8 भूगोल

जल

पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई हिस्सा जल से ढ़का हुआ है। लेकिन इसमें से अधिकतर जल सागरों और समुद्रों में है। खारा होने के कारण समुद्र का पानी मनुष्य के उपभोग के लायक नहीं होता है। पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का केवल 2.7% ही मीठे पानी या अलवणीय जल के रूप में है। इसमें से 70% बर्फ के रूप में ग्लेशियर और आइसबर्ग में है। इसका मतलब यह हुआ कि 1% से भी कम पानी मानव उपभोग के लिये उपलब्ध है। मीठे पानी का यह भाग भौमजल के रूप में और नदियों तथा तालाबों में पृष्ठीय जल के रूप में उपलब्ध है।

Availability of Water on Earth

इससे यह साफ है कि मीठा जल हमारे लिए बहुमूल्य संसाधन है। पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा स्थिर है। पानी विभिन्न रूपों में बदलते हुए सागर, वायु और जमीन से होते हुए फिर सागर में पहुँच जाता है। इस प्रक्रिया को जल चक्र कहते हैं।

Jal Chakra

इंसान पानी का इस्तेमाल विभिन्न कामों के लिए करते हैं, जैसे पीने, नहाने, कपड़े धोने, आदि। इसके अलावा खेती, उद्योग और बिजली बनाने में भी पानी का इस्तेमाल होता है।

जनसंख्या के बढ़ने के साथ साथ पानी का दोहन बड़े पैमाने पर बढ़ गया है। इससे कई क्षेत्रों में पानी की कमी होने लगी है। दुनिया के कई हिस्सों में आज पीने के पानी की कमी की समस्या खड़ी हो गई है। आज लगभग हर महादेश में पानी की कमी की समस्या है।

जल संसाधन का संरक्षण

जल के दोहन और प्रदूषण के कारण आज कई स्थानों का पानी हमारे इस्तेमाल लायक नहीं रहा है। जलाशयों में वाहित मल, कृषि रसायन और औद्योगिक बहिस्राव जल को या तो थोड़ा बहुत शोधन के बाद या बिना शोधन के बहा दिया जाता है। इससे जल में अनेक प्रकार की अशुद्धियाँ मिल जाती हैं। यदि अपशिष्टों का सही से शोधन हो तो जल प्रदूषण से बचा जा सकता है।

वन और वनस्पति आवरण से जल का प्रवाह कम हो जाता है जिससे भौमजल के पुनर्भरण में मदद मिलती है। वर्षा जल संग्रहण द्वारा जल को बेकार बहने से रोका जा सकता है। नहरों को ठीक से पक्का करने से जल रिसाव से होने वाली बरबादी को रोका जा सकता है। स्प्रिंकलर और ड्रिप इरिगेशन की विधियों द्वारा जल संरक्षण में मदद मिलती है।