7 इतिहास

मध्ययुगीन भारत

नये सामाजिक और राजनैतिक समूह

700 से 1750 के बीच के हजार वर्षों का अध्ययन इतिहासकारों के लिए बड़ी चुनौती इसलिए भी है कि इस दौरान जो बदलाव हुए उनका पैमाना और उनकी विविधता बड़ी थी। इनके कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं।

नई तकनीक

इस दौरान कई नई तकनीकों का प्रादुर्भाव हुआ। उनके कुछ उदाहरण हैं, सिंचाई में पर्सियन व्हील (रहट), कपड़े बुनने के लिए चरखा और लड़ाई के लिए तोप का आविष्कार। इस दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में बाहर से कुछ नई भोजन सामग्रियाँ भी आईं, जैसे आलू, मक्का, मिर्च, चाय और कॉफी

इस युग में लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान आना जाना भी बढ़ चुका था। महाद्वीप में मिलने वाले बेहतर अवसरों के कारण दूर देशों के लोग काम और व्यवसाय के सिलसिले में यहाँ आने लगे थे।

जाति और उपजाति

मध्ययुग में राजपूत जाति के लोगों का प्रभाव बहुत बढ़ गया। यह शब्द राजपुत्र से बना है जिसका अर्थ है राजा का पुत्र। आठवीं और चौदहवीं सदी के बीच राजपूत संज्ञा का इस्तेमाल उनके लिए होता था जो योद्धा थे। योद्धाओं के ये समूह अपने आप को क्षत्रिय मानते थे। शासकों के अलावा, सेना के सिपाहियों और सेनापतियों को भी क्षत्रिय माना जाता था। राजपूतों के बारे में कवियों ने हमेशा उनकी वीरता और स्वामिभक्ति का बखान किया है।

इस दौरान कुछ अन्य समूह भी राजनैतिक रूप से प्रभावशाली हो चुके थे, जैसे जाट, मराठा, सिख, अहोम और कायस्थ। कायस्थ जाति के लोग मुख्य रूप से लिपिक और सचिव का काम करते थे।

उपजातियाँ

इस दौरान कई बनवासियों को अपने मूल निवास को छोड़ना पड़ा था, क्योंकि मुख्यधारा के लोगों ने खेती के लिए कई स्थानों पर जंगलों का सफाया कर दिया था। जो बनवासी पलायन नहीं कर पाए थे उन्होंने खेतीबारी शुरु कर दी और किसान बन गए। किसानों के इन नये समूहों पर धीरे धीरे क्षेत्रीय बाजार, मुखिया, पुजारी और मंदिरों का प्रभाव पड़ने लगा। अब वे एक बड़े और जटिल समाज का हिस्सा बन चुके थे, और उन्हें अब टैक्स देना पड़ता था और स्थानीय सामंतों को सामान और सेवा प्रदान करना पड़ता था।

इस सबका असर यह हुआ कि किसानों में सामाजिक और आर्थिक रूप से कई वर्ग बन चुके थे। कुछ के पास उपजाऊ जमीन थी, कुछ मवेशी पालते थे तो कुछ शिल्पकारी करते थे। इन अंतरों के कारण कई उपजातियों का जन्म हुआ जिनकी स्थिति उनकी आर्थिक स्थिति और पेशे पर निर्भर होती थी। अलग-अलग समय में प्रभुत्व, सत्ता और संसाधनों पर नियंत्रण के हिसाब से इन जातियों और उपजातियों की सामाजिक स्थिति भी बदलती रहती थी।

किसी भी जाति के सदस्यों को उसके नियमों का पालन करना पड़ता था। इन नियमों को लागू करने के लिए जाति पंचायत होती थी जिसमें बुजुर्ग लोग भाग लेते थे। इसके अलावा गाँव के मुखिया द्वारा बनाए नियमों का भी पालन करना पड़ता था।

क्षेत्र और साम्राज्य

चोल, तुगलक और मुगल साम्राज्य कई क्षेत्रों से मिलकर बने हुए थे। दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन बलबन का साम्राज्य पूरब में बंगाल से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान के गजनी तक फैला हुआ था और दक्षिण भारत के कुछ भाग भी उसके साम्राज्य के अंग थे। बलबन पर लिखी एक प्रशस्ति में लिखा है कि उसकी सेना को देखते ही गौड़ा, आंध्र, केरल, कर्णाटक और महारष्ट्र की सेनाएँ भाग खड़ी हुई थीं। लेकिन यह किसी अतिशयोक्ति जैसा ही लगता है।

700 इसवी तक कई क्षेत्रों की अपनी विशिष्ट भौगोलिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान विकसित हो चुकी थी। अलग-अलग क्षेत्रों पर अलग-अलग राजवंशों के शासन थे जिनके बीच हमेशा लड़ाईयाँ होती थीं। बीच बीच में तुगलक, मुगल, चोल और खिलजी जैसे राजवंशों ने ऐसे साम्राज्य स्थापित किये थे जिनका प्रभुत्व कई क्षेत्रों तक फैला हुआ था। लेकिन यह जरूरी नहीं था कि हर साम्राज्य को बराबर सफलता मिली हो या उनका स्थायित्व एक समान रहा हो। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद एक बार फिर से क्षेत्रीय शासकों का उदय हुआ। लेकिन लंबे समय के विशाल साम्राज्य के शासन के कारण इन क्षेत्रों के मूल चरित्र में काफी बदलाव आ चुके थे। शासन, अर्थव्यवस्था, संस्कृति और भाषा में इस बात के प्रभाव साफ साफ देखने को मिलते हैं। लेकिन हर क्षेत्र की अपनी विशिष्टता भी बरकरार रही।

क्षेत्र और भाषा

अमीर खुसरो ने 1318 में लिखा था कि उपमहाद्वीप में कई क्षेत्रीय भाषाएँ थीं। खुसरो ने लाहौरी, कश्मीरी, सिंधी, द्वारसमुद्री, अवधी, आदि भाषाओं का जिक्र किया है। खुसरो ने यह भी लिखा है कि संस्कृत किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं था। यह एक पुरानी भाषा है जिसका ज्ञान आम लोगों के पास नही था, और जिसे सिर्फ ब्राह्मण जानते थे।

पुराने और नये धर्म

मध्ययुग में धार्मिक परंपराओं में बड़े बदलाव हुए।

हिंदू

हिंदू धर्म में कई बदलाव हुए। कई नये भगवानों की पूजा होने लगी। शासक वर्ग द्वारा मंदिर बनवाए गए। समाज में ब्राह्मणों का महत्व पहले से अधिक हो गया। हिंदू धर्म में जो सबसे बड़ा बदलाव आया वह था भक्ति के भाव की शुरुआत। भक्ति के भाव के अनुसार, किसी को भी अपने आराध्य तक पहुँचने के लिए पुजारियों या अनुष्ठानों की जरूरत नहीं थी। कोई भी व्यक्ति अपने तरीके से अपने आराध्य की पूजा करके उस तक पहुँच सकता था।

नये धर्म

इस्लाम: यह धर्म व्यापारियों और प्रवासियों के साथ भारत में सातवीं सदी में आया। इस धर्म के अनुयायियों को मुसलमान कहते हैं। उनका धार्मिक ग्रंथ कुरान है और वे एक ही ईश्वर यानि अल्ला में विश्वास करते हैं। इस्लाम के अनुयायी दो समूहों में बँटे हुए हैं, शिया और सुन्नी। शिया मुसलमानों का मानना है कि हजरत मोहम्मद के दामाद अली ही मुसलमानों के असली नेता हैं, जबकि सुन्नी मुसलमान खलीफा को अपना नेता मानते हैं।

मध्ययुग और आधुनिक

इतिहास को अलग अलग समय सीमा में बाँटने से उसका अध्ययन करना आसान हो जाता है। अलग अलग कालों में कुछ समानताएँ भी हो सकती हैं।

अंग्रेज इतिहासकारों द्वारा वर्गीकरण

उन्नीसवीं सदी के मध्य काल के अंग्रेज इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को तीन भागों में बाँटा था, हिंदू, मुसलमान और अंग्रेजी। इस वर्गीकरण का आधार था शासक वर्ग का धर्म, यानि उन इतिहासकारों को लगता था कि शासक का धर्म ही एकमात्र ऐतिहासिक परिवर्तन था। यह कह सकते हैं कि अंग्रेज इतिहासकारों ने सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं की अवहेलना की थी।