6 इतिहास

अतीत के गांव और शहर

आप क्या सीखेंगे

समृद्ध शहर

जिस स्थान में जीविका का मुख्य साधन कृषि नहीं हो उसे शहर कहते हैं। आज से 2500 वर्ष पहले भारत में कई शहर फले फूले, जैसे कि पाटलिपुत्र, वाराणसी, मथुरा, उज्जैन, मदुरै, तक्षशिला, आदि। शहर ही व्यापार और अन्य गतिविधियों के केंद्र हुआ करते थे।

मथुरा

आज से 2500 वर्ष पहले मथुरा एक महत्वपूर्ण नगर था। यह व्यापार के दो मुख्य मार्गों के जंक्शन पर था। एक रास्ता उत्तर पश्चिम मे पूर्व की ओर जाता था और दूसरा रास्ता उत्तर से दक्षिण की ओर।

मथुरा के चारों ओर किलेबंदी थी। शहर के अंदर कई मंदिर थे, जहाँ लोग इकट्ठा होते थे और खाली समय बिताया करते थे। नगर के लोगों के लिए भोजन आसपास के किसानों और गड़ेरियों द्वारा लाया जाता था। मथुरा कुछ बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का केंद्र भी था।

मथुरा एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र भी था। यह भगवान कृष्ण में भक्ति के लिए मशहूर था और आज भी है। मथुरा में बौद्ध और जैन धर्मस्थल भी थे।

मथुरा से मिले गेटों (द्वारों) और खंभों के अवशेषों पर जो अभिलेख मिले हैं, उनसे वहाँ के जीवन के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलती है। इन अभिलेखों में अक्सर लोगों द्वारा दिये गये दान के बारे में लिखा गया है। इन अभिलेखों से उस समय के विभिन्न पेशों के बारे में पता चलता है। दान देने वालों में कई तरह के लोग थे, जैसे कि राजा, रानी, अधिकारी, व्यापारी, सुनार, लोहार, बुनकर, टोकरी बनाने वाला, इत्र बनाने वाला, आदि।

शिल्प और शिल्पकार

मथुरा में कई तरह के शिल्प बनते थे। यह शहर मिट्टी के बहुत ही पतले और सुंदर बरतनों के लिए मशहूर था जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र कहा जाता है। ये बरतन काले रंग के और चमकदार होते थे। इस तरह के बरतन अक्सर उत्तरी भारत में मिलते थे इसलिए इनका नाम उत्तरी काले चमकीले पात्र रखा गया।

कई ऐसे शिल्प रहे होंगे जो समय की मार नहीं सह पाए होंगे। लेकिन उस समय के कई ग्रंथों से उनके बारे में पता चलता है। वाराणसी और मदुरै कपड़े के उत्पादन के महत्वपूर्ण केंद्र थे। कपड़ा उद्योग में पुरुष और महिलाएँ दोनों ही काम करते थे।

शिल्पकार और व्यापारी अपने संगठन बनाते थे। ऐसे संगठनों को श्रेणी कहते थे। श्रेणी के विभिन्न काम इस प्रकार थे:

व्यापारियों की श्रेणी का काम था व्यापार को सुव्यवस्थित करना। व्यापारियों की श्रेणी किसी बैंक की तरह भी काम करती थी। ऐसे बैंकों में धनी पुरुष और महिलाएँ अपना धन जमा करते थे। उस धन को व्यापार में निवेश किया जाता था और जमा करने वाले को ब्याज दिया जाता था। ब्याज का इस्तेमाल धार्मिक संस्थानों की मदद के लिए भी किया जाता था।