गति एवं मापन
मापन: किसी अज्ञात राशि की वैसे ही किसी ज्ञात राशि से तुलना करने की क्रिया को मापन कहते हैं।
मापन का परिणाम: मापन के परिणाम के दो भाग होते हैं। एक भाग में कोई संख्या होती है दूसरे भाग में मात्रक होता है। जिस ज्ञात राशि का उपयोग हम मापन के लिये करते हैं उसे मात्रक कहते हैं। उदाहरण: जब आप कहते हैं कि आपकी लंबाई 150 सेमी है तो इस मापन में एक संख्या है (150) और एक मात्रक है (सेंटीमीटर)।
मापन के पुराने मात्रक: मापन के मानक मात्रक के विकास से पहले हम कई तरह के मात्रकों का उपयोग करते थे। इनमे से कुछ का उपयोग आज भी होता है। उदाहरण: बालिश्त, हाथ, फुट, बाँह की लंबाई, आदि। इस तरह के मात्रक अक्सर शरीर के किसी अंग की लंबाई पर आधारित होते हैं। शरीर के अंगों की लंबाई अलग-अलग व्यक्ति में अलग-अलग हो सकती है। इससे मापन में एकरूपता नहीं आती है और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
मापन के मानक मात्रक
मापन में एकरूपता रखने के लिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मानक मात्रकों का इस्तेमाल शुरु हुआ। ऐसा माना जाता है कि नेपोलियन ने कई मानक मात्रकों की शुरुआत की थी, जिनमे से अधिकतर मात्रकों का इस्तेमाल आज भी हो रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय मात्रक प्रणाली (SI प्रणाली): यह दुनिया में सबसे अधिक मान्य मात्रक प्रणाली है। यह MKS (मीटर किलोग्राम सेकंड) प्रणाली पर आधारित है। लम्बाई, भार और समय को मापन की मूलभूत राशि माना जाता है। अन्य राशियों की गणना इन्हीं के आधार पर की जाती है। इस प्रणाली के अनुसार, लम्बाई का मात्रक मीटर, भार का मात्रक किलोग्राम और समय का मात्रक सेकंड है। समय के मात्रक को छोड़कर इस पद्धति के अन्य मात्रक दशमलव प्रणाली पर आधारित हैं। दशमलव प्रणाली के कारण अंतर्राष्ट्री मात्रक प्रणाली को इस्तेमाल करना आसान हो जाता है।
प्रत्यक्ष मापन: जब हम किसी राशि को प्रत्यक्ष रूप से मापते हैं तो इसे प्रत्यक्ष मापन कहते हैं। जैसे यदि आप एक पैमाना लेकर किसी लंबाई को मापते हैं तो यह प्रत्यक्ष मापन हुआ।
परोक्ष मापन: कभी कभी हम कुछ मापन प्रत्यक्ष रूप से नहीं लेते हैं। जैसे यदि आपको किसी पेड़ का घेरा मापना हो तो आप पैमाने का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। आप पहले एक रस्सी से पेड़ का घेरा नापेंगे और फिर उस रस्सी को किसी पैमाने से मापेंगे।
लंबाई मापने के सही चरण:
- इसके लिये पैमाने को लम्बाई के अनुदिश रखना चाहिए।
- पैमाने पर के शून्य को आरंभिक बिंदु पर रखना चाहिए। यदि पैमाने का शून्य टूटा हुआ है तो किसी अन्य बिंदु को आरंभिक बिंदु पर रखना चाहिए। यदि आप 1 से शुरु करते हैं और पैमाने पर का पठन 15 आता है तो यथार्थ पठन = 15 – 1 = 14
- मापन के समय आँखों की स्थिति सटीक होनी चाहिए। आपकी आँखें मापे जाने वाले बिंदु के ठीक ऊपर होनी चाहिए। आँख की स्थिति सही न होने से पैरेलैक्स त्रुटि होती है जिससे गलत पठन मिलता है।
गति
समय बदलने के साथ किसी वस्तु की स्थिति में होने वाले परिवर्तन को गति कहते हैं। मान लीजिए कि आप सड़क पर किसी बस को देख रहे हैं जो किसी खास बिंदु पर है। पाँच मिनट बाद बस किसी दूसरे बिंदु पर नजर आती है। ऐसी स्थिति में आप कह सकते हैं कि बस गति कर रही है।
गति के प्रकार
सरल रेखीय गति: जब गति किसी सरल रेखा के अनुदिश होती है तो इसे सरल रेखीय गति कहते हैं। उदाहरण: एक सीधी सड़क पर कार की गति।
![linear motion](science-image/linear_motion.png)
![curvilinear motion](science-image/curvilinear-motion.png)
वर्तुल गति: जब किसी वक्रीय रेखा के अनुदिश गति होती है तो इसे वर्तुल गति कहते हैं। जैसे: किसी मोड़ पर कार की गति।
चक्रीय गति: जब किसी वृत्तीय पथ पर गति होती है तो इसे चक्रीय गति कहते हैं। उदाहरण; अपनी कक्षा में घूमता हुआ कोई उपग्रह।
घूर्णन: जब कोई वस्तु किसी अक्ष पर घूमती है तो ऐसी गति को घूर्णन कहते हैं। उदाहरण: पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना।
![circular motion](science-image/circular_motion.png)
![periodic motion](science-image/periodic-motion.png)
आवर्ती गति: जब गति एक नियत समय पर बार बार दोहराई जाती है तो इसे आवर्ती गति कहते हैं। उदाहरण: घड़ी के पेंडुलम की गति।
यातायात की कहानी
- शुरु शुरु में आदमी पैदल ही भ्रमण करता था। समय बीतने के साथ आदमी ने लोगों और सामान को ढ़ोने के लिए पशुओं का प्रयोग शुरु किया।
- जलीय जीवों से प्रेरणा लेकर आदमी ने नाव बनाई होगी। शुरुआत में लकड़ी के बड़े लट्ठे को खोखला करके नाव बनाई जाती थी। बाद में इसमें सुधार करते हुए धारारेखीय आकार के नाव बनने लगे।
- पहिये के आविष्कार ने यातायात के साधनों में क्रांति ला दी। उसके बाद पशुओं से खींची जाने वाली गाड़ियाँ बनी होंगी।
- भाप इंजन के आविष्कार से यातायात के साधनों में दूसरी क्रांति आई। भाप से चलने वाले इंजन ने जानवरों की जगह ले ली। भाप इंजन के कारण एक साथ सैंकड़ों लोगों को लाना ले जाना आसान हो गया। आंतरिक दहन इंजन के आविष्कार के बाद स्वचालित गाड़ियाँ बनने लगीं। जेट इंजन के आ जाने से हवाई यात्रा आसान हो गई।