10 इतिहास

समकालीन शहरी जीवन

औपनिवेशिक भारत के शहर

पश्चिमी यूरोप की तुलना में भारत की स्थिति कुछ अलग थी। अंग्रेजी राज के समय भारत में शहरीकरण की गति धीमी थी। बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत की आबादी का 11% से भी कम हिस्सा शहरों में रहता था। अधिकांश शहरी लोग बम्बई, मद्रास और कलकत्ता जैसे तीन प्रेसिडेंसी शहरों में रहते थे।

प्रेसिडेंसी शहर बहुउद्देशीय शहर हुआ करते थे। इन शहरों में मुख्य बंदरगाह, गोदाम, दफ्तर, सैनिक छावनी, शिक्षण संस्थान, म्यूजियम और लाइब्रेरी हुआ करते थे। ये शहर व्यवसाय और राजनीति के केंद्र थे। इसलिये इन शहरों की जनसंख्या में वृद्धि हुई थी।

उन्नीसवीं सदी के अंत के बाद से बम्बई की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई थी। बम्बई की जनसंख्या 1872 में 644,000 से बढ़कर 1941 में 1,500,00 हो गई।

बम्बई

सत्रहवीं सदी में बम्बई पुर्तगाल के अधीन था। यह सात द्वीपों का एक समूह था। 1661 में ब्रिटेन के राजा चार्ल्स द्वितीय की शादी पुर्तगाल की राजकुमारी के साथ हुई और बम्बई शहर को उपहार स्वरूप चार्ल्स द्वितीय को दे दिया गया। इस तरह से बम्बई का नियंत्रण ब्रिटिश हुकूमत के हाथों में आ गया। उसके बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपना कामकाज सूरत से बम्बई शिफ्ट कर दिया।

शुरु में गुजरात के सूती वस्त्रों के लिए बम्बई निर्यात का मुख्य केंद्र था। बाद में उन्नीसवीं सदी में कच्चे माल की भारी मात्रा बम्बई से होकर बाहर भेजी जाने लगी। धीरे धीरे बम्बई एक महत्वपूर्ण प्राशासनिक केंद्र बन गया। उन्नीसवीं सदी के अंत तक बम्बई एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र बन चुका था।

शहर में रोजगार

एंगलो मराठा युद्ध में मराठों की हार के बाद 1819 में बम्बई प्रेसिडेंसी की राजधानी बनी बम्बई। कपास और अफीम के व्यापार में वृद्धि के बाद व्यापारियों, बैंकर, कारीगर और दुकानदारों का एक बड़ा समुदाय बम्बई में आकर बस गया। कपड़ा मिलों के खुलने के बाद इस शहर की तरफ लोगों का पलायन और भी बढ़ गया।

बम्बई में पहला सूती कपड़ा मिल 1854 में शुरु हुआ। 1921 तक यहाँ सूती कपड़े की 85 मिलें थीं। इन कारखानों में लगभग 146,000 मजदूर काम करते थे। 1881 से 1931 के बीच इस शहर में रहने वाले लोगों के एक चौथाई हिस्से का ही जन्म यहाँ हुआ था और बाकी के तीन चौथाई आप्रवासी थे।

1919 से 1926 के बीच की अवधि में मिल में काम करने वाले मजदूरों में से 23% महिलाएँ थीं। उसके बाद उनकी संख्या घटते घटते 10% ही रह गई।

रेल की शुरुआत ने इस शहर की ओर आप्रवास को और बढ़ावा दिया। 1888–89 में कच्छ में अकाल पड़ने के कारण लोग भारी संख्या में बम्बई की ओर पलायन कर गये। 1898 में जिले के अधिकारी प्लेग की आशंका से इतना डर गये कि उन्होंने लगभग 30,000 लोगों को 1901 तक उनके घर वापस भेज दिया।