10 विज्ञान

तत्वों का आवर्ती वर्गीकरण

आधुनिक पीरियॉडिक टेबल

हेनरी मोसले ने 1913 में दिखाया कि एटमिक मास की तुलना में एटमिक नम्बर कहीं अधिक मूलभूत गुण है। इस नई खोज के संदर्भ में मेंडेलीव के नियम में सुधार करते हुए आधुनिक पीरियॉडिक नियम को बनाया गया।

मॉडर्न पीरियॉडिक नियम: "तत्वों के गुण धर्म उनके परमाणु संख्या के आवर्त फलन होते हैं।"

जब तत्वों को उनकी परमाणु संख्या के बढ़ते क्रम में लगाया गया तो नये तत्वों की खोज के बारे में बेहतर भविष्यवाणी करना संभव हो पाया। ऐसा इसलिये संभव हो पाया क्योंकि एटमिक नम्बर हमेशा इकाई संख्या द्वारा बढ़ता है, जबकि एटमिक मास के साथ शायद ही ऐसा होता है।

मॉडर्न पीरियॉडिक टेबल में तत्वों का स्थान

मॉडर्न पीरियॉडिक टेबल में 18 ग्रुप हैं और 7 पीरियड हैं।

किसी तत्व के ग्रुप का नम्बर और उस तत्व के वैलेंस इलेक्ट्रॉन का नम्बर एक ही होता है। उदाहरण के लिये हाइड्रोजन, लीथियम और सोडियम को लेते हैं। ये सभी ग्रुप 1 के सदस्य हैं और इन सब के वैलेंस इलेक्ट्रॉन की संख्या भी 1 है।

नोट: हाइड्रोजन की स्थिति अभी भी साफ नहीं हुई थी। हाइड्रोजन की बाहरी कक्षा में 1 इलेक्ट्रॉन होने के कारण इसे ग्रुप 1 में रखा गया है। लेकिन हाइड्रोजन की बाहरी कक्षा में अपने निकटतम नोबल गैस (हीलियम) की तुलना में 1 इलेक्ट्रॉन कम है। इस नजरिये से इसे ग्रुप 17 में भी रखा जा सकता है।

किसी तत्व के पीरियड का नम्बर और उस तत्व के एक परमाणु में कक्षाओं की संख्या बराबर होती है। उदाहरण के लिये लीथियम, बेरीलियम, बोरोन और कार्बन को लेते हैं। इन सबके परमाणु में दो कक्षाएँ है। इसलिये ये सभी पीरियड 2 में आते हैं। इस तरह से हर एक नये पीरियड का मतलब होता है इलेक्ट्रॉन की एक नई कक्षा का जुड़ना।

किसी भी पीरियड में तत्वों की संख्या को कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन भरने के संदर्भ में बताया जा सकता है। किसी भी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्या को 2n2 से दिखाया जाता है, जहाँ n कक्षा की संख्या है।

K Shell = 2 × 12 = 2 (पहले पीरियड में 2 तत्व हैं।)

L Shell = 2 × 22 = 8 (दूसरे पीरियड में 8 तत्व हैं।)

M Shell = 2 × 32 = 18 (लेकिन सबसे बाहरी कक्षा में अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉन ही रह सकते हैं, इसलिए तीसरे पीरियड में 8 तत्व हैं।)

मॉडर्न पीरियॉडिक टेबल का ट्रेंड

वैलेंसी: जब हम किसी पीरियड में बाएँ से दाएँ जाते हैं, तो वैलेंसी पहले तो 1 से बढ़कर 4 हो जाती है और फिर घटते-घटते जीरो हो जाती है। नीचे दिये गये टेबल में दूसरे पीरियड के तत्वों की वैलेंसी दी गई है।

तत्वLiBeBCNOFNe
वैलेंसी12343210

एटमिक रेडियस: जब हम किसी पीरियड में बाएँ से दाएँ जाते हैं तो प्रोटॉन की संख्या बढ़ने के कारण न्यूक्लियर चार्ज बढ़ता है। इससे इलेक्ट्रॉन न्यूक्लियस की ओर खिंचने लगते हैं। इसके परिणामस्वरूप एटमिक रेडियस घटने लगता है। नीचे दिये गये टेबल में दूसरे पीरियड के तत्वों का एटमिक रेडियस दिया गया है।

तत्वLiBeBCNO
एटमिक रेडियस15211188777466

जब हम किसी ग्रुप में नीचे की ओर चलते हैं तो नई कक्षा जुड़ने लगती है। इससे न्यूक्लियस और सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉन के बीच की दूरी बढ़ने लगती है। इसलिये किसी ग्रुप में नीचे की ओर जाने से एटमिक रेडियस बढ़ने लगता है।

मेटलिक और नॉन-मेटलिक गुण: मेटल इलेक्ट्रोपॉजिटिव तत्व होते हैं, यानि वे कंपाउंड बनाने के लिये आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं। जब हम किसी पीरियड में बाएँ से दाएँ जाते हैं तो न्यूक्लियस पर प्रभावी चार्ज बढ़ता है। इससे न्यूक्लियस और सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉन के बीच का आकर्षण बढ़ता है। इसलिये जब हम किसी पीरियड में बाएँ से दाएँ जाते हैं तो तत्वों की इलेक्ट्रोपॉजिटिव प्रवृत्ति घटती है। दूसरे शब्दों में, किसी पीरियड में बाएँ से दाएँ जाने पर तत्वों की मेटलिक प्रवृत्ति घटती है।

जब हम किसी ग्रुप में नीचे जाते हैं तो कक्षाओं की संख्या बढ़ जाती है। इससे न्यूक्लियस और सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉन के बीच का आकर्षण घट जाता है। इसलिये किसी ग्रुप में नीचे जाने से तत्वों की इलेक्ट्रोपॉजिटिव प्रवृत्ति बढ़ती है। दूसरे शब्दों में, किसी ग्रुप में ऊपर से नीचे जाने पर तत्वों की मेटलिक प्रवृत्ति बढ़ती है। नॉन-मेटलिक प्रवृत्ति के लिये इसका उलटा होता है।

सारांश: