7 नागरिक शास्त्र

संचार माध्यम

किसी भी मीडिया को चलाना किसी बिजनेस को चलाने जैसा होता है। इसमें काफी खर्च आता है। इसलिए मीडिया को आय के स्रोत भी बनाने पड़ते हैं। ऐसा कई तरीकों से किया जाता है। मीडिया के लिए आय का मुख्य स्रोत विज्ञापन होते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापन: रेडियो और टेलीविजन पर तरह तरह की चीजों के विज्ञापन चलते रहते हैं। आपने गौर किया होगा कि समाचार या धारावाहिक सीरियल के बीच बीच में कॉमर्सियल ब्रेक होते हैं जिसके दौरान विज्ञापन चलते हैं। क्रिकेट मैच में हर दो ओवर के बीच में विज्ञापन आते हैं।

प्रिंट मीडिया में विज्ञापन: अखबारों में भी तरह तरह के विज्ञापन छपते हैं। आजकल तो हर नामी अखबार में आपको पूरे पन्ने का विज्ञापन दिख जाएगा जिसमें पहले दो पन्नों पर आवासीय प्रोजेक्ट, कार, सुपरमार्केट, आदि के विज्ञापन दिख जाते हैं।

मीडिया और लोकतंत्र

आपने लोकतंत्र की परिभाषा में पढ़ा है कि यह ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जन प्रतिनिधि की जवाबदेही जनता के लिए होती है। देश और दुनिया में होने वाली गतिविधियों के बारे में लोगों तक जानकारी पहुँचाना मीडिया की मुख्य जिम्मेदारी होती है। इन सूचनाओं के आधार पर लोग यह समझ पाते हैं कि सरकार कैसा काम कर रही है और अपने वादों पर खरा उतर रही है या नहीं। मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर लोग अपने विचार और सुझाव दे सकते हैं और सरकार के खिलाफ कोई कदम उठा सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मीडिया से लोकतंत्र को मजबूती मिलती है।

संतुलित सूचना में मीडिया की भूमिका

चूँकि मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है इसलिए यह जरूरी है कि उनसे संतुलित सूचना मिलती रहे। यदि किसी रिपोर्ट में हर पक्ष की बात रखी जाती है तो उसे संतुलित रिपोर्ट कहते हैं। तटस्थ रिपोर्ट देने के लिए मीडिया का स्वतंत्र होना बहुत जरूरी होता है। इसका मतलब है कि मीडिया किसी के नियंत्रण में न हो और किसी से प्रभावित न हो। सरकार या अन्य किसी भी व्यक्ति या संस्थान ऐसा न करे कि उसके प्रभाव में मीडिया किसी बात को दबा दे और किसी बात को जरूरत से ज्यादा उजागर करे। मीडिया को चटपटी और सनसनीखेज खबर छापने या दिखाने से भी बचना चाहिए।

मीडिया की आजादी

आज मीडिया स्वतंत्र नहीं है। मीडिया पर सरकार का बहुत अधिक प्रभाव रहता है। कई बार सरकार ने मीडिया को सेंसर किया है। 1975-77 के आपातकाल का दौर ऐसा ही समय था। अधिकतर मामलों में मीडिया द्वारा तटस्थ रिपोर्ट नहीं मिलती है। इसके कई कारण हैं।

मसौदा तय करना

किस मुद्दे पर फोकस करना है यह मीडिया के हाथों में होता है। इसलिए मीडिया ही यह निर्णय लेती है कि कौन सी घटना समाचार में आने लायक है। यदि आपके स्कूल में वार्षिक महोत्सव होता है तो उसकी रिपोर्टिंग करने में मीडिया कोई रुचि नहीं दिखाएगी। लेकिन यदि उस महोत्सव में कोई नामी गिरामी खिलाड़ी या फिल्म स्टार पहुँच जाए तो फिर मीडिया वालों की लाइन लग जाएगी। कुछ चुनिंदा मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके मीडिया हमारी सोच और प्रतिक्रिया को अच्छी तरह से प्रभावित करती है।

कुछ वर्षों पहले मीडिया के कारण हमने जाना कि कोला ड्रिंक्स में कीटनाशी का स्तर खतरे के स्तर से काफी ऊपर था। इससे हम यह जान पाए कि हमारे यहाँ बनने वाले कोला ड्रिंक्स में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों का पालन नहीं हो रहा था। सरकार के प्रतिरोध के बावजूद इस मुद्दे को मीडिया ने बढ़ चढ़कर दिखाया था। इस तरह मीडिया ने जन स्वास्थ्य से संबंधित एक महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर किया था।

लेकिन कई ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जब हमारे जीवन के कई महत्वपूर्ण मुद्दों की मीडिया द्वारा अनदेखी होती है। कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं।

दूषित पेय जल: हर वर्ष हजारों लोग दूषित पानी पीने से बीमार पड़ जाते हैं या मर जाते हैं। पेय जल की किल्लत एक विकराल समस्या है। लेकिन मीडिया शायद ही कभी इसकी चर्चा होती है।

झोपड़पट्टी गिराना: एक बार मुम्बई के किसी इलाके में सरकार ने झोपड़पट्टियों को उजार दिया था। लेकिन किसी भी मीडिया में उसकी खबर नहीं आई। उसी समय के आसपास मुम्बई में फैशन वीक मनाया जा रहा था। मीडिया ने रईसों के इस उत्सव को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया था।

स्थानीय मीडिया

आम लोगों के जीवन से जुड़े छोटे मुद्दों को दिखाने में मीडिया की कोई रुचि नहीं होती है। इसलिए कई लोगों ने स्थानीय स्तर पर मीडिया बनाने की कोशिश की है। कई लोग समुदाय रेडियो का प्रसारण करते हैं जिसके माध्यम से किसानों को बीज, खाद और अनाज की कीमतों की जानकारी और मौसम की जानकारी दी जाती है।

वृत्त चित्र: आज स्मार्ट फोन आ जाने से वीडियो बनाना आसान और सस्ता हो गया है। अब कई लोग आम आदमी के जीवन पर वृत्त चित्र बनाते हैं और गरीब से गरीब तबके की दशा को उजागर करते हैं।

खबर लहरिया

यह आठ पन्नों का अखबार है जिसे उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले की दलित महिलाओं द्वारा निकाला जाता है। यह हर पखवाड़े को प्रकाशित होता है। यह बुंदेली भाषा का अखबार है। इसमें दलितों के मुद्दों को उजागर किया जाता है। आज इस अखबार की पहुँच बुंदेलखंड के किसानों, दुकानदारों, शिक्षकों, पंचायत सदस्यों तक है। यह उन महिलाओं द्वारा भी चाव से पढ़ा जाता है जिन्होंने अभी हाल ही में पढ़ना सीखा है।