10 विज्ञान

लाइट की स्कैटरिंग

जब लाइट की एक किरण किसी छोटे पार्टिकल से टकराती है तो यह अपने रास्ते से मुड़ जाती है। इस घटना को लाइट की स्कैटरिंग कहते हैं। किसी खास रंग के लाइट की स्कैटरिंग पार्टिकल के साइज पर निर्भर करता है। अगर पार्टिकल का साइज छोटा होता है तो मुख्य रूप से ब्लू रंग स्कैटर होता है। अगर पार्टिकल का साइज बड़ा होता है तो मुख्य रूप से लाल रंग स्कैटर होता है। यदि पार्टिकल का साइज बहुत बड़ा होता है तो स्कैटर होने वाला प्रकाश सफेद दिखता है।

टिंडाल इफेक्ट

जब लाइट किसी कोलॉयड से पास करता है तो लाइट की स्कैटरिंग के कारण लाइट की एक बीम दिखती है। इस घटना को टिंडाल इफेक्ट कहते हैं। रोशनदान या पेड़ों की पत्तियों से आने वाली रोशनी की बीम टिंडाल इफेक्ट का उदाहरण है।

आसमान नीला क्यों होता है?

हवा में मौजूद हवा के अणु और अन्य छोटे पार्टिकल का साइज विजिबल लाइट की वेवलेंथ से कम होता है। इसलिये स्पेक्ट्रम के ब्लू छोर वाले रंगों की स्कैटरिंग अधिक होती है। इसलिये आसमान नीला दिखाई देता है।

अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट को, और अत्यधिक ऊँचाई पर उड़ने वाले पायलट को आकाश का रंग काला दिखाई देता है। ऐसा इसलिये होता है कि उतनी ऊँचाई पर हवा में नगण्य मात्रा में पार्टिकल होते हैं। पार्टिकल नहीं होने के कारण लाइट की स्कैटरिंग नहीं होती है और आसमान का रंग काला दिखाई देता है।

सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूरज का रंग लाल क्यों होता है?

सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की रोशनी को हमारी आँखों तक पहुँचने के लिये अधिक दूरी तय करनी पड़ती है। चूँकि लाल रोशनी की स्कैटरिंग सबसे कम होती है इसलिये यह अधिक दूर तक जा पाती है। लम्बी दूरी तय करने में नीली रोशनी का अधिकाँश हिस्सा स्कैटर होकर इधर उधर हो जाता है। इसलिये सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूरज का रंग लाल होता है। दोपहर के समय ब्लू और वायलेट लाइट की थोड़ी बहुत स्कैटरिंग होती है, इसलिये दोपहर में सूरज सफेद दिखता है।

सारांश