7 विज्ञान

अपशिष्ट जल की कहानी

अपशिष्ट जल: हमारे रोजमर्रा के कामों (नहाना, कपड़े धोना, सफाई, आदि) के कारण दूषित हो चुके पानी को अपशिष्ट जल कहते हैं।

जीवन के लिए जल पर काम करने का दशक: संयुक्त राष्ट्र ने 2005-2015 को जीवन के लिए जल पर काम करने के दशक के रूप में नामित किया था। इस काम का मुख्य उद्देश्य था उन लोगों की संख्या आधी करना जिनके पास पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं था।

वाहित मल उपचार: जल भंडारों में बहाए जाने से पहले अपशिष्ट जल से अशुद्धियाँ हटाने की प्रक्रिया को वाहित मल उपचार या सीवेज ट्रीटमेंट कहते हैं।

सीवेज: घरों, दफ्तरों, होटलों, आदि से निकलने वाला दूषित जल (जिसमें कई प्रकार की अशुद्धियाँ रहती हैं) को सीवेज या वाहित मल कहते हैं।

सीवेज के घटक
अशुद्धियों के प्रकारउदाहरण
जैव अशुद्धियाँमानव मल, पशु अपशिष्ट, तेल, यूरिया, कीटनाशक, शाकनाशी, बेकार फल और सब्जियाँ
अजैव अशुद्धियाँनाइट्रेट, फॉस्फेट, खनिज
पोषकफॉस्फोरस, नाइट्रोजन
बैक्टीरीयापेचिश, टायफ़ॉयड, आदि रोगकारक
अन्य रोगाणुहैजा, पीलिया, आदि रोगकारक

सीवर: अपशिष्ट जल को ले जाने वाले पाइप।

सीवरेज: सीवर का नेटवर्क।

मेनहोल: सीवरेज में समुचित दूरी पर बड़े छेद बने होते हैं, जिनसे होकर सीवर की सफाई की जा सकती है। मेनहोल के ऊपर मजबूत ढ़क्कन लगा होता है ताकि ट्रैफिक को गुजरने में कोई परेशानी न हो। आमतौर पर हर 50 से 60 मीटर की दूरी पर मेनहोल होते हैं। इसके अलावा दो पाइपों के जंक्शन पर और पाइपों के मोड़ पर मेनहोल बने होते हैं।

वाहित मल उपचार संयंत्र
(वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट)

अपशिष्ट जल को नदियों या तालाबों में छोड़े जाने से पहले उपचार के लिए बड़े बड़े संयंत्रों में भेजा जाता है। इन संयंत्रों को वाहित मल उपचार संयंत्र कहते हैं। वाहित मल उपचार में भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाएँ इस्तेमाल की जाती हैं।

Sewage Treatment Steps

भौतिक प्रक्रिया

फिल्ट्रेशन: वाहित मल को एक बार-स्क्रीन से गुजारा जाता है जिसमें लंबे छड़ों से बना हुआ फिल्टर होता है। इस चरण में बड़ी वस्तुएँ, जैसे कपड़ा, छड़ी, टहनी, प्लास्टिक बैग, कैन, आदि अलग हो जाते हैं।

रेत और कंकड़ को हटाना: वाहित मल को एक सेडिमेंटेशन टैंक से धीमी गति से गुजारा जाता है। इस टैंक में रेत और कंकड़ तली में बैठ जाते हैं।

सेडिमेंटेशन: वाहित मल को एक अन्य सेडिमेंटेशन टैंक में भेजा जाता है। इस टैंक में मानव मल जैसे ठोस पदार्थ तली में बैठ जाते हैं। तेल और फैट सतह पर तैरते रहते हैं। एक स्क्रैपर की मदद से पानी से मल को अलग कर दिया जाता है। यहाँ से निकलने वाली अशुद्धि को स्लज (आपंक) कहते हैं जिसे एक स्लज टैंक में भेज दिया जाता है। इस स्लज का इस्तेमाल बायोगैस बनाने या फिर खाद बनाने के लिए होता है। सतह पर तैरने वाली अशुद्धियों को एक स्किमर की सहायता से अलग कर लिया जाता है। इस चरण के बाद निकलने वाले जल को निर्मलीकृत जल (क्लैरिफाइड) कहते हैं।

जैविक प्रक्रिया

एअरेशन (वातायन): निर्मलीकृत जल में हवा पंप की जाती है ताकि बैक्टीरिया पनप सकें। बैक्टीरिया बचे खुचे मानव मल को समाप्त कर देते हैं। उसके बाद पानी में भोजन का कचरा, साबुन और अन्य बेकार पदार्थ बच जाते हैं। कई घंटों के बाद बैक्टीरिया तली में बैठ जाते हैं। उसके बाद ऊपर से पानी को हटा दिया जाता है। यह पानी सिंचाई के लिए सुरक्षित होता है।

रासायनिक प्रक्रिया

क्लोरिनेशन: पिछले चरण में मिलने वाला पानी मानव उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं होता है। इसे क्लोरीन या ओजोन से ट्रीट किया जाता है। क्लोरीन के लिए अक्सर ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल होता है। क्लोरीन के कारण पानी में मौजूद रोगाणु मर जाते हैं। उसके बाद मिलने वाला जल पीने के लायक होता है।

घर में साफ सफाई

तेल या फैट को नाली में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इनसे नाली जाम हो सकती है। तेल और फैट से मिट्टी के पोर भी जाम हो जाते हैं, जिससे मिट्टी की जल रिसाव की क्षमता घट जाती है।

पेंट, कीटनाशी, औषधि, जैसे रसायनों को नाली में नहीं डालना चाहिए। ये उन बैक्टीरिया को मार देते हैं जो पानी को साफ करने का काम करते हैं।

इस्तेमाल के बाद चाय पत्ती, ठोस भोजन, खिलौने, नैपकिन, आदि को नाली में नहीं डालना चाहिए। इनसे नाली जाम हो जाती है और ऑक्सीजन सीवेज तक नहीं पहुँच पाता है। आपको ध्यान रखना होगा कि निम्नीकरण के लिए ऑक्सीजन महत्वपूर्ण होता है।

स्वच्छता और बिमारी

अपने घर और आसपास सफाई रखने को ही स्वच्छता कहते हैं। किसी भी व्यक्ति और उसके समुदाय के स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता अहम होती है।

आज भी कई लोग खुले में शौच करते हैं। खुले में पड़ा हुआ मानव मल मक्खियों और कीटों को अपनी ओर आकर्षित करता है। ये कीट कई खतरनाक बीमारियों के रोगाणुओं के वाहक होते हैं। इससे हैजा, पेचिश, पीलिया, आदि बिमारियों के फैलने का खतरा रहता है। यदि सतत प्रचार किया जाए तो खुले में शौच की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

यदि स्वच्छता न हो तो इससे भौमजल भी प्रदूषित हो जाता है। यदि पानी किसी जगह रुक जाए तो वहाँ पर मच्छर पनपने लगते हैं। मच्छर अपने अंडे स्थिर पानी में देते हैं। मच्छरों द्वारा कई खतरनाक रोग फैलते हैं, जैसे कि मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, फीलपाँव, आदि।

सीवेज निबटान के अन्य तरीके

यदि किसी स्थान पर सीवर लाइन नहीं हो तो सीवेज का ऑन साइट निबटान किया जा सकता है। मानव मल के निबटान के लिए सेप्टिक टैंक ऐसी जगहों के लिए सही होते हैं। सेप्टिक टैंक में समय बीतने के साथ मानव मल अपघटित होकर कम्पोस्ट बन जाता है।

जैव कचरे को कम्पोस्टिंग पिट में डालकर उससे कम्पोस्ट बनाया जा सकता है। सीवेज को बायोगैस प्लांट में इस्तेमाल करके उससे बायोगैस बनाई जा सकती है।

आजकल केमिकल टॉयलेट का इस्तेमाल शुरु हो चुका है। केमिकल शौचालय में मानव मल के निबटान के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। इसलिए ये पर्यावरण हितैषी होते हैं। केमिकल टॉयलेट रेलगाड़ियों के लिए अच्छे साबित हो रहे हैं।

सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता

भारत जैसे सघन आबादी वाले देश में सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता महत्वपूर्ण हो जाती है। हमारे देश में आप किसी भी सार्वजनिक स्थान पर चले जाएँगे तो आपको हर तरफ आदमी ही आदमी नजर आएँगे, यानि हर तरफ भीड़भाड़। अधिक भीड़ होने के कारण इन स्थानों पर गंदगी अधिक होती है। सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता रखना हमारी भी जिम्मेदारी है। केवल सफाई कर्मचारियों के भरोसे हम स्वच्छता के लक्ष्य को नहीं पा सकते हैं। कचरे को हमेशा कूड़ेदान में ही डालना चाहिए। सार्वजनिक स्थानों पर इधर उधर थूकने से बचना चाहिए। इसके लिए खास तौर से बने कूड़ेदानों का इस्तेमाल करना चाहिए।