पहले की स्थिति

अठारहवीं सदी के मध्यकाल में यूरोप में वैसे राष्ट्र नहीं हुआ करते थे जैसा हम आज जानते और समझते हैं। आधुनिक जर्मनी, इटली और स्विट्जरलैंड कई सूबों, प्रांतों और साम्राजयों में बँटे हुए थे। हर शासक अपने आप में स्वतंत्र हुआ करता था। पूर्वी और मध्य यूरोप में कई शक्तिशाली राजा थे जिनके अधीन विभिन्न प्रकार के लोग रहा करते थे। इन लोगों की कोई साझा पहचान नहीं होती थी। उनमें यदि कोई समानता थी तो वह थी किसी एक खास शासक के प्रति समर्पण।

राष्ट्रों के उदय के कारण और प्रक्रिया

अभिजात वर्ग

यूरोपीय महाद्वीप में जमीन से संपन्न कुलीन वर्ग हमेशा से ही सामाजिक और राजनैतिक तौर पर प्रभावशाली हुआ करता था। कुलीन वर्ग के लोगों की जीवन शैली एक जैसी होती थी जिसका इस बात से कोई लेना देना नहीं था कि वे किस क्षेत्र में रहते थे। शायद इसी जीवन शैली के कारण वे एक सूत्र में बंधे रहते थे। उनकी जागीरें ग्रामीण इलाकों में होती थीं और उनके आलीशान बंगले शहरी इलाकों में होते थे। आपस में संबंध बनाये रखने के लिये उनके परिवारों के बीच शादियाँ भी होती थीं। वे फ्रेंच भाषा बोलते थे ताकि अपनी एक खास पहचान बनाये रखें और कूटनीतिक संबंध जारी रखें।

सत्ता से संपन्न यह अभिजात वर्ग संख्याबल में छोटा था। जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा किसानों से बना हुआ था। पश्चिमी यूरोप में ज्यादातर जमीन पर काश्तकार और छोटे किसान खेती करते थे। पूर्वी और केंद्रीय यूरोप में बड़ी-बड़ी जागीरें हुआ करती थीं जहाँ दासों से काम लिया जाता था।

मध्यम वर्ग का उदय

पश्चिमी और केंद्रीय यूरोप के कुछ भागों में उद्योग धंधे में वृद्धि होने लगी थी। इससे शहरों का विकास हुआ और उन शहरों में एक नये व्यावसायिक वर्ग का उदय हुआ। इस नये वर्ग का जन्म बाजार के लिये उत्पादन की मंशा से हुआ था। इस परिघटना ने समाज में नये समूहों और वर्गों को जन्म दिया। इस नये सामाजिक वर्ग में एक वर्ग मजदूरों का था और दूसरा मध्यम वर्ग का। उस मध्यम वर्ग के मुख्य हिस्सा थे उद्योगपति, व्यापारी और व्यवसायी। इसी मध्यम वर्ग ने राष्ट्रीय एकता की भावना को एक रूप प्रदान किया।

उदार राष्ट्रवाद की भावना

उन्नीसवीं सदी के शुरु के दौर में यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना और उदारवाद की भावना में गहरा तालमेल था। नये मध्यम वर्ग के लिये उदारवाद के मूल में व्यक्ति की स्वतंत्रता और समान अधिकार की भावनाएँ थीं। यदि हम राजनैतिक दृष्टिकोण से देखें तो उदारवाद की भावना ने ही आम सहमति से शासन के सिद्धांत को बल दिया होगा। उदारवाद के कारण ही तानाशाही और वंशानुगत विशेषाधिकारों का अंत हुआ। इससे एक संविधान की आवश्यकता महसूस होने लगी। इससे प्रतिनिधित्व पर आधारित सरकार की आवश्यकता भी महसूस होने लगी। इसी काल में उदारवादियों ने संपत्ति की अक्षुण्णता की बात को भी पक्के तौर पर रखना शुरु किया।

मताधिकार

फ्रांस के लोगों को मताधिकार के लिये लंबा संघर्ष करना पड़ा था। हर नागरिक को मताधिकार नहीं मिला था। क्रांति के पिछले दौर में केवल उन पुरुषों को मताधिकार मिला था जिनके पास संपत्ति होती थी। जैकोबिन क्लबों के दौर में थोड़े समय के लिये हर वयस्क पुरुष को मताधिकार मिला था। लेकिन नेपोलियन कोड ने फिर से पुरानी व्यवस्था बहाल कर दी थी। अब फिर से मताधिकार केवल सीमित लोगों के पास ही था। नेपोलियन के शासन काल में महिलाओं को नाबालिग जैसा दर्जा दिया गया। इसलिये महिलाएँ अपने पिता या पति के नियंत्रण में होती थीं। पूरी उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के शुरु तक महिलाओं और संपत्तिविहीन पुरुषों को मताधिकार के लिये संघर्ष करना पड़ा।

आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण

नेपोलियन कोड की एक और खास बात थी आर्थिक उदारीकरण। मध्यम वर्ग; जिसका उदय अभी अभी हुआ था; आर्थिक उदारीकरण के पक्ष में था। आर्थिक उदारीकरण की जरूरत को समझने के लिये ऐसे क्षेत्र का उदाहरण लेते हैं जहाँ जर्मन भाषा बोलने वाले लोग रहते थे। यह उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध की बात है। इस क्षेत्र में 39 प्रांत थे जो कई छोट—छोटी इकाइयों में बँटे हुए थे। हर इकाई की अपनी अलग मुद्रा थी और मापन की अपनी अलग प्रणाली थी। यदि कोई व्यापारी हैम्बर्ग से न्यूरेमबर्ग जाता था तो उसे ग्यारह चुंगी नाकाओं से गुजरना होता था। हर नाके पर लगभग 5% चुंगी देनी होती थी। चुंगी का भुगतान भार और नाप के अनुसार होता था। अलग-अलग स्थानों के भार और मापन में अत्यधिक अंतर होने के कारण इसमें बड़ी उलझन होती थी। इस तरह से व्यवसाय के लिये बिलकुल प्रतिकूल माहौल थे जिनसे आर्थिक गतिविधियों में विघ्न उत्पन्न होते थे। नये व्यावसायिक वर्ग एक एकल आर्थिक क्षेत्र बहाल किये जाने की माँग कर रहा था। वे ऐसा इसलिये चाहते थे ताकि सामान, लोगों और पूँजी के आदान प्रदान में कोई बाधा न हो।

1834 में प्रसिया की पहल पर जोवरलिन के कस्टम यूनियन का गठन हुआ। बाद में अधिकाँश जर्मन राज्य भी इस यूनियन में शामिल हो गये। चुंगी की सीमाएँ समाप्त की गईं और मुद्राओं के प्रकार को तीस से घटाकर दो कर दिया गया। इसी बीच रेल नेटवर्क के विकास ने आवगमन को और सरल बना दिया। इससे एक तरह के आर्थिक राष्ट्रवाद का विकास हुआ। आर्थिक राष्ट्रवाद ने उस समय जड़ ले रही राष्ट्रवाद की भावना को बल प्रदान किया।

1815 के बाद एक नए रुढ़िवाद का जन्म

सन 1815 में ब्रिटेन, रूस, प्रसिया और ऑस्ट्रिया की सम्मिलित ताकतों ने नेपोलियन को पराजित कर दिया। नेपोलियन की पराजय के बाद, यूरोप की सरकारें रुढ़िवाद की ओर वापस लौटना चाहती थीं। रुढ़िवादियों को लगता था कि समाज और देश की परंपरागत संस्थाओं का संरक्षण जरूरी था। वे राजतंत्र, चर्च, सामाजिक ढ़ाँचे, संपत्ति और परिवार के पुराने ढ़ाँचे को बचाकर रखना चाहते थे। लेकिन उनमें से ज्यादातर लोग इस बात को भी मानते थे कि प्रशासन के क्षेत्र में उन बदलावों को जारी रखना चाहिए जो नेपोलियन ने किये थे। उन्हें लगता था कि उस प्रकार के आधुनिकीकरण से परंपरागत संस्थाएँ और मजबूत होंगी। उन्हें लगता था कि एक आधुनिक सेना, एक कुशल प्रशासन, एक गतिशील अर्थव्यवस्था और सामंतवाद और दासता की समाप्ति से यूरोप के राजतंत्र को और मजबूती मिलेगी।