10 विज्ञान

ऊर्जा के स्रोत

समुद्र से ऊर्जा

टाइडल एनर्जी: कई तटीय क्षेत्रों में नियमित अंतराल पर ज्वार आता है। ज्वार की काइनेटिक एनर्जी के इस्तेमाल से टरबाइन चलाया जा सकता है; जिससे बिजली पैदा की जा सकती है। इसके लिये समुद्री किनारे पर खोखले सिलिंडरिकल टावर बनाये जाते हैं। कुछ स्थानों पर बांध भी बनाए जाते हैं। इनमें टरबाइन लगाये जाते हैं। जब पानी तेजी से अंदर आता है, और फिर जब पानी वापस जाता है तो टरबाइन चलता है।

वेव एनर्जी: वेव एनर्जी को उसी तरह हारनेस किया जाता है जैसे टाइडल एनर्जी को; यानि टरबाइन की सहायता से। एक नई टेक्नॉलोजी विकसित हो रही है जिसमें खोखले ट्यूब को समुद्र की सतह पर रखा जाता है। जब ये ट्यूब लहरों के साथ ऊपर नीचे होते हैं, तो उससे पैदा होने वाली काइनेटिक एनर्जी से बिजली बनाई जाती है।

ओसियन थर्मल एनर्जी: ओसियन थर्मल एनर्जी समुद्र के सतह के पानी और गहरे पानी के तापमान के अंतर पर काम करता है। समुद्र के सतह के पानी और गहरे पानी (2 किमी तक) के तापमान का अंतर 293 K or 20°C या अधिक होना चाहिए। सतह पर मौजूद गर्म पानी का इस्तेमाल किसी वोलाटाइल लिक्विड (जैसे अमोनिया) को उबालने के लिये किया जाता है। उससे बनने वाली वाष्प का इस्तेमाल टरबाइन चलाने में किया जाता है। उसके बाद उस वाष्प को गहरे पानी में भेज दिया जाता है ताकि यह ठंडा होकर लिक्विड अवस्था में बदल जाये। इस साइकल को बार बार दोहराया जाता है ताकि लिक्विड को बार बार इस्तेमाल किया जा सके।

समुद्र से ऊर्जा के लाभ: हम जानते हैं कि पृथ्वी की सतह का दो तिहाई हिस्सा पानी से ढ़का हुआ है। इसमें से अधिकतर हिस्सा समुद्र और सागर के रूप में है। इसलिये यदि सही तरीके से इस्तेमाल किया जाये तो समुद्र हमारे लिये ऊर्जा के सबसे बड़े स्रोत का काम कर सकता है। यह भविष्य में एक नॉन-एक्झॉस्टिबल और नॉन-पॉल्युटिंग एनर्जी सोर्स बन सकता है।

समुद्र से एनर्जी की खामियाँ: अभी इसके लिये टेक्नॉलोजी शुरुआती दौर में हैं। वे बहुत ही महँगे हैं। टाइडल एनर्जी और वेव एनर्जी को केवल तटीय क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जा सकता है। कई पर्यावरण एक्टिविस्ट इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उन्हें डर है कि इससे समुद्र के फ्लोरा और फॉना को नुकसान पहुँचेगा। वे कोरल रीफ को होने वाले नुकसान के प्रति भी चिंतित है।

जियोथर्मल एनर्जी

हम जानते हैं कि धरती के अंदर पिघला हुआ मैग्मा भरा हुआ है। कई स्थानों पर धरती की सतह में मौजूद दरारों से मैग्मा की हीट बाहर आती रहती है। इस हीट को ऊर्जा के स्रोत की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। कई स्थानों पर धरती के अंदर की हीट के इस्तेमाल से बिजली बनाई जा रही है। लेकिन इससे सल्फर के गैसीय कम्पाउंड से होने वाले प्रदूषण का खतरा रहता है। आज जियोथर्मल एनर्जी का इस्तेमाल करने के मामले में न्यूजीलैंड और अमेरिका अग्रणी देश हैं।

न्युक्लियर एनर्जी

परमाणु ऊर्जा न्युक्लियर फिजन पर आधारित है। किसी एटम के न्युक्लियस को तोड़ने की प्रक्रिया को न्युक्लियर फिजन कहते हैं। जब हेवी मेटल (थोरियम, प्लुटोनियम और यूरेनियम) का न्युक्लियर फिजन कराया जाता है तो इससे भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। उदाहरण के लिये; यूरेनियम के एक एटम के फिजन से जो ऊर्जा निकलती है वह कार्बन के एक एटम के दहन से निकलने वाली ऊर्जा का 1 करोड़ गुना होती है। इस तरह से निकलने वाली हीट के इस्तेमाल से स्टीम बनाई जाती है। फिर उस स्टीम का इस्तेमाल टरबाइन चलाने में किया जाता है; जिससे बिजली बनती है।

न्युक्लियर एनर्जी के लाभ: लंबे समय के इस्तेमाल के हिसाब से यह काफी सस्ता साबित होता है; क्योंकि फ्यूल के एक छोटी सी मात्रा से भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। इससे वायु प्रदूषण नहीं होता है।

न्युक्लियर एनर्जी के नुकसान: न्युक्लियर एनर्जी के लिये जरूरी फ्यूल पृथ्वी में बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध है; इसलिये बहुत महंगा है। न्युक्लियर पावर प्लांट बनाने में बहुत खर्च आता है। न्युक्लियर पावर प्लांट में हमेशा रेडियेशन के लीक होने का खतरा बना रहता है। रेडियेशन के लीक होने पर दूरगामी नुकसान होते हैं। इससे ना केवल पर्यावरण को नुकसान होता है बल्कि जीन को भी नुकसान पहुँचता है जिससे कई पीढ़ियों तक विकृतियाँ आ सकती हैं।

सारांश