9 समाज शास्त्र

रूसी क्रांति

1917 की फरवरी में राजतंत्र के खात्मे से लेकर अक्तूबर तक की घटनाओं को रूसी क्रांति का नाम दिया जाता है।

रूसी साम्राज्य

1914 में रूस पर जार निकोलस II का शासन था। आज के फिनलैंड, लैटविया, लिथुआनिया इस्टोनिया, पोलैंड के कुछ भाग, यूक्रेन और बेलारुस ये सभी रूसी साम्राज्य के अंग थे। रूसी साम्राज्य प्रशांत महासागर तक फैला हुआ था और इसमें सेंट्रल एशिया के कई आधुनिक देश, और जॉर्जिया, आर्मेनिया और अजरबैजान भी शामिल थे|

रूसी साम्राज्य में ऑर्थोडॉक्स क्रिस्चिनियाटी को मानने वाले बहुमत में थे और साथ में कैथोलिक, प्रोटेस्टैंट, मुसलमान और बौद्ध भी रहते थे।

अर्थव्यवस्था और समाज

बीसवीं सदी की शुरुआत में रूसी साम्राज्य की 85% आबादी खेती पर निर्भर थी। कुछ पॉकेट में उद्योग थे, जैसे सेंट पीटर्सबर्ग और मॉस्को में। उत्पादन का ज्यादातर हिस्सा करीगर ही करते थे लेकिन बड़ी फैक्ट्रियाँ भी थीं। अधिकतर कारखाने 1890 के दशक में खुले थे। इस दौरान रूस में रेल का विस्तार हुआ और उद्योगों में विदेशी निवेश बढ़ा।

अधिकतर कारखाने निजी लोगों के अधीन थे। बड़े कारखानों पर सरकार नजर रखती थी ताकि न्यूनतम मजदूरी और काम के घंटे के नियमों का पालन हो। लेकिन नियम आसानी से तोड़े जाते थे। कई बार मजदूरों को एक दिन में 15 घंटे तक काम करना पड़ता था। मजदूरों के रहने के लिए कमरों या डॉर्मिटरी की व्यवस्था होती थी।

मजदूर

मजदूरों के समाज में अलग अलग समूह थे। कुछ की जड़े उनके मूल गाँवों से जुड़ी हुई थीं तो कुछ हमेशा के लिए शहर में बस चुके थे। कुशलता के हिसाब से मजदूरों की अलग-अलग श्रेणी थी जिसमें धातुकर्मी को सबसे उच्च श्रेणी का माना जाता था। मजदूरों की पोशाक और उनके लहजे से भी इन विविधताओं का पता चल जाता था।

इन विविधताओं के बावजूद जब कभी भी जरूरत होती तो मजदूर अपनी एकता दिखाते थे और हड़ताल करते थे। 1896-1897 में कपड़ा उद्योग में ऐसे कई हड़ताल हुए और धातु उद्योग में 1902 में ऐसा ही हुआ।

किसान

गाँवों में अधिकतर जमीन पर किसान ही खेती करते थे। लेकिन विशाल संपत्तियों पर सामंतों, राजशाही और ऑर्थोडॉक्स चर्च का कब्जा था। कुछेक अपवाद को छोड़ दें तो किसानों के मन में सामंतों के लिए कोई इज्जत नहीं थी। जार को दी जाने वाली सेवाओं के कारण सामंतों को सत्ता और हैसियत मिली हुई थी। रूस के किसान चाहते थे कि सामंतों की जमीन उन्हें मिल जाये। किसान अक्सर लगान देने से मना कर देते थे और जमींदारों की हत्या कर देते थे। रूस के दक्षिणी हिस्से में 1902 में ऐसी हत्याएँ बड़ी संख्या में हुई। 1905 में तो पूरे रूस में ऐसी वारदातें हुईं।

रूस के किसान समय समय पर अपनी जमीन कम्यून (मीर) को सौंप देते थे। उसके बाद कम्यून जरूरत के हिसाब से जमीन को विभिन्न परिवारों में बाँट देता था। इस तरह से रूस के किसानों के बीच साथ मिलकर काम करने की एक लंबी परंपरा थी।

रूस में समाजवाद

रूस के कुछ समाजवादियों का मानना था कि मीर को जमीन सौंपने की पुरानी परंपरा के कारण रूस के किसान प्राकृतिक रूप से समाजवाद के लिए ही बने थे। उन्हें लगता था कि मजदूरों की बजाय किसान ही उस क्रांति का आधार बनेंगे। उन्हें यह भी लगता था कि अन्य देशों की तुलना में रूस ज्यादा तेजी से समाजवादी बन सकता था।

उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में रूस के गाँवों में समाजवादी पूरी तरह सक्रिय थे। सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी पार्टी की स्थापना 1900 में हुई थी। इस पार्टी की माँग थी कि सामंतों की जमीन किसानों को दे दी जाये।

सोशल डेमोक्रैट किसानों के अधिकारों के मामले में सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी से सहमत नहीं थे। लेनिन का मानना था कि किसान समाजवादी आंदोलन का हिस्सा नहीं हो सकते थे क्योंकि उनमें एकता की कमी थी। लेनिन को लगता था कि पार्टी में अनुशासन, सदस्यों की संख्या और क्वालिटी को नियंत्रित करने की जरूरत थी।