10 विज्ञान

जैव प्रक्रम

परिवहन

जीवन को जारी रखने के लिये जीवों में विभिन्न पदार्थों का परिवहन बहुत जरूरी होता है। इसके लिये जटिल जीवों में परिष्कृत परिवहन सिस्टम होता है।

मानव शरीर में परिवहन

मानव शरीर में ब्लड सर्कुलेशन सिस्टम द्वारा पदार्थों का परिवहन होता है। सर्कुलेटरी सिस्टम हार्ट, ब्लड वेसेल और ब्लड से मिलकर बना होता है।

structure of heart

हार्ट: हार्ट कार्डियक मसल से बना होता है। यह हमारी मुट्ठी के आकार का होता है। मानव हार्ट में चार चेंबर होते हैं; राइट ऑरिकल, राइट वेंट्रिकल, लेफ्ट ऑरिकल और लेफ्ट वेंट्रिकल। हार्ट के दाएँ और बाएँ भागों के बीच कम्प्लीट पार्टीशन होता है। खून को वापस लौटने से रोकने के लिये ऑरिकल और वेंट्रिकल के बीच वाल्व लगे होते हैं।

हार्ट बीट: हार्ट एक ऐसा अंग है जो खून को पंप करता है। खून को पंप करने के लिये हार्ट के विभिन्न चेंबर बारी बारी से फैलते और सिकुड़ते हैं। विभिन्न चेंबर के फैलने और सिकुड़ने के एक चक्र को हार्ट बीट कहते हैं। एक सामान्य वयस्क का हार्ट एक मिनट में 72 बार धड़कता है।

हार्ट से होकर ब्लड का संचार:

Systemic Veins ⇨ Right Auricle ⇨ Right Ventricle ⇨ Pulmonary Artery ⇨ Lungs ⇨ Pulmonary Vein ⇨ Left Auricle ⇨ Left Ventricle ⇨ Systemic Arteries

डबल सर्कुलेशन: मैमल और पक्षियों में ऑक्सीजिनेटेड ब्लड और डिऑक्सीजिनेटेड ब्लड एक दूसरे से बिलकुल अलग रहते हैं। हार्ट में चार चेम्बर होने के कारण यह संभव हो पाता है। डिऑक्सीजिनेटेड ब्लड हार्ट के दाएँ हिस्से से होकर गुजरता है। ऑक्सीजिनेटेड ब्लड हार्ट के बाएँ हिस्से से होकर गुजरता है। एक कार्डियक साइकल में ब्लड दो बार हार्ट से होकर गुजरता है। एक बार में डिऑक्सीजिनेटेड ब्लड और दूसरी बार में ऑक्सीजिनेटेड ब्लड हार्ट से होकर गुजरता है। इसे डबल सर्कुलेशन कहते हैं। डबल सर्कुलेशन के कारण ये जीव ऊर्जा पैदा करने के मामले में अधिक कुशल होते हैं। इसलिये मैमल और पक्षी वार्म ब्लडेड एनिमल होते हैं, यानि उनका खून गर्म होता है।

मछलियों के हार्ट में केवल दो चेम्बर होते हैं। एम्फिबियन और रेप्टाइल के हार्ट में तीन चेम्बर होते हैं। लेकिन मगरमच्छ के हार्ट में चार चेम्बर होते हैं।

ब्लड प्रेशर: जब ब्लड किसी आर्टरी से गुजरता है तो इसे आर्टरी की दीवार से अवरोध का सामना करना पड़ता है। इसी अवरोध को ब्लड प्रेशर कहते हैं। एक सामान्य व्यक्ति का ब्लड प्रेशर 80/120 mm Hg रहता है। इसमें छोटी संख्या को डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं, जबकी बड़ी संख्या को सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं। जब लेफ्ट वेंट्रिकल द्वारा सिस्टमिक आर्टरी में ब्लड को पंप किया जाता है उस समय के प्रेशर को सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं। जब लेफ्ट वेंट्रिकल फैला हुआ होता है उस समय के प्रेशर को डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं।

हाइपरटेंशन: यदि किसी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर नॉर्मल रेंज से बढ़ा हुआ होता है तो इसे हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर कहते हैं। सामान्य भाषा में, ज्यादातर लोगों को लगता है कि ब्लड प्रेशर एक बीमारी है। जबकि ब्लड प्रेशर तो एक सामान्य बात है। हाँ, हाइपरटेंशन एक बीमारी अवश्य होती है।

ब्लड वेसेल:

ब्लड वेसेल तीन प्रकार के होते हैं; आर्टरी, वेन और ब्लड कैपिलरी।

  1. आर्टरी या धमनी: इस ब्लड वेसेल की दीवार मोटी होती है। आर्टरी से होकर ऑक्सीजिनेटेड ब्लड बहता है। लेकिन पल्मोनरी आर्टरी एक अपवाद क्योंकि उसमें से होकर डिऑक्सीजिनेटेड ब्लड बहता है। आर्टरी हमेशा ब्लड को हार्ट से विभिन्न अंगों तक ले जाती है।
  2. वेन या शिरा: इस ब्लड वेसेल की दीवार पतली होती है। ब्लड के बैकफ्लो को रोकने के लिये वेन में वाल्व मौजूद होते हैं। वेन से होकर डिऑक्सीजिनेटेड ब्लड बहता है। लेकिन पल्मोनरी वेन अपवाद है क्योंकि इससे होकर ऑक्सीजिनेटेड ब्लड बहता है। वेन ह्मेशा विभिन्न अंगों से हार्ट तक ब्लड पहुँचाती है।
  3. ब्लड कैपिलरी या केशिका: ब्लड कैपिलरी की दीवार अत्यंत पतली होती है और इसका व्यास भी छोटा होता है। कैपिलरी कोशिकाओं तक जाती है। सारी कैपिलरी अंत में आर्टरी और वेन में जाकर मिलती हैं।

लिम्फ या लसीका: कैपिलरी की दीवार बहुत पतली होती है। इस पतली दीवार से कुछ प्लाज्मा, प्रोटीन और ब्लड सेल बाहर रिस जाते हैं और ऊतकों में इंटरसेल्युलर स्पेस में पहुँच जाते हैं। इंटरसेल्युलर स्पेस में मौजूद इस द्रव को लिम्फ कहते हैं। लिम्फ जाकर लिम्फ वेसेल में जमा होता है और आखिरकार बड़ी वेन में पहुँचता है। लिंफ का काम है स्मॉल इंटेस्टाइन से डाइजेस्टेड फूड और फैट को ले जाना। इंटरसेल्युलर स्पेस से जरूरत से ज्यादा फ्लुइड को यह ब्लड में पहुँचाता है।

खून का जमना: जब किसी ब्लड वेसेल को कोई नुकसान पहुँचता है तो इससे अत्यधिक खून निकलने का खतरा रहता है। चोट लगने के स्थान पर खून का थक्का जम जाता है जिससे खून का बहना रुक जाता है। इस प्रक्रिया को ब्लड कोगुलेशन या ब्लड क्लॉटिंग कहते हैं। ब्लड के कोगुलेशन में प्लैटलेट अहम भूमिका निभाते हैं।