8 इतिहास

1857 का विद्रोह

कम्पनी का जवाबी हमला

कम्पनी ने उस विद्रोह को कुचलने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने का फैसला ले लिया। इंगलैंड से और सेना बुलाई गई। विद्रोहियों को सजा देने के लिए नए नियम बनाए गए। उसके बाद कम्पनी ने विद्रोह के केंद्रों पर धावा बोलना शुरु कर दिया। 1857 के सितंबर में दिल्ली पर फिर से कम्पनी का कब्जा हो गया।

आखिरी मुगल बादशाह की गिरफ्तारी

बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बेटों को उसके सामने गोली मार दी गई। बहादुर शाह जफर पर मुकदमा हुआ और उसे आजीवन कैद की सजा सुनाई गई। 1858 के अक्तूबर में बहादुर शाह जफर और उनकी बेगम जीनत महल को रंगून के जेल में भेज दिया गया। 1862 के नवंबर में रंगून की जेल में आखिरी मुगल बादशाह ने अपनी आखिरी सांसें लीं।

लंबी ल‌ड़ाई

अंग्रेजों को चीजों पर पूरी तरह काबू पाने में दो वर्ष लग गये। 1858 के मार्च में लखनऊ पर कब्जा जमाया गया। रानी लक्ष्मी बाई को 1858 के जून में एक लड़ाई में मार दिया गया। तात्या टोपे मध्य भारत के जंगलों में भाग गए और वहीं से आदिवासियों और किसानों के साथ मिलकर गुरिल्ला युद्ध जारी रखा। तात्या टोपे को आखिरकार पकड़ लिया गया, फिर उनपर मुकदमा चलाया गया और 1859 के अप्रैल में उन्हें फांसी दे दी गई।

बदलती राजभक्ति

हार के सिलसिलों के साथ ही कई लोग विद्रोहियों का साथ छोड़ने लगे। अंग्रेजों ने भी लोगों का भरोसा जीतने के लिए सभी हथकंडे अपनाए। अंग्रेजों का साथ देने वाले जमींदारों के लिऐ ईनाम घोषित किए गये। ऐसे जमींदारों को उनकी जमीन पर उनके पुराने अधिकार बहाल कर दिये गये। विद्रोहियों से कहा गया कि यदि वे अंग्रेजों के पास समर्पण करते हैं तो उन्हें सुरक्षा मिलेगी और उनके अधिकार भी मिलेंगे। उसमें केवल एक शर्त थी कि किसी ने किसी गोरे की हत्या न की हो। सैंकड़ों सिपाहियों, विद्रोहियों, नवाबों और राजाओं को फांसी दे दी गई।

विद्रोह के बाद

1859 के अंत तक अंग्रेज इस देश पर दोबारा नियंत्रण करने में कामयाब हो गए। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में वे अपनी पुरानी नीतियों के हिसाब से शासन करने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए अंग्रेजों ने कई बदलाव शुरु किए जिनमें से कुछ नीचे दिए गये हैं।

ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 1858 में एक नया ऐक्ट पास किया। उस ऐक्ट ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से सत्ता ब्रिटिश क्राउन के हाथों में दे दी, यानि अब ब्रिटिश सरकार सीधे तौर पर भारत की सत्ता के लिए जिम्मेदार थी। भारत के मामलों को बेहतर और जिम्मेदाराना तरीके से देखभाल करने के लिए ऐसा किया गया। ब्रिटिश कैबिनेट के एक सदस्य को भारत का सेक्रेटरी ऑफ स्टेट बनाया गया। उसे भारत के शासन की हर बात की जिम्मेदारी दी गई। उसके कामकाज में मदद के लिए उसे एक काउंसिल दी गई जिसका नाम था इंडिया काउंसिल। गवर्नर जेनरल के टाइटल को बदलकर वाइसरॉय ऑफ इंडिया कर दिया गया। वाइसरॉय अब ब्रिटिश क्राउन का पर्सनल रिप्रेजेंटेटिव यानि प्रतिनिधि था।

हर राजा और नवाब को यह भरोसा दिया गया कि भविष्य में कभी भी उसके इलाके पर कब्जा नहीं किया जाएगा। वे अपने उत्तराधिकारियों (जिसमें दत्तक पुत्र भी शामिल थे) को अपना राज सौंपने के लिए स्वतंत्र थे। लेकिन उन्हें ब्रिटिश महारानी की अधीनता को स्वीकार करना था। भारतीय राजाओं को ब्रिटिश क्राउन के अधीन ही अपना राज चलाना था।

भारतीय सेना में भारतीय सिपाहियों की संख्या को कम करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या को बढ़ाने का फैसला लिया गया। अवध, बिहार, मध्य भारत और दक्षिण भारत से सैनिकों को बहाल न करने का फैसला लिया गया। उसके बदले में गोरखा, सिख और पठान सैनिकों को बहाल करने का फैसला लिया गया।

मुसलमानों को शक की निगाह से देखा जाने लगा और बड़े पैमाने पर उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई।

अंग्रेजों ने स्थानीय धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं और रिवाजों को सम्मान देने का निर्णय लिया।

जमींदारों के अधिकारों की रक्षा के लिए नीतियाँ बनाई गईं।