9 समाज शास्त्र

मानव संसाधन

स्वास्थ्य

एक स्वस्थ व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता से काम कर सकता है और अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति साबित हो सकता है। लेकिन एक अस्वस्थ व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाता है और अर्थव्यवस्था के लिए भार साबित होता है। भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना का लक्ष्य है कि लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँचाना और खासकर गरीब तबके में पोषण के स्तर को सुधारना।

सरकारी स्वास्थ्य तंत्र में अस्पतालों के कई स्तर हैं। सबसे निचले स्तर पर प्राथमिक चिकित्सा केंद्र रहता है जो ग्रामीण इलाकों में बेसिक स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करता है। उसके ऊपर तालुका या प्रखंड मुख्यालय में सामुदायिक चिकित्सा केंद्र होता है जहाँ कुछ विशेषज्ञ डॉक्टर भी रहते हैं। जिले में जिला या सदर अस्पताल होता है जहाँ डॉक्टरों और बेड की संख्या अधिक होती है। बड़े शहरों में जिला अस्पताल के अलावा मेडिकल कॉलेज भी होते हैं जहाँ लगभग हर प्रकार की चिकित्सा सुविधा मिलती है।

आज भी हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएँ बहुत कम लोगों तक पहुँच पाई हैं। लेकिन शिशु मृत्यु दर और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि से पता चलता है कि स्वास्थ्य व्यवस्था ने मानव संसाधन की गुणवत्ता को सुधारने का काम किया है।

20132014201520162017
उपकेंद्र / प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र / सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र181,139182,709184,359185,933187,505
औषधायलय और अस्पताल29,27429,71529,95730,04431,641
बिस्तर (सरकारी)628,708675,779754,724634,879710,761
पंजीकृत डॉक्टर45,10633,53620,42225,28217,982
नर्सिंगकर्मी2,344,2412,621,9812,639,2292,778,2482,878,182

SOURCE: National Health Policy, 2018

बेरोजगारी

जब कोई आदमी काम की तलाश में हो लेकिन उसे काम नहीं मिल रहा हो तो ऐसे आदमी को बेरोजगार कहते हैं। केवल 15 से 59 आयु वर्ग के लोगों को ही बेरोजगार की श्रेणी में रख सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से काम नहीं करना चाहता है तो उसे बेरोजगार की श्रेणी में नहीं रखा जाता है।

मौसमी बेरोजगारी

इस तरह की बेरोजगारी अक्सर ग्रामीण इलाकों में देखी जाती है। खेती का चक्र मौसम पर आधारित होता है। साल के कुछ महीनों में खेत पर काम करने वाले बहुत व्यस्त होते हैं। लेकिन कुछ महीने ऐसे भी होते हैं जब उन्हें खाली बैठना पड़ता है।

प्रच्छन्न बेरोजगारी

इस प्रकार की बेरोजगारी भी अक्सर गाँवों में देखने को मिलती है। इसे समझने के लिए एक परिवार का उदाहरण लेते हैं जिसमें 8 लोग ऐसे हैं जो काम करते हैं। ये सभी लोग अपने खेत पर काम करते हैं। खेत इतना ही बड़ा है कि उसकी देखभाल 5 लोग आसानी से कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में तीन अतिरिक्त लोगों के काम पर लगने से उत्पादकता में कोई फर्क नहीं पड़ता है। ये 3 अतिरिक्त लोग इसलिए वहाँ पर काम कर रहे हैं क्योंकि उनके पास करने को और कुछ नहीं है। यदि वे कहीं और काम करते तो शायद उनकी उत्पादकता बेहतर होती। ऐसी स्थिति कुछ दुकानों में देखी जा सकती है जहाँ एक ही परिवार के कई लोग दुकान में इसलिए काम कर रहे होते हैं क्योंकि उनके पास करने को और कोई काम नहीं है।

ऐसे में देखने पर लगता है कि हर किसी को रोजगार मिला हुआ है लेकिन असलियत कुछ और होती है। ऐसी स्थिति को प्रच्छन्न बेरोजगारी या छुपी हुई बेरोजगारी कहते हैं।

शिक्षित बेरोजगार

शहरी क्षेत्रों में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या भयानक है। आजकल तो ऊँची शिक्षा वाले युवक भी (ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट) बेरोजगार बैठे हुए हैं। कुछ शोधों से पता चला है कि उच्च शिक्षा प्राप्त युवकों में अधिकांश के पास इतनी कुशलता नहीं है कि उन्हें कोई काम पर रखे। लेकिन अधिकतर शोधों से यह पता चलता है कि इसका असली दोषी मांग और आपूर्ति में असंतुलन है।

बेरोजगारी के प्रभाव

विभिन्न क्षेत्रकों में रोजगार की स्थिति

आज भी सबसे अधिक रोजगार कृषि के क्षेत्र में है। लेकिन हाल के वर्षों में कृषि में काम करने वाले लोगों का प्रतिशत घटा है। चूँकि कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार है इसलिए मौसमी बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी की समस्या बहुत अधिक है।

द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में रोजगार के इतने अवसरों का सृजन नहीं हो पाया है कि अधिशेष श्रम को रोजगार मिल पाए। द्वितीयक क्षेत्रक में लघु उद्योगों में काफी लोगों को रोजगार मिलता है क्योंकि उसमें अधिक श्रमिकों की जरूरत पड़ती है। हाल के वर्षों में, तकनीकी रूप से प्रशिक्षित लोगों को सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी रोजगार मिला है।