10 विज्ञान

आनुवंशिकता और जैव विकास

स्पेशियेशन

टैक्सोनोमिक श्रेणियों में स्पेशीज का स्थान सबसे नीचे होता है। किसी स्पेशीज के सदस्यों के बीच समान लक्षणों की संख्या सबसे अधिक होती है। आपस में इंटर-ब्रीडिंग की क्षमता किसी स्पेशीज का सदस्य होने का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण होता है। इंटर-ब्रीडिंग को संभव बनाने के लिये यह जरूरी होता है कि जर्म सेल में एक दूसरे से फ्यूज करने की क्षमता हो। किसी जनसंख्या में एक नई स्पेशीज के उदय को स्पेशियेशन कहते हैं। जब किसी स्पेशीज से एक नई स्पेशीज का उदय होता है तो दोनों के जर्म सेल में इतना अंतर आ जाता है कि वे एक दूसरे से फ्यूजन नहीं कर पाते हैं। स्पेशियेशन कई कारणों से हो सकता है; जो निम्नलिखित हैं:

भौगोलिक बैरियर: यदि किसी स्पेशीज की दो अलग-अलग जनसंख्या में कोई भौगोलिक बैरियर बन जाता है तो एक नई स्पेशीज के उदय होने की संभावना बनती है। भौगोलिक बैरियर इतना कारगर होना चाहिए कि दोनों जनसंख्या में अनेक पीढ़ियों तक इंटर-ब्रीडिंग ना हो। भौगोलिक बैरियर किसी नदी या किसी पहाड़ के रूप में हो सकता है। समय बीतने के साथ किसी भी जनसंख्या में इतने अधिक वैरियेशन हो जाएंगे कि जीनोटाइप में काफी बड़े बदलाव हो जाएँगे। इससे एक जनसंख्या का जर्म सेल दूसरी जनसंख्या के जर्म सेल के साथ फ्यूज नहीं हो पायेगा। इससे एक नई स्पेशीज का उदय होगा।

नया निश: यदि कोई जनसंख्या एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहती है लेकिन उसमें से एक सब-पॉपुलेशन एक नये निश में चला जाता है तो इससे नई स्पेशीज बन सकती है। मान लीजिए कि कुछ उल्लू पेड़ की ऊपरी शाखाओं पर रहना पसंद करते हैं ताकि उन्हें खाने के लिये चिड़िया मिल जाएँ। उल्लू का एक दूसरा ग्रुप जमीन के पास रहना पसंद करता है ताकि चूहे खा सके। समय बीतने के साथ अलग-अलग समूह के उल्लुओं में अलग अलग लक्षण विकसित हो जाते हैं। इनके कारण इन उल्लुओं का जीनोटाइप इतना बदल जाता है कि एक ग्रुप का जर्म सेल दूसरे ग्रुप के जर्म सेल के साथ फ्यूज नहीं कर पाता है। इससे एक नई स्पेशीज का उदय होता है।

जेनेटिक ड्रिफ्ट: जेनेटिक ड्रिफ्ट से भी स्पेशियेशन हो सकता है जैसा कि बीटल के उदाहरण में बताया गया है।

इवोल्यूशन और क्लासिफिकेशन

रॉबर्ट व्हिटेकर का फाइव किंगडम क्लासिफिकेशन सबसे अधिक मान्य सिस्टम है। यह इवोल्यूशनरी रिलेशनशिप पर आधारित है इसलिये इसे फाइलोजेनेटिक क्लासिफिकेशन भी कहते हैं। जब हम नीचे के टैक्सॉन की बात करते हैं तो हम सबसे नजदीकी पूर्वजों की बात करते हैं। जब हम ऊपर के टैक्सॉन की बात करते हैं तो हम बहुत दूर क पूर्वजों की बात करते हैं। नीचे कुछ उदाहरण दिये गये हैं।

अब क्लासिफिकेशन के सबसे ऊँचे लेवेल की बात करते हैं। सभी सजीवों को प्रोकैरियोट तथा यूकैरियोट में बाँटा जा सकता है। सारे बैक्टीरिया प्रोकैरियोट के सदस्य होते हैं, जबकि बाकी के जीव यूकैरियोट होते हैं। मनुष्य यूकैरियोट होते हैं, यानि हम हरे प्लांट के बहुत दूर के रिश्तेदार हैं।

लेकिन जब हम यूकैरियोट को ऑटोट्रॉफ और हेटेरोट्रॉफ में बाँटते हैं तो पाते हैं कि हमारा रिश्ता केवल हेटेरोट्रॉफ से है।

इससे पता चलता है कि बायोलॉजिकल क्लासिफिकेशन के अलग-अलग लेवेल पर इवोल्यूशन के अलग-अलग फेज दिखाई देते हैं।

इवोल्यूशनरी रिलेशनशिप के प्रमाण

होमोलोगस ऑर्गन: होमोलोगस ऑर्गन से दो जीवों के बीच के इवोल्यूशनरी रिलेशनशिप को जानने में मदद मिलती है। जब दो जीवों के ऑर्गन के डिजाइन एक जैसे होते हैं लेकिन कार्य अलग-अलग होते हैं, तो ऐसे ऑर्गन को होमोलोगस ऑर्गन कहते हैं।

छिपकली और पक्षी के फोर लिंब होमोलोगस ऑर्गन के उदाहरण हैं। विभिन्न अस्थियों के मामले में उनका डिजाइन एक जैसा है। लेकिन छिपकली का फोर लिंब रेगने के लिये बना है जबकि किसी पक्षी का फोर लिंब उड़ने के लिये बना है। इससे पता चलता है कि छिपकली और पक्षी का इवोल्यूशन किसी एक ही पूर्वज से हुआ है।

एनालोगस ऑर्गन: जब दो जीवों के ऑर्गन एक ही कार्य के लिये बने होते हैं लेकिन उनके डिजाइन में अंतर होता है तो ऐसे ऑर्गन को एनालोगस ऑर्गन कहते हैं।

चिड़िया और चमगादड़ के पंख एनालोगस ऑर्गन के उदाहरण हैं। दोनों जीवों में पंख का काम है उड़ना। चिड़िया के पंख फोर लिंब के सभी अस्थियों से मिलकर बनते हैं। लेकिन चमगादड़ के पंख केवल अंगुलियों की अस्थियों से बने होते हैं। इससे पता चलता है कि पक्षी और चमगादड़ नजदीक के रिश्तेदार नहीं हैं।

जीवाश्म

जीवों के पुरातन काल से संरक्षित अवशेषों को फॉसिल कहते हैं। किसी भी अवशेष को फॉसिल की श्रेणी में रखने के लिये उसकी आयु कम से कम 10,000 वर्ष होनी चाहिए। फॉसिल से ऐसे जीवों के बारे में अहम जानकारी मिलती है जो जीव अब पृथ्वी पर नहीं पाये जाते हैं। उदाहरण: डायनोसॉर, मैमथ, आदि। कुछ फॉसिल से यह भी पता चलता है कि किसी एक ग्रुप के जीवों का विकास किसी अन्य ग्रुप से हुआ है।

आर्कियोप्टेरिक्स का फॉसिल: आर्कियोप्टेरिक्स के फॉसिल में रेप्टाइल और पक्षी दोनों के लक्षण मिलते हैं। दाँत रेप्टाइल की तरफ इशारा करते हैं, जबकि चोंच पक्षी की तरफ इशारा करते हैं। इससे पता चलता है कि पक्षियों का विकास रेप्टाइल से हुआ है।