प्राणियों में पोषण
प्राणियों में पोषक तत्वों की आवश्यकता, पोषक तत्वों के अंतर्ग्रहण की विधि और उनके उपयोग को सम्मिलित रूप से पोषण कहते हैं।
पाचन: पोषक तत्व जटिल पदार्थ होते हैं, जिनका प्राणी उस रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। पोषक तत्वों को सरल पदार्थों में बदलने की प्रक्रिया को पाचन कहते हैं। पाचन के बाद बनने वाले इन सरल पदार्थों का अवशोषण प्राणी आसानी से कर लेते हैं।
भोजन ग्रहण करने की विधियाँ
नीचे दिए गए टेबल में विभिन्न प्राणियों द्वारा भोजन अंत:ग्रहण करने की विधियाँ दी गईं हैं।
| जंतु का नाम | आहार का प्रकार | आहार की विधि |
|---|---|---|
| घोंघा | पत्ती | काटना और निगलना |
| चींटी | ठोस और द्रव | चूसना |
| चील | मांसाहार | काटना और निगलना |
| मर्मर पक्षी | मकरंद | चूसना |
| जूँ | रक्त | चूसना |
| मच्छर | रक्त | चूसना |
| तितली | मकरंद | चूसना |
| मक्खी | ठोस और द्रव | चूसना |
मानव पाचन तंत्र
मनुष्य का पाचन तंत्र एक जटिल सिस्टम है, जिसके मुख्य अंग हैं आहार नाल और कुछ ग्रंथियाँ।
आहार नाल
यह एक नली है जो मुँह से शुरु होती है और गुदा में समाप्त होती है। आहार नाल को कई भागों में बाँटा जा सकता है, जिनके नाम हैं: मुख-गुहिका, ग्रास नली (इसोफेगस), आमाशय, छोटी आँत, बड़ी आँत और गुदा।
पाचन ग्रंथियाँ
मानव पाचन तंत्र में तीन ग्रंथियाँ होती हैं: लाला-ग्रंथि या लार ग्रंथि, यकृत (लिवर) और अग्न्याशय (पैंक्रियाज)।
मुख-गुहिका
मुख द्वारा भोजन का ग्रहण होता है। मुख-गुहिका में दाँतों की दो कतारें होती हैं और एक मांसल जीभ होती है।
दाँत
मनुष्य में ऊपरी और निचले जबड़ों में दाँत अपने अपने सॉकेट में लगे रहते हैं। हर जबड़े में चार प्रकार के दाँत होते हैं: कृंतक, रदनक, अग्रचर्वणक और चर्वणक। सबसे आगे के सपाट दिखने वाले दाँतों को कृंतक कहते हैं। उसके बाद नुकीले दिखने वाले दाँतों को रदनक कहते हैं। उसके बाद ऊपर से सपाट दाँत होते हैं, जिन्हें आगे से पीछे की ओर क्रमश: अग्रचर्वणक और चर्वणक कहते हैं।
कृंतक का काम है भोजन को काटना। जब आप रोटी को काटते हैं तो कृंतक का इस्तेमाल करते हैं। रदनक का काम है भोजन को चीड़ना और कठोर चीजों को तोड़ना। जब आप अखरोट को तोड़ते हैं तो रदनक का इस्तेमाल करते हैं। अर्गचर्वणक भोजन की मोटी पिसाई करता है। उसके बाद महीन पिसाई चर्वणक द्वारा होती है।
जीभ
यह एक मांसल अंग है जो पीछे की तरफ मुख-गुहिका के आधार से जुड़ी रहती है और आगे से स्वतंत्र रहती है। जीभ का काम है भोजन में लार को मिलाना। जीभ के ऊपर स्वाद-कलिकाएँ रहती हैं, जिनके कारण हमें अलग-अलग स्वादों का पता चलता है।
ग्रास नली या ग्रसिका
यह एक लंबी नली होती है जो मुख-गुहिका से आमाशय तक जाती है। ग्रास नली की मांसपेशियाँ बारी बारी से सिकुड़ती और फैलती हैं, जिससे भोजन को आगे की ओर धकेला जाता है।
आमाशय
यह अंग्रेजी के अक्षर J के आकार का होता है। यह आहार नाल का सबसे चौड़ा भाग है और किसी थैली जैसा दिखता है। आमाशय के भीतरी अस्तर से श्लेष्मल (म्यूकस), हाइड्रोक्लोरिक एसिड और पाचक रस का स्राव होता है। म्यूकस का काम है आमाशय की आंतरिक दीवार को हाइड्रोक्लोरिक एसिड से बचाना। हाइड्रोक्लोरिक एसिड भोजन में उपस्थित रोगाणुओं को मारने का काम करता है। हाइड्रोक्लोरिक एसिड से आमाशय का माध्य्म अम्लीय हो जाता है। आमाशय के पाचक रस में उपस्थित एंजाइम अम्लीय माध्यम में ही काम कर पाते हैं।
छोटी आँत
यह एक लम्बी, पतली और अत्यधिक कुंडलित रचना है। छोटी आँत की लम्बाई 7.5 मीटर होती है। यकृत से निकलने वाला पित्त और अग्न्याशय से निकलने वाला पाचक रस छोटी आँत में आते हैं।
बड़ी आँत
इसका व्यास छोटी आँत के व्यास से अधिक होता है लेकिन इसकी लम्बाई 1.5 मीटर होती है। बड़ी आँत में कुछ लवणों और जल का अवशोषण होता है। उसके बाद अपचित भोजन और अपशिष्ट पदार्थ मलाशय में जमा हो जाते हैं, जहाँ से समय समय पर गुदा द्वारा उनका निष्कासन होता है।