9 समाज शास्त्र

निर्धनता

जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की कमी को निर्धनता कहते हैं। भोजन, घर, कपड़े, स्वास्थ्य सुविधाएँ, सफाई, आदि, मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। निर्धनता या गरीबी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं: भूमिहीनता, बेरोजगारी, परिवार का आकार, अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य/कुपोषण, बाल श्रम और असहायता।

सामाजिक विज्ञान की नजर में गरीबी

निर्धनता को कई सूचकों द्वारा देखा जा सकता है। सामान्यत: सामाजिक विज्ञान में निर्धनता को आय और उपभोग के सूचकों द्वारा देखा जाता है। लेकिन कुछ सामाजिक वैज्ञानिक गरीबी को अन्य सूचकों द्वारा भी देखते हैं, जैसे अशिक्षा, कुपोषण के कारण घटी हुई रोग प्रतिरोधक क्षमता, सफाई और साफ पेय जल का अभाव, आदि।

सामाजिक अपवर्जन

गरीबी के कारण प्रभावित जनसंख्या को सामाजिक अपवर्जन से जूझना पड़ता है। एक गरीब आदमी को जीवन की मामूली सुविधाएँ भी नहीं मिल पाती हैं जो समाज की मुख्यधारा के लोगों को मिलती हैं। गरीब होने के कारण कई लोगों को कई सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं होने दिया जाता है। भारत में जाति के आधार पर सामाजिक अपवर्जन का एक लम्बा इतिहास रहा है। नीची जाति के लोगों और दलितों को समाज की मुख्यधारा से अलग रखा गया क्योंकि वे गरीब थे।

असुरक्षा

कई समुदायों पर अन्य समुदायों की तुलना में गरीबी का अधिक खतरा रहता है। आँकड़े बताते हैं कि अनुसूचित जाति और जनजाति का एक बड़ा हिस्सा गरीब है। अल्पसंख्यकों पर भी गरीबी का खतरा अधिक रहता है। इसी तरह से महिलाएँ, विधवा और विकलांग भी असुरक्षित होते हैं। जब किसी व्यक्ति में आर्थिक चुनौतियों का सामना करने की कम क्षमता होती है तो उसके गरीब होने का खतरा बढ़ जाता है।

गरीबी रेखा

यह एक काल्पनिक रेखा होती है जिसके नीचे रहने वाले लोगों को निर्धन माना जाता है। गरीबी रेखा का निर्धारण आय और उपभोग के आधार पर किया जाता है। अलग अलग देशों में गरीबी रेखा तय करने के लिए अलग अलग पैमाने का इस्तेमाल होता है।

विश्व बैंक के अनुसार जिस व्यक्ति को 1.9 डॉलर से भी कम में एक दिन का गुजारा करना होता है उसे गरीबी रेखा के नीचे समझा जाता है। वर्ल्ड बैंक की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की 32.7% जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे है।

2011-12 के डाटा के अनुसार, यदि पाँच लोगों के परिवार की आय 4,080 रु प्रति माह से कम हो तो वह गरीबी रेखा के नीचे है। शहरी क्षेत्र के लिये यह राशि 5,000 रु प्रति माह है।

निर्धनता को कैलोरी के उपभोग से भी जोड़ा गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन कैलोरी की मात्रा 2400 है और शहरी क्षेत्रों के लिये यह 2100 है। यदि कोई व्यक्ति इससे कम कैलोरी ही ले पाता है तो वह गरीबी रेखा के नीचे है।

2011 की डेवलपमेंट गोल रिपोर्ट के अनुसार, भारत एकमात्र एशियाई देश है जहाँ गरीबों की संख्या 2015 तक आधी हो जाएगी। तब गरिबों का प्रतिशत 22% हो जाएगा। 2020 तक यह 20% होने का अनुमान है।

गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों का प्रतिशत गिरा है लेकिन उनकी संख्या में बहुत कमी नहीं आई है। 2004-05 में गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या 407 मिलियन थी, जो 2011-12 में घटकर 2270 मिलियन हो गई है, यानि कुल गिरावट केवल 2.2% की हुई।

विभिन्न सामाजिक समूहों में निर्धनता

Percentage of Poor in India Graph

स्रोत: वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट (2016)

जैसा कि इस ग्राफ में दिखाया गया है, भारत की कुल आबादी में 22% लोग निर्धन हैं। लेकिन अनुसूचित जनजाति में यह स्तर 43% है। अन्य असुरक्षित समूहों में भी यह स्तर भारत की कुल आबादी में गरीबी के स्तर से कहीं अधिक है।

असुरक्षित सामाजिक समूहों के अलावा किसी गरीब परिवार के विभिन्न सदस्य अलग अलग तरीके से गरीबी से प्रभावित होते हैं। महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग गरीबी से अधिक प्रभावित होते हैं।