9 विज्ञान

खाद्य संसाधन

पशुपालन

पशुधन के प्रबंधन को पशुपालन कहते हैं। पशुपालन के अंतर्गत पशु कृषि, मुर्गी पालन, मछली पालन और मधुमक्खी पालन, आदि आते हैं।

पशु कृषि: इस काम को दो उद्देश्य से किया जाता है: दूध के लिए और कृषि कार्य के लिए। भारत में मुख्य रूप से मवेशियों की दो प्रजातियों को पाला जाता है: गाय (बॉस इंडिकस) और भैंस (बॉस बुबेलिस)। बछड़े के जन्म के बाद से जब तक मादा पशु दूध देती है उस अवधि को गुग्धस्रवण काल कहते हैं। कई विदेशी नस्लों का चुनाव उनके लंबे दुग्धस्रवण काल के लिए किया जाता है। विदेशी नस्लों और देशी नस्लों के संकरण से जो नस्ल तैयार होती है उसमें लंबे दुग्धस्रवण काल के अलावा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी होती है।

गाय तथा भैंस को सही आवास में रखा जाता है जहाँ रोशनी और हवा समुचित रूप से आती हो। फर्श के ढ़ाल को सही रखा जाता है ताकि वह साफ और सूखी रहे। दुघारु पशुओं की सही ढ़ंग से सफाई भी जरूरी होती है ताकि दूध में कोई गंदगी न पड़ जाए।

दुधारु पशु को दो तरह के आहार की जरूरत होती है। एक आहार उसके स्वास्थ्य को ठीक रखता है, जबकि दूसरा आहार दूध के उत्पादन को बढ़ाता है। पशु आहार में मोटा चारा और सांद्र को शामिल किया जाता है। सांद्र में प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व होते हैं।

पशुओं को रोगों से बचाने के लिए टीके लगाये जाते हैं। बाह्य और अंत:परजीवी की रोकथाम के लिए उचित दवाइयाँ दी जाती हैं।

मुर्गी पालन

अंडे और मांस के लिए मुर्गी पालन किया जाता है। अंडे देने वाली मुर्गी को लेयर कहते हैं। मांस के लिए पाली जाने वाली मुर्गी को ब्रॉयलर कहते हैं। नई किस्में बनाने के लिए देशी किस्म (एसिल) और विदेशी किस्म (लेगहॉर्न) का संकरण कराया जाता है। मुर्गियों में निम्नलिखित गुण अच्छे माने जाते हैं।

लेअर: इन चूजों को विटामिन से प्रचुर आहार दिया जाता है।

ब्रॉयलर: इन चूजों को प्रोटीन और वसा से प्रचुर आहार दिया जाता है।

मुर्गी फार्म में साफ सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है ताकि कोई बीमारी न फैल जाए। जरूरत पड़ने पर उनका टीकाकरण भी होता है।

मछली उत्पादन

मछलियाँ समुद्री जल और ताजे पानी में पाई जाती हैं। इन दोनों ही स्रोतों से मछलियाँ पकड़ी जाती हैं और इनमें मछली संवर्धन (मछली पालन) भी किया जाता है।

समुद्री मत्स्यकी

भारत में सबसे अधिक प्रचलित समुद्री मछलियाँ हैं पॉमफ्रेट, मैकरेल, टूना, सार्डीन और बॉम्बे डक। समुद्र से मछलियाँ पकड़ने के लिए तरह तरह की जाल और नावों का उपयोग किया जाता है। खुले समुद्र में मछलियों के बड़े समूह का पता लगाने के लिए सैटेलाइट और सोनार की मदद ली जाती है।

कुछ समुद्री मछलियों का जल संवर्धन भी किया जाता है। उदाहरण: मुलेट, भेटकी, पर्लस्पॉट, आदि। इसके अलावा झींगा, मस्सल और ओएस्टर का भी संवर्धन किया जाता है।

अंत:स्थली मत्स्यकी

अंत:स्थली मत्स्यकी ताजे जल के स्रोत में की जाती है, जैसे नाले, नदी, पोखर या तालाब में। जिन स्थानों पर खारे और ताजे जल का मिश्रण होता है वहाँ भी मछली संवर्धन किया जाता है, जैसे कि नदी के मुहाने पर और लैगून में। कभी कभी धान के खेत में भी मछली पालन किया जाता है।

मिश्रित मछली संवर्धन तंत्र: इस विधि से मछली उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। इस विधि में कई प्रकार की मछलियों को एक साथ पाला जाता है।

इस तंत्र में एक ही तालाब में मछलियों की 5 या 6 स्पेशीज का प्रयोग होता है। यह ध्यान रखा जाता है कि विभिन्न स्पेशीज में आहार के लिए प्रतिस्पर्धा न हो। कतला मछली जल की सतह से भोजन लेती है। रोहु मछली तालाब के बीच वाले हिस्से से भोजन लेती है। मृगल और कॉमन कार्प तालाब की तली से भोजन लेती है। ग्रास कार्प खर-पतवार खाती है। इस तरह से अलग अलग किस्म की मछलियाँ भोजन के लिए एक दूसरे को परेशान नहीं करती हैं।

अच्छी क्वालिटी के अंडों का उपलब्ध न होना मिश्रित मछली पालन की सबसे बड़ी समस्या है। इनमें से कई मछलियाँ केवल वर्षा ऋतु में ही जनन करती हैं। वैज्ञानिक इस बात के प्रयास कर रहे हैं कि हॉर्मोन की मदद से इन मछलियों का संवर्धन किया जा सके।

मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी से हमें शहद और मोम मिलते हैं। मधुमक्खी की देशी किस्मों के नाम हैं:

इसके अलावा इटली-मक्खी (ऐपिस मेलीफेरा) का भी प्रयोग किया जाता है। ऐपिस मेलीफेरा में मधु एकत्र करने की बहुत अधिक क्षमता होती है और यह डंक भी कम मारती है। यह अपने छत्ते में लंबे समय तक रहती है और तेजी से प्रजनन करती है। इसलिए इस किस्म की मधुमक्खी को व्यावसायिक मधु उत्पादन के लिए विशेष रूप से चुना जाता है।

मधु की गुणवत्ता और कीमत चरागाह पर निर्भर करती है क्योंकि जिन फूलों से मधुमक्खी मकरंद इकट्ठा करती है मधु की क्वालिटी उन्हीं पर निर्भर होती है।