7 विज्ञान

रेशों से वस्त्र तक

जांतव रेशे

जंतुओं से मिलने वाले रेशों को जांतव रेशा कहते हैं। ऊन एक जांतव रेशा है जो भेड़ों और बकरियों से मिलता है। रेशम एक जांतव रेशा है तो रेशम कीटों से मिलता है।

ऊन

भेड़, बकरी और याक के शरीर पर बालों की एक मोटी परत होती है। बालों के बीच हवा भरी होती है। हवा ऊष्मा की कुचालक होती है। इसलिए बालों की वजह से इन जानवरों को ठंड नहीं लगती है। यही कारण है कि ऊनी कपड़े गर्माहट देते हैं।

भेड़ की त्वचा पर दो तरह के बाल होते हैं:

  1. दाढ़ी के रूखे बाल
  2. त्वचा पर उपस्थित मुलायम बाल

तंतुरूपी मुलायम बाल से कार्तित ऊन बनाने के लिए रेशे मिलते हैं। भेड़ों की कुछ विशेष नस्लों में केवल मुलायम बाल ही होते हैं। विशेष रूप से जनकों का चयन करके ऐसी नस्लों की संख्या बढ़ाई जाती है। इस प्रक्रिया को वरणात्मक प्रजनन कहते हैं। वरणात्मक शब्द वरण से बना है जिसका मतलब चयन करना या चुनाव करना।

ऊन देने वाले जंतु

sheep in meadow

Fig Ref: This watercolor painting has been made by Ajay Anand

ऊन का मुख्य स्रोत भेड़ होती है, लेकिन कई अन्य जानवरों से भी ऊन निकाली जाती है। तिब्बत और लद्दाख में याक से ऊन मिलती है। जम्मू कश्मीर में पाई जाने वाली अंगोरा नस्ल की बकरियों से अंगोरा ऊन मिलती है। कश्मीर की बकरी की एक अन्य नस्ल से मुलायम ऊन मिलती है जिसे पश्मीना कहते हैं। पश्मीना ऊन का इस्तेमाल अक्सर शॉल बनाने में होता है। दक्षिणी अमेरिका में लामा और ऐल्पेका नाम के जानवरों से ऊन निकाली जाती है।

भेड़ पालन

भेड़ों को भारत के कई राज्यों में पाला जाता है: जैसे कि जम्मू, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात। भेड़ों को हरी घास और पत्तियाँ खिलाई जाती हैं। इसके अलावा उन्हें दाल, मक्का, ज्वार, खली और खनिज भी खिलाया जाता है।

भेड़ों की भारतीय नस्लें
नस्लऊन की गुणवत्ताराज्य
लोहीअच्छीराजस्थान, पंजाब
रामपुर बुशायरभूरी ऊनउत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
नाली (नली)गलीचे की ऊनराजस्थान, हरियाणा, पंजाब
बाखरवालऊनी शॉल के लिएजम्मू, कश्मीर
मारवाड़ीमोटी/खुरदरी ऊनगुजरात
पाटनवाड़ीहोजरी के लिएगुजरात

रेशों से ऊन बनाना

चरण 1: भेड़ के बालों को त्वचा की पतली परत के साथ काट लिया जाता है। इस प्रक्रिया को ऊन की कटाई कहते हैं। इसके लिए बाल ट्रिम करने की मशीन इस्तेमाल होती है। ऊन की कटाई अक्सर गर्मी के मौसम में की जाती है ताकि जाड़ा आने तक भेड़ों के बाल बढ़ जाएँ और उन्हें जाड़े में कोई तकलीफ न हो।

चरण 2: बालों को बड़ी बड़ी टंकियों में अच्छी तरह से रगड़ कर धोया जाता है ताकि गंदगी निकल जाए। इस प्रक्रिया को अभिमार्जन कहते हैं।

चरण 3: बालों को साफ करने के बाद उनकी छँटाई होती है। इस प्रक्रिया में ऊन को गठन के हिसाब से अलग-अलग किया जाता है। मोटे ऊन और पतले ऊन की अलग-अलग ढ़ेरी बनाई जाती है।

चरण 4: ऊन में से छोटे-छोटे कोमल और फूले हुए रेशों को अलग किया जाता है। इन छोटे रेशों को बर कहते हैं। कभी-कभी आपके स्वेटर पर इस तरह के बर देखने को मिलते होंगे।

चरण 5: ऊन को अच्छी तरह सुखाने के बाद अलग-अलग रंगों से रंग दिया जाता है। यह याद रखना होगा कि भेड़ से निकलने वाली ऊन सफेद, भूरी या काली होती है।

चरण 6: रेशों को सीधा करके सुखा लिया जाता है। उसके बाद रेशों से ऊन के धागे बनाये जाते हैं। इस प्रक्रिया को ऊन की रीलिंग कहते हैं।