9 विज्ञान

प्राकृतिक संपदा

मृदा

हम मृदा या मिट्टी के बिना जीवों की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। पृथ्वी की भू-पृष्ठ पर पाये जाने वाले भुरभुरे पदार्थ को मिट्टी या मृदा कहते हैं। चट्टानों के टूटने से मिट्टी बनती है लेकिन इस प्रक्रिया में हजारों लाखों वर्ष लग जाते हैं। मिट्टी निम्नलिखित चरणों में बनती है।

सूर्य की गर्मी

दिन के समय सूर्य की गर्मी से पत्थर फैलता है यानि इसका आकार बढ़ जाता है। रात के समय तापमान कम होने से पत्थर फिर से सिकुड़ कर अपने पुराने आकार में लौट जाता है। पत्थर के हर हिस्से में प्रसार या संकुचन एकसमान नहीं होता है। इसलिए बार बार होने वाले प्रसार और संकुचन के कारण पत्थर में दरारें पड़ जाती हैं। इस तरह से पत्थर टूट जाते हैं।

जल की भूमिका

पत्थर की दरार में पानी चला जाता है। जब यह पानी जमकर बर्फ बनता है तो उससे दरार का आकार बड़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि बर्फ बनने के बाद जल का आयतन बढ़ जाता है। इसके अलावा नदी और वर्षा के पानी के बहाव के कारण भी पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं। महीन टुकड़ों को नदी अपने साथ बहाकर दूर ले जाती है।

हवा की भूमिका

हवा के बहाव से भी पत्थर टूटते हैं। छोटे-छोटे कण हवा के प्रवाह में दूर पहुँच जाते हैं।

जीवों की भूमिका

पत्थर पर सबसे पहले उगने वाले जीव होते हैं लाइकेन। लाइकेन से निकलने वाले कुछ पदार्थ पत्थर को महीन कण में बदल देते हैं। इससे पत्थर के ऊपर मिट्टी की एक पतली परत बन जाती है। उसके बाद वहाँ पर मॉस नामक पादप पनपते हैं जिनकी छोटी छोटी जड़ें पत्थर को और भी तोड़ती हैं। उसके बाद बड़े पादप पनपते हैं। बड़े वृक्ष की जड़े पत्थर में काफी अंदर तक चली जाती हैं जिससे पत्थर टूट जाता है।

मृदा: यह एक मिश्रण है जिसमें बहुत ही छोटे आकार के कण होते हैं जो पत्थरों के टूटने से बनते हैं। इसके अलावा मिट्टी में संड़े-गले जीवों के टुकड़े भी रहते हैं। मिट्टी में उपस्थित इस तरह के विघटित जैव पदार्थों को ह्यूमस कहते हैं। मिट्टी में उपस्थित कणों के औसत आकार और ह्यूमस की मात्रा के आधार पर मिट्टी के प्रकार और उसके गुण निर्भर करते हैं।

ह्यूमस के कारण मिट्टी अधिक भुरभुरी होती है और सरंध्र होती है। इससे हवा काफी नीचे तक जा पाती है और पादपों की जड़ें भी आसानी से भीतर जा पाती हैं। इसलिए अधिक ह्यूमस वाली मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है।

मृदा अपरदन: जब जमीन की सबसे ऊपरी भुरभुरी परत हट जाती है तो इसे मृदा अपरदन कहते हैं।

जैव रासायनिक चक्र

जलीय चक्र

पृथ्वी पर उपस्थित जल लगातार तीनों अवस्थाओं में बदलता रहता है। इस प्रक्रिया को जलीय चक्र कहते हैं। नदी, समुद्र, तालाब, आदि का पानी वाष्प बन जाता है। जब वाष्प ऊपर उठकर बादल बनाता है तो उससे वर्षा या हिमपात होता है। इस तरह से धरती पर मौजूद पानी कभी ठोस, कभी गैस और कभी द्रव बन जाता है। पानी की तीनों अवस्थाओं में बदलते रहने की इस प्रक्रिया को जल चक्र कहते हैं।

नाइट्रोजन चक्र

हम जानते हैं कि हवा में सबसे बहुतायत में पाई जाने वाली गैस नाइट्रोजन है। प्रोटीन का निर्माण नाइट्रोजन के बिना नहीं होता है। इसलिए जीवों के लिए नाइट्रोजन बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन हवा में उपस्थित गैसीय नाइट्रोजन का सीधे-सीधे इस्तेमाल कोई भी जीव नहीं कर पाता है। इसके लिए नाइट्रोजन को ऐसे रूप में बदलने की जरूरत होती है ताकि यह सजीवों में पहुँच पाए।

तड़ित की भूमिका

बारिश के समय जब बिजली चमकती है तो हवा में उपस्थित नाइट्रोजन के ऑक्साइड बन जाते हैं। ये ऑक्साइड वर्षा के जल के साथ मिलकर जमीन पर पहुँच जाते हैं।

नाइट्रोजन स्थिरीकरण

फलीदार पादपों (दालों) की जड़ों में विशेष गाँठनुमा रचना होती है। इन गाँठों में राइजोबियम नामक बैक्टीरिया रहते हैं। राइजोबियम बैक्टीरिया द्वारा नाइट्रोजन ऑक्साइड को नाइट्रेट या नाइट्राइट में बदल दिया जाता है। अब पादप आसानी से इन नाइट्रेट तथा नाइट्राइट का अवशोषण कर सकता है।

पादप द्वारा नाइट्रोजन के इन यौगिकों का इस्तेमाल प्रोटीन और अन्य कई जरूरी पदार्थ बनाने में किया जाता है। फिर भोजन श्रृंखला के माध्यम से नाइट्रोजन विभिन्न जंतुओं के शरीर में पहुँचता है। उत्सर्जन के जरिए नाइट्रोजन बाहर निकलता है। इसमें से कुछ हिस्सा मिट्टी में ही रह जाता है तो कुछ हवा में वापस पहुँच जाता है।

कार्बन चक्र

वायुमंडल का कार्बन (कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में) पादपों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के समय लिया जाता है। फिर भोजन के जरिए यह विभिन्न जंतुओं तक पहुँचता है। जब भी कोई पादप या जंतु सांस छोड़ता है तो कार्बन डाइऑक्साइड को भी बाहर छोड़ता है। जीवाश्म ईंधन के दहन से भी कार्बन डाइऑक्साइड निकलता है।

ग्रीनहाउस इफेक्ट: कार्बन डाइऑक्साइड सूर्य की रेडियेशन को अवशोषित करता है। इसलिए कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी के तापमान को कम होने से रोकता है। लेकिन जरूरत से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड का मतलब है कि धरती का तापमान बढ़ जाएगा। कार्बन डाइऑक्साइड (और कुछ अन्य गैसें) द्वारा तापमान को अवशोषित करने की इस प्रक्रिया को ग्रीनहाउस इफेक्ट कहते हैं। इससे पूरी पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ जाता है जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में अजीब बदलाव होते हैं, अधिक बाढ़ आती है, सूखा पड़ता है और भयावह तूफान आते हैं।

ऑक्सीजन चक्र

हर जीव श्वसन के लिये ऑक्सीजन का इस्तेमाल करता है। इसके अलावा दहन के लिए और नाइट्रोजन से नाइट्रेट बनाते समय ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है। प्रकाश संश्लेषण के द्वारा ऑक्सीजन को वापस वायुमंडल में भेजा जाता है।

ओजोन परत

पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत ओजोन गैस की बनी होती है, इसलिए इसे ओजोन परत कहते हैं। ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक विकिरणों को रोक देती है ताकि सजीवों को कोई नुकसान न पहुँचे।

क्लोरोफ्लोरोकार्बन: क्लोरीन (या फ्लोरीन) तथा कार्बन के मिलने से बनने वाले यौगिक को क्लोरोफ्लोरोकार्बन कहते हैं। इन पदार्थों का इस्तेमाल रेफ्रिजरेटर और प्रेशराइज्ड कैन में होता है। ये पदार्थ ओजोन की परत को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे ओजोन परत में छेद होने लगा है। इससे हानिकारक विकिरणों के हम तक पहुँचने का खतरा बढ़ गया है।