6 इतिहास

अतीत के गांव और शहर

आप क्या सीखेंगे

अरिकामेडु

अरिकामेडु आज के पुडुचेरी में पड़ता था। आज से 2200 से 1900 वर्ष पहले यह एक तटीय इलाका था जहाँ पर दूर दूर से आने वाले जहाजों का सामान उतरता था। इस पुरास्थल पर ईंट से बनी एक विशाल संरचना मिली है। इतिहासकारों का अनुमान है कि यह एक गोदाम रहा होगा। यहाँ से भूमध्यसागरीय क्षेत्र के बरतन मिले हैं, जैसे एंफोरा और लाल चमकीले बरतन जिनपर मुहर लगे हुए हैं। मुहर लगे लाल चमकीले बरतनों को एरेटाइन कहते हैं। एंफोरा एक बड़ा जार है जिसमें दो हैंडल लगे हैं। इसमें तेल या शराब रखी जाती थी। एरेंटाइन का नाम इटली के एक शहर के नाम पर पड़ा है।

इस पुरास्थल से कई स्थानीय बरतन भी मिले हैं। लेकिन स्थानीय बरतनों पर भी रोमन डिजाइन हैं। यहाँ से रोम में बने शीशे के सामान, लैंप और कीमती पत्थर भी मिले हैं। इन सबसे पता चलता है कि अरिकामेडु पर भूमध्यसागरीय क्षेत्र, खासकर रोम का कितना गहरा प्रभाव था। कई छोटे टैंक भी मिले हैं। हो सकता है कि इनका उपयोग कपड़ों की रंगाई के लिए होता था।

कुछ अन्य सबूत

मूर्ति

उस समय की कई मूर्तियों में रोजमर्रा के जीवन को दिखाया गया है। ऐसी मूर्तियों का उपयोग खंभों, रेलिंग और गेट को सजाने के लिए होता था। इन मूर्तियों से उस समय के लोगों के विभिन्न पेशों के बारे में पता चलता है।

वलय कुंआ

कई शहरों में खुदाई के दौरान बरतनों या सेरामिक छल्लों की कतारें मिली हैं। सेरामिक रिंग एक के ऊपर एक करके रखी गई थी। ऐसी संरचना को वलय कुंए (रिंग वेल) का नाम दिया गया है। इतिहासकारों का मानना है कि इनका इस्तेमाल शौचालय या नालियों के रूप में होता था। ऐसे रिंग वेल अधिकतर निजी मकानों में पाये गये हैं।

भवनों और महलों के बहुत ही कम अवशेष मिले हैं। इसके दो कारण हो सकते हैं। हो सकता है कि इतिहासकारों को अभी और काम करना बाकी हो। दूसरा कारण यह है कि ज्यादातर भवन लकड़ियों और कच्ची ईंटों से बने हुए थे। इसलिए वे समय की मार नही झेल पाये।

भरुच

यात्रियों और नाविकों द्वारा दिये गये विवरणों से इतिहासकारों को कई सुराग मिल जाते हैं। ग्रीस के एक नाविक ने भरुच के बारे में बड़ा ही रोचक विवरण दिया है। भरुच आज के गुजरात में पड़ता है। ग्रीस (यूनान) में इसे बेरिगाजा के नाम से जाना जाता था। उस नाविक के अनुसार, भरुच की खाड़ी काफी संकरी थी। भरुच की खाड़ी में जहाज चलाना बहुत कठिन था। केवल स्थानीय प्रशिक्षित मछुआरे ही जहाजों को सुरक्षित रूप से किनारे पर ले जा पाते थे। ऐसे मछुआरों को राजा बहाल करता था।

आयात और निर्यात के लिए भरुच एक महत्वपूर्ण स्थान था। आयात के मुख्य सामान थे शराब, तांबा, टिन, लेड, मूंगा, टोपाज, कपड़ा, सोना और चांदी के सिक्के। निर्यात होने वाले मुख्य सामान थे हिमालाय से आये पौधे, हाथी दांत, गोमेद, कार्नेलियन, कपास, रेशम और इत्र। व्यापारी अकसर राजा के लिए विशेष उपहार लाते थे, जैसे चांदी के बरतन, किशोर गायक, सुंदर औरतें, अच्छी शराब और उत्कृष्ट कपड़े।

विनिमय प्रणाली: विनिमय के लिए अक्सर सिक्कों का प्रयोग होता था। उस समय आघाती (पंच) सिक्कों का प्रचलन था। वस्तु विनिमय प्रणाली भी कुछ जगह इस्तेमाल होती थी। ऐसे विनिमय का एक महत्वपूर्ण माध्यम था नमक।