9 समाज शास्त्र

जनसंख्या

जनसंख्या: किसी क्षेत्र (गाँव, शहर, राज्य, देश) में रहने वाले मनुष्यों की कुल संख्या को वहाँ की जनसंख्या कहते हैं।

जनगणना: निश्चित समयांतराल पर जनसंख्या की गिनती को जनगणना कहते हैं। भारत में जनगणना पहली बार 1872 में हुई थी, लेकिन पहली संपूर्ण जनगणना 1881 में हो पाई थी। उसके बाद से हर दस वर्ष पर जनगणना होती है।

जनसंख्या का आकार और वितरण

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या 121 करोड़ है। भारत का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल का मात्र 2.4% है। लेकिन भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का 17.5% है। इससे पता चलता है कि विश्व की तुलना में भारत का जनसंख्या घनत्व कितना अधिक है।

जनसंख्या घनत्व

प्रति वर्ग किमी में रहने वाले लोगों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहते हैं। भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। बिहार का जनसंख्या घनत्व 1102 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है और यह देश में सबसे अधिक है। दूसरी ओर, अरुणाचल प्रदेश का जनसंख्या घनत्व सबसे कम है और यह 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। भारत की आधी आबादी तो केवल पाँच राज्यों (उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश) में रहती है। भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में कुल जनसंख्या का केवल 5% हिस्सा रहता है।

भारत के मैदानी इलाके की समतल भूमि और उपजाऊ मिट्टी के कारण इन इलाकों में मानव गतिविधियों की अधिक संभावनाएँ होती हैं। इसलिए उत्तर का मैदान सघन आबादी वाला क्षेत्र है। यही हाल तमिलनाडु और केरल के तटीय मैदानों का है। दूसरी ओर राजस्थान में विशाल रेगिस्तान होने के कारण बहुत ही कम जनसंख्या घनत्व है। इसी तरह, पर्वतीय क्षेत्रों की ऊबड़-खाबड़ भूमि के कारण वहाँ जनसंख्या में वृद्धि की बहुत कम गुंजाइश है।

जनसंख्या वृद्धि या परिवर्तन

2001 की तुलना में 2011 की जनगणना में 9.3% की वृद्धि हुई। इसका मतलब है कि इस दशक में जनसंख्या वृद्धि दर 2% से कुछ कम थी। एक दशक में जनसंख्या वृद्धि के मामले में भारत का स्थान 93 नम्बर पर है। यदि 1991 से 2001 के आँकड़े से तुलना करें तो जनसंख्या में वृद्धि कम हुई है, जो कि एक अच्छी बात है।

जन्म दर

प्रति 1000 व्यक्ति पर जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या को जन्म दर कहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में जन्म दर 20.2 प्रति हजार व्यक्ति है।

मृत्यु दर

प्रति 1000 व्यक्ति पर मरने वालों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में मृत्यु दर 7.4 प्रति हजार व्यक्ति है।

यदि जन्म दर अधिक है और मृत्यु दर कम है तो इससे जनसंख्या में वृद्धि होती है। स्वास्थ्य सेवाओं पोषण में सुधार के कारण इस अवधि में मृत्यु दर कम हुई है। लोगों में बढ़ती जागरूकता और परिवार नियोजन के लगातार प्रचार के कारण जन्म दर में गिरावट आई है, लेकिन इसे और भी कम करने की जरूरत है।

प्रवास

जनसंख्या में परिवर्तन में प्रवास की भी भूमिका होती है। जब लोग आजीविका की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तो इस प्रक्रिया को प्रवास कहते हैं। जब देश के भीतर प्रवास होता है तो इसे आंतरिक प्रवास कहते हैं। जब प्रवास एक देश से दूसरे देश में होता है तो इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रवास कहते हैं। आंतरिक प्रवास से जनसंख्या के आकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन इससे जनसंख्या के वितरण में अंतर आ जाता है।

प्रवास के कारण

ग्रामीण इलाकों में व्याप्त गरीबी और रोजगार के अवसरों का अभाव, ये दोनों प्रवास के लिए अपकर्षण का काम करते हैं। शहरों में रोजगार के अवसर एक अभिकर्षण कारक की तरह काम करता है। शहरों की ओर बढ़ते पलायन के कारण 1951 के 17.29% की तुलना में 2001 में शहरी जनसंख्या 27.28% हो गई।

आयु संभाविता (लाइफ एक्सपेक्टेंसी)

जिस औसत आयु तक लोग जीते हैं उस आयु को आयु संभाविता कहते हैं। आजादी के समय भारत में आयु संभाविता 40 वर्ष से थोड़ा अधिक थी। 2011 की जनगणना के अनुसार इसमें काफी सुधार हुआ है और यह 68.89 वर्ष हो गई है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि महिलाओं की जीवन संभाविता 72.61 वर्ष है, और पुरुषों के लिए यह 67.46 वर्ष है। 1991 की तुलना में 2001 में भारत में 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या 23 से बढ़कर 35 हो गई है।

साक्षरता दर

2001 की तुलना में साक्षरता 2011 में 65% से बढ़कर 74% हो गई है। लेकिन पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की साक्षरता दर अभी भी कम है। इससे यह पता चलता है कि यहाँ लड़कियों को कम प्रश्रय दिया जाता है।

लिंग अनुपात

प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं। 2001 की तुलना में 2011 में लिंग अनुपात 933 प्रति हजार से घटकर 914 महिला प्रति हजार पुरुष हो गया है। केरल का लिंग अनुपात सबसे बेहतर है (1082), जबकि हरियाणा (879) और दिल्ली (868) की हालत सबसे खराब है।

आयु संरचना

भारत की आयु संरचना को अक्सर भारतीय जनसंख्या के एक धनात्मक पहलू के रूप में देखा जाता है।

age profile Indian population pie chart
  1. बच्चे (15 वर्ष से कम): 2011 की जनगणना के अनुसार, जनसंख्या का 31.1% भाग बच्चे हैं। बच्चे आर्थिक उत्पादन नहीं करते हैं, बल्कि बच्चों के भोजन, वस्त्र, पढ़ाई और दवाई पर खर्च होता है।
  2. वयस्क (15 से 59 वर्ष): इस आयु वर्ग के लोग आर्थिक रूप से उत्पादनशील तथा जैविक रूप से प्रजननशील होते हैं। इस वर्ग के लोग अन्य आयु वर्ग के लोगों को सहारा प्रदान करते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या का 63.6% वयस्क हैं।
  3. वृद्ध (60 वर्ष से अधिक): इस आयु वर्ग के अधिकतर लोग आर्थिक रूप से उत्पादनशील नहीं होते हैं और रिटायर हो चुके होते हैं। भारत की जनसंख्या में वृद्धों की संख्या 5% है। इस आयु वर्ग के लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं और पोषण के मामले में देखभाल की जरूरत होती है। यदि वृद्धों का प्रतिशत कम होगा तो उनकी देखभाल का भार भी कम होगा।

व्यावसायिक संरचना

भारत के श्रमिकों और कामगारों का 64% प्राथमिक क्षेत्रक में, 13% द्वितीयक क्षेत्रक में और 20% तृतीयक क्षेत्रक में नियोजित है। इसका मतलब है कि अभी भी रोजगार के लिए प्राथमिक सेक्टर पर सबसे अधिक दबाव है। द्वितीयक और तृतीयक सेक्टर ने सकल घरेलू उत्पाद में योगदान बढ़ाया है लेकिन रोजगार सृजन के मामले में वे अभी भी पीछे हैं।

स्वास्थ्य

आयु संभाविता में बढ़ोतरी और मृत्यु दर में गिरावट से भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार का पता चलता है। जच्चा बच्चा की देखभाल में सुधार के कारण शिशु मृत्यु दर भी घटी है। सरकार ने विभिन्न बीमारियों के लिए टीकाकरण अभियान भी चलाया है। ये टीके सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में दिये जाते हैं। साफ सफाई में सुधार से भी शिशु मृत्यु दर की रोकथाम में सफलता मिली है। लेकिन अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं में बहुत अधिक सुधार की जरूरत है। कई गाँवों में आज भी स्वास्थ्य सुविधा ना के बराबर है।

किशोर जनसंख्या

10 से 19 वर्ष की आयु को किशोरावस्था कहते हैं। इस आयु वर्ग के लोगों को बेहतर पोषण की जरूरत होती है। यही लोग देश का भविष्य होते हैं, इसलिए इनपर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। इस आयु वर्ग की एक मुख्य समस्या कुपोषण है, खासकर लड़कियों में। लड़कियों में एनीमिया (खून की कमी) की बिमारी की रोकथाम के लिए सरकारी अस्पतालों से आयरन की गोलियाँ मुफ्त दी जाती हैं।

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 ने किशोरों पर खास महत्व दिया है। किशोरों की पोषण संबंधी जरूरतों पर ध्यान दिया जा रहा है। किशोरों में यौन रोगों, अवांछित गर्भधारण, बाल विवाह, असुरक्षित यौन संबंध, आदि के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।