10 इतिहास

भारत में राष्ट्रवाद

Extra Questions Answers

प्रश्न:1 सत्याग्रह का सिद्धांत क्या कहता है?

उत्तर: सत्याग्रह का सिद्धांत कहता है कि यदि कोई सही मकसद के लिये लड़ाई लड़ रहा हो तो उसे अपने ऊपर अत्याचार करने वाले से लड़ने के लिये ताकत की जरूरत नहीं होती है।

प्रश्न:2 रॉलैट ऐक्ट ने अंग्रेजी सरकार को क्या शक्तियाँ प्रदान की?

उत्तर: इस ऐक्ट ने सरकार को राजनैतिक गतिविधियों को कुचलने के लिये असीम शक्ति दे दी थी। इस ऐक्ट के मुताबिक बिना ट्रायल के ही राजनैतिक कैदियों को दो साल तक के लिये बंदी बनाया जा सकता था।

प्रश्न:3 असहयोग से गांधीजी का मतलब था?

उत्तर: महात्मा गांधी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक स्वराज (1909) में लिखा कि भारत में अंग्रेजी राज इसलिए स्थापित हो पाया क्योंकि भारत के लोगों ने उनके साथ सहयोग किया। भारतीय लोगों के सहयोग के कारण अंग्रेज यहाँ पर हुकूमत करते रहे। यदि भारत के लोग सहयोग करना बंद कर दें, तो अंग्रेजी राज एक साल के अंदर चरमरा जायेगा और स्वराज आ जायेगा। गांधीजी को पूरा विश्वास था कि यदि भारतीय लोग अंग्रेजों से सहयोग करना बंद कर देंगे तो अंग्रेजों के पास भारत को छोड़कर जाने के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचेगा।

प्रश्न:4 असहयोग आंदोलन के कुछ प्रस्तावों को लिखें।

उत्तर: असहयोग आंदोलंके कुछ प्रस्ताव निम्नलिखित हैं:

प्रश्न:5 असहयोग आंदोलन ठंढ़ा क्यों पड़ गया?

उत्तर: असहयोग आंदोलन निम्नलिखित कारणों से ठंढ़ा पड़ गया:

प्रश्न:6 साइमन कमीशन बनाने का मुख्य उद्देश्य क्या था?

उत्तर: इस कमीशन को भारत में संवैधानिक सिस्टम के कार्य का मूल्यांकन करने और जरूरी बदलाव के सुझाव देने के लिए बनाया गया था।

प्रश्न:7साइमन कमीशन का विरोध क्यों हुआ?

उत्तर: इस कमीशन में केवल अंग्रेज सदस्य ही थे, एक भी भारतीय सदस्य नहीं था। इसलिए भारतीय नेताओं ने इसका विरोध किया।

प्रश्न:8 दांडी मार्च का देश में क्या असर हुआ?

उत्तर: दांडी मार्च ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। देश के विभिन्न भागों में हजारों लोगों ने नमक कानून को तोड़ा। लोगों ने सरकारी नमक कारखानों के सामने धरना प्रदर्शन किया। विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया गया। किसानों ने लगान देने से मना कर दिया। आदिवासियों ने जंगल संबंधी कानूनों का उल्लंघन किया।

प्रश्न:9 किसानों के लिये स्वराज की लड़ाई का क्या मतलब था?

उत्तर: किसानों के लिए स्वराज की लड़ाई का मतलब था अधिक लगान के विरुद्ध लड़ाई। जब 1931 में लगान दरों में सुधार के बगैर ही आंदोलन बंद कर दिया गया तो किसान अत्यधिक निराश थे। जब 1932 में आंदोलन को दोबारा शुरु किया गया तो अधिकांश किसानों ने इसमें भाग लेने से मना कर दिया।