10 विज्ञान

जीवों में प्रजनन

फ्लावरिंग प्लांट में सेक्सुअल रिप्रोडक्शन

फूल

किसी भी फ्लावरिंग प्लांट में फूल एक रिप्रोडक्टिव सिस्टम होता है। एक फूल में रिप्रोडक्टिव और एक्सेसरी ऑर्गन होते हैं। सेपल और पेटल एक्सेसरी ऑर्गन हैं, जबकि स्टामेन और कार्पेल रिप्रोडक्टिव ऑर्गन हैं। किसी फूल में चार अलग-अलग व्हर्ल होते हैं जो इस प्रकार हैं।

(a) कैलिक्स: सबसे बाहरी व्हर्ल का नाम कैलिक्स है। यह सेपल से मिलकर बना होता है। इनका काम है कली की अवस्था में फूल की सुरक्षा करना।

(b) कोरोला: दूसरे व्हर्ल का नाम कोरोला है। यह पेटल से मिलकर बना होता है। पेटल अक्सर रंगीन और आकर्षक होते हैं। इनका काम होता है कीटों और चिड़ियों को आकर्षित करना ताकि क्रॉस पॉलिनेशन हो सके।

(c) एंड्रोसियम: यह स्टामेन से मिलकर बना होता है। एक स्टामेन में एक लंबा स्टॉक होता है; जिसे फिलामेंट कहते हैं। फिलामेंट के ऊपर एक कैप्सूल जैसी संरचना होती है; जिसे ऐंथर कहते हैं। ऐंथर के अंदर पॉलेन ग्रेन बनते हैं। पॉलेन ग्रेन या परागकण पीले दानेदार पाउडर की तरह लगते हैं।

structure of flower

(d) गायनोशियम: यह कार्पेल या पिस्टिल से मिलकर बना होता है। कार्पेल के तीन भाग होते हैं। आधार वाला हिस्सा फूला हुआ होता है; जिसे ओवरी कहते हैं। ओवरी के ऊपर एक सिलिंडरिकल स्टॉक होता है जिसे स्टाइल कहते हैं। स्टाइल के ऊपर की समतल सतह होती है जिसे स्टिग्मा कहते हैं। ओवरी के भीतर ओव्यूल होते हैं और प्रत्येक ओव्यूल में एक एग सेल होता है।

पॉलिनेशन: फर्टिलाइजेशन के लिये पॉलेन ग्रेन का स्टिग्मा पर पहुँचना जरूरी होता है। ऐंथर से स्टिग्मा तक पॉलेन ग्रेन के पहुँचने की प्रक्रिया को पॉलिनेशन या परागन कहते हैं। पॉलिनेशन दो प्रकार के होते हैं; स्व परागन या सेल्फ-पॉलिनेशन और पर परागन या क्रॉस पॉलिनेशन। यदि किसी ऐंथर के पॉलेन ग्रेन उसी फूल के स्टिग्मा पर पहुँचते हैं तो इसे सेल्फ पॉलिनेशन कहते हैं। यदि किसी ऐंथर के पॉलेन ग्रेन किसी अन्य फूल के स्टिग्मा पर पहुँचते हैं तो इसे क्रॉस पॉलिनेशन कहते हैं। क्रॉस पॉलिनेशन में पॉलिनेशन के कई एजेंट से सहायता मिलती है; जैसे कीट, पक्षी, हवा, पानी, आदि।

बाइसेक्सुअल और यूनिसेक्सुअल फ्लावर: जिस फूल में स्टामेन और कार्पेल दोनों मौजूद हों उसे बाइसेक्सुअल फ्लावर कहते हैं; जैसे सरसों, उड़हुल, आदि। जिस फूल में केवल स्टामेन या केवल कार्पेल मौजूद हो उसे यूनिसेक्सुअल फ्लावर कहते हैं; जैसे पपीता, मक्का, आदि।

फर्टिलाइजेशन

fertilisation in flowering plant

मेल और फीमेल गैमेट के फ्यूजन को फर्टिलाइजेशन कहते हैं। फर्टिलाइजेशन के बाद बनने वाली रचना को जाइगोट कहते हैं। फ्लावरिंग प्लांट में फर्टिलाइजेशन निम्नलिखित तरीके से होता है।

  • जब पॉलेन ग्रेन स्टिग्मा पर पहुँचता है तो यह जर्मिनेट होकर एक पॉलेन ट्यूब बनाता है।
  • पॉलेन ट्यूब फिर स्टाइल को बेधता हुआ एग एपेरेटस तक पहुँचता है।
  • पॉलेन ट्यूब से होते हुए पॉलेन न्यूक्लिआई फिर एग सेल तक पहुँचते हैं।
  • उसके बाद एक पॉलेन न्युक्लियस और एग सेल के फ्यूजन के साथ फर्टिलाइजेशन पूरा होता है।

पोस्ट फर्टिलाइजेशन ईवेंट: फर्टिलाइजेशन के बाद जाइगोट का कई बार सेल डिविजन होता है जिससे एम्ब्रायो बनता है। एम्ब्रायो का निर्माण ओव्यूल के अंदर होता है। उसके बाद ओव्यूल के ऊपर एक कोट बन जाता और फिर ओव्यूल एक बीज में बदल जाता है। ओवरी तेजी से बढ़ती है और फल में बदल जाती है। सेपल, पेटल, स्टाइल और स्टिग्मा अक्सर मुरझाकर गिर जाते हैं। लेकिन कुछ फलों में इनमें से कुछ रचनाओं के अवशेष देखे जा सकते हैं।

बीज: एक एम्ब्रायोनिक प्लांट; जो एक सीड कोट के अंदर बंद रहता है: बीज कहलाता है। जब सूर्य की रोशनी, नमी, तापमान और हवा की अनुकूल परिस्थिति मिलती है तब बीज जर्मिनेट करता है और उससे एक नये प्लांट का जन्म होता है।

बीज बनने के फायदे: बीज के कारण फ्लावरिंग प्लांट को सरवाइवल के मामले में बहुत बड़ा फायदा मिलता है। ज्यादातर बीज पेड़ या पौधे से गिरने के तुरंत बाद जर्मिनेट नहीं करते हैं। जर्मिनेशन से पहले बीज अक्सर कुछ समय लेते हैं। यदि किसी बीज को अनुकूल परिस्थिति नहीं मिलती है तो यह कई सालों तक इंतजार कर सकता है। इसी कारण से फ्लावरिंग प्लांट में ये क्षमता होती है कि लंबे समय की प्रतिकूल परिस्थिति में भी वे सरवाइव कर पाते हैं।