8 नागरिक शास्त्र

सामाजिक न्याय

बाजार हर जगह लोगों का शोषण करता है, चाहे वे मजदूर हों, ग्राहक हों या फिर उत्पादक हों। लोगों को इस तरह के शोषण से बचाने के लिए सरकार कुछ कानून बनाती है। इन कानूनों से बाजार में गलत परिपाटी को रोकने में काफी मदद मिलती है।

प्राइवेट कम्पनी, ठेकेदार, व्यवसायी आमतौर पर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की कोशिश करते हैं। इस कोशिश में वे मजदूरों का हक मार लेते हैं और उन्हें कम पगार देते हैं। मजदूरों को कम पगार देना गैरकानूनी है। इसलिए न्यूनतम मजदूरी पर एक कानून है जो यह सुनिश्चित करता है कि मजदूरों को उचित मजदूरी मिले। हर कुछ वर्षों के बाद न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी होती है।

इसी तरह से उत्पादकों और ग्राहकों के हितों की रक्षा करने के लिए भी कानून बनाए गए हैं। इन कानूनों से यह सुनिश्चित होता है कि मजदूर, ग्राहक और उत्पादक के बीच के रिश्ते शोषण पर आधारित न हों।

इन कानूनों को बनाकर और लागू करके सरकार प्राइवेट कम्पनियों और व्यवसायियों की गतिविधियों पर नियंत्रण रखती है ताकि सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके। इनमें से कई नियमों का आधार संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार हैं। उदाहरण के लिए, शोषण के विरुद्ध अधिकार का कहना है कि किसी भी व्यक्ति को कम मजदूरी या बंधुआ मजदूरी के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। संविधान में यह भी कहा गया है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी फैक्ट्री, खान या खतरनाक काम पर नहीं लगाया जा सकता है।

मजदूर की कीमत

भारत में श्रम सस्ता होने के कारण कई विदेशी कम्पनियाँ यहाँ आती हैं। इन कम्पनियों के अपने देश में भारत की तुलना में मजदूरी बहुत ज्यादा है। बेरोजगारी के कारण भारत के मजदूर कम वेतन पर भी अधिक घंटे काम करने को तैयार रहते हैं। भारत में इन कम्पनियों को मजदूरों के आवास पर कोई खर्च नहीं करना होता है। इससे उनकी काफी बचत होती है और मुनाफा अधिक होता है।

भारत में बेरोजगारी की विकट समस्या है। इसलिए असुरक्षित स्थितियों में भी मजदूर काम करने को तैयार होते हैं। एक मजदूर यदि काम छोड़कर चला जाता है तो उसकी जगह लेने के लिए कई बेरोजगार लाइन में खड़े रहते हैं। रोजगार देने वाले लोग मजदूरों की इस मजबूरी का फायदा उठाते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत में मजदूरों की कोई कीमत नहीं है।

सुरक्षा के मुद्दे को समझने के लिए हम भोपाल गैस त्रासदी का उदाहरण ले सकते हैं। यह भयानक त्रासदी 1984 में हुई थी, जिसमें सैंकड़ों लोग मारे गए थे और हजारों लोग अपाहिज हो गए थे। आज भी आपको निर्माण स्थलों, खानों और कारखानों में दुर्घटना के किस्से सुनने को मिलेंगे। इनमें से अधिकतर दुर्घटनाएँ नियोजक की लापरवाही के कारण होती हैं।

सुरक्षा नियमों को लागू करना

कानून बनाने और उनको लागू करने का काम सरकार का है। यह देखना कि जीवन के अधिकार का उल्लंघन नहीं हो रहा है, सरकार की जिम्मेदारी है। तेजी से बढ़ते औद्योगीकरण के दौर में मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए और भी कड़े कानूनों की जरूरत है। केवल कानून बनने से कुछ नहीं होता, उन्हें सख्ती से लागू करना भी जरूरी होता है।

पर्यावरण सुरक्षा के नियम

जब भोपाल गैस त्रासदी हुई थी, तब पर्यावरण सुरक्षा के लिए बहुत ही कम नियम थे। जो भी थोड़े बहुत कानून थे, उनका पालन नहीं होता था। लोग पर्यावरण को एक मुफ्त मिलने वाली वस्तु समझते थे। हर उद्योग बिना किसी डर के हवा और पानी को प्रदूषित करता था। कुल मिलाकर कहें तो पर्यावरण के लिए कोई इज्जत ही नहीं थी।

भोपाल गैस त्रासदी ने सबकी आँखें खोल दी। इस त्रासदी ने पर्यावरण के मुद्दे को सबके सामने ला दिया। इस त्रासदी में वैसे लोग भी प्रभावित हुए थे जिनका उस फैक्ट्री से कोई लेना देना नहीं था। लोगों की समझ में आने लगा था कि तत्कालीन कानून मजदूरों की सुरक्षा की बात तो करते थे लेकिन आम आदमी की सुरक्षा के लिए उन कानूनों में कोई प्रावधान नहीं था।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं के दबाव में आकर सरकार ने पर्यावरण पर नये कानून बनाए। उसके बाद पर्यावरण को पहुँचने वाले किसी भी नुकसान के लिए प्रदूषण फैलाने वाले को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा।

निष्कर्ष

लोगों को बेईमानी से बचाने के लिए कानून की जरूरत होती है। अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में प्राइवेट कम्पनियाँ, ठेकेदार, व्यवसायी आदि अक्सर मजदूरों को कम मजदूरी देते हैं, बच्चों को काम पर रखते हैं, काम करने के स्थान पर सुरक्षा की अनदेखी करते हैं और पर्यावरण को होने वाले नुकसान से आँखें मूंद लेते हैं।

इसलिए, प्राइवेट कम्पनियों की गतिविधियों पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी सरकार की बनती है। सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए बेईमानी को रोकना बहुत जरूरी है। इसका मतलब है कि सरकार को जरूरी कानून बनाने चाहिए और उन्हें लागू भी करना चाहिए। यदि कोई कानून सही तरीके से लागू न किया जाए तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है। यदि कानून कमजोर हों या उन्हें ठीक ढ़ंग से लागू न किया जाए तो वे फायदा पहुँचाने की जगह नुकसान ही पहुँचाते हैं।