9 समाज शास्त्र

1905 की क्रांति

पार्लियामेंट के प्रति जार की कोई जवाबदेही नहीं थी यानि वह निरंकुश था। सोशल डेमोक्रैट, सोशल रिवोल्यूशनरी और लिबरल 1905 के आंदोलन में संविधान की माँग कर रहे थे। उन्हें मुस्लिम बहुल इलाकों में जदीदियों से भी समर्थन मिल रहा था जो इस्लाम के अधुनिकीकरण की माँग कर रहे थे।

रूस के मजदूरों के लिए 1905 मुश्किलों से भरा साल रहा। जरूरी सामानों की कीमत इतनी तेजी से बढ़ी कि वास्तविक वेतन में 20% की गिरावट आ गई। मजदूरों के संगठनों में सदस्यों की संख्या बढ़ने लगी। एसेंबली ऑफ रसियन वर्कर्स का गठन 1904 में हुआ था। जब इसके चार सदस्यों को पुतीलोव आयरन वर्क्स से निकाला गया तो मजदूरों ने आंदोलन छेड़ने का ऐलान किया। कुछ ही दिनों के भीतर सेंट पीटर्सबर्ग में 110,000 से अधिक मजदूर हड़ताल पर चले गये। वे दिन के आठ घंटे की शिफ्ट, वेतन में बढ़ोतरी और कार्य स्थिति में सुधार की माँग कर रहे थे।

खूनी रविवार

उस रविवार को फादर गैपन के नेतृत्व में मजदूरों का जुलूस चल रहा था। जब जुलूस विंटर पैलेस पहुँचा पुलिस और कोसैक्स ने उनपर हमला बोल दिया। उस हादसे में 100 से अधिक मजदूर मारे गये और 300 घायल हुए। इस घटना को खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है। इस घटना से कई अन्य घटनाओं की शुरुआत हुई जिन्हें 1905 की क्रांति का नाम दिया जाता है।

पूरे देश में हड़ताल होने लगे। छात्र संगठनों ने बहिष्कार शुरु किया और विश्वविद्यालय बंद करने पड़े। वकील, डॉक्टर, इंजीनियर और अन्य मध्यम-वर्ग श्रमिकों ने मिलकर यूनियन ऑफ यूनियन बना लिया। वे एक संविधान सभा की माँग कर रहे थे।

ड्यूमा

जार ने एक निर्वाचित परामर्शदाता पार्लियामेंट (ड्यूमा) के गठन की इजाजत दे दी। इस दौरान जितने भी यूनियन और कमिटी बनी थीं उन सबको 1905 के बाद गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। बाद में ये सब अनधिकृत रूप से काम कर रहे थे।

जार ने राजनैतिक गतिविधियों पर कई तरह के रोक लगा दिये। उसने पहली ड्यूमा को 75 दिनों के भीतर बर्खास्त कर दिया और दोबारा से चुनी हुई ड्यूमा को तीन महीने के भीतर बर्खास्त कर दिया। उसके बाद जार ने वोटिंग कानूनों में बदलाव किया जिससे तीसरी ड्यूमा में कंजर्वेटिव राजनेताओं की भरमार हो गई।

प्रथम विश्व युद्ध का असर

शुरु में युद्ध काफी लोकप्रिय था और लोग जार का समर्थन कर रहे थे। लेकिन जब युद्ध खिंचने लगा तो जार ने ड्यूमा की मुख्य पार्टियों से सलाह लेने से मना कर दिया। इसलिए जार को मिलने वाला समर्थन घटने लगा।

रूसी सेना की पराजय

पूर्वी मोर्चे पर चलने वाले युद्ध और पश्चिमी मोर्चे पर चलने वाले युद्ध में अंतर था। पश्चिम में (पूर्वी फ्रांस की सीमा पर) सेना खाइयों में लड़ रही थी। पूर्वी मोर्चे पर सेना काफी आगे बढ़ चुकी थी। इसलिए पूर्वी मोर्चे पर काफी सैनिक हताहत हुए। 1914 से 1916 के बीच रूसी सेना को जर्मनी और ऑस्ट्रिया के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा। 1917 तक 70 लाख से अधिक लोग मारे जा चुके थे।

जब रूसी सेना पीछे हटने लगी तो उसने रास्ते में पड़ने वाले मकानों और फसलों को तबाह कर दिया। इस तबाही के कारण रूस में 30 लाख लोग शरणार्थी हो गये। इससे जार की छवि को काफी नुकसान पहुँचा। अब सैनिक ऐसी लड़ाई नहीं लड़ना चाहते थे।

उद्योग पर असर

युद्ध का उद्योग पर बुरा असर पड़ा। जर्मनी का बाल्टिक सागर पर नियंत्रण होने के कारण रूस को होने वाली आपूर्ति रुक गई। इसके कारण रूस के उद्योगों के कल पुर्जे तेजी से खराब होने लगे। 1916 तक रेलवे लाइनें खराब होने लगीं। अच्छी सेहत वाले पुरुषों को युद्ध में भेज दिये जाने के कारण मजदूरों की किल्लत होने लगी। इससे छोटे वर्कशॉप बंद होने लगे और जरूरी सामानों की किल्लत होने लगी। सेना का पेट भरने के लिए भारी मात्रा में अनाज भेजा गया। ब्रेड की दुकानों पर दंगे होना आम बात हो गई।

1917 की सर्दियों में पेत्रोग्राद में स्थिति काफी गंभीर थी। मजदूरों के घरों में भोजन की किल्लत थी। उस साल सर्दी भी बहुत पड़ी थी।

फरवरी क्रांति

22 फरवरी को नेवा नदी के दाहिने किनारे पर स्थित एक फैक्ट्री में तालाबंदी हो गई। अगले दिन पचास फैक्ट्रियों के मजदूर हड़ताल पर चले गये। कई कारखानों में हड़ताल की अगुवाई महिलाएँ कर रही थीं। प्रदर्शनकारी फैक्ट्री क्वार्टर से निकलकर राजधानी के केंद्र में स्थित नेवस्की प्रोस्पेक्ट पहुँच गये। इस आंदोलन को कोई राजनैतिक पार्टी नहीं चला रही थी। सरकार ने कर्फ्यू लगा दिया और शाम तक प्रदर्शनकारी वापस चले गये। लेकिन 24 और 25 तारीख को वे वापस आये। उनपर नजर रखने के लिए पुलिस और घुड़सवार सैनिकों को तैनात कर दिया गया। 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को सस्पेंड कर दिया। 26 फरवरी को प्रदर्शनकारी और बड़ी संख्या में नेवा नदी के बायें किनारे पर इकट्ठा हो गये। 27 फरवरी को पुलिस मुख्यालय पर तोड़फोड़ की गई।

सरकार ने नियंत्रण करने के लिए घुड़सवार दस्ते को बुलाया लेकिन घुड़सवारों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। एक रेजिमेंट के ऑफिसर को गोली मार दी गई और तीन अन्य रेजिमेंट के सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया और प्रदर्शनकारियों के समर्थन में खड़े हो गये। 27 फरवरी को सिपाही और मजदूर सोवियत (काउंसिल) बनाने के लिए उसी भवन में एकत्रित हुए जहाँ ड्यूमा की बैठक होती थी। यहीं से पेत्रोग्राद सोवियत का जन्म हुआ। 28 फरवरी को जार से मिलने एक प्रतिनिधि मंडल पहुँचा। सेना की सलाह पर जार ने 2 मार्च को सत्ता छोड़ दी। सोवियत नेताओं और ड्यूमा के नेताओं ने मिलकर एक अंतरिम सरकार बनाई। इस तरह से 1917 की फरवरी क्रांति ने रूस में राजतंत्र को खत्म कर दिया।

फरवरी के बाद

अंतरिम सरकार ने चुनी हुई सरकार बनाने की दिशा में काम शुरु कर दिया। सार्वजनिक सभाओं और संगठनों पर से प्रतिबंध हटा लिए गये। हर जगह सोवियत का गठन हुआ लेकिन उसके लिए चुनाव का कोई एक जैसा सिस्टम नहीं इस्तेमाल हुआ।

लेनिन की वापसी

निर्वासित बोल्शेविक नेता लेनिन 1917 के अप्रैल महीने में वापस रूस आ गये। लेनिन की तीन माँगें थीं जिन्हें अप्रैल थीसिस कहा जाता है। लेनिन ने कहा कि युद्ध समाप्त कर दिये जायें, जमीन किसानों को दे दी जाये और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाये। बोल्शेविक पार्टी के नये रैडिकल उद्देश्यों को दर्शाने के उद्देश्य से उन्होंने इसका नाम बदल कर कम्यूनिस्ट पार्टी रखने की सलाह दी।

बोल्शेविक पार्टी में अधिकतर लोगों को लगता था कि समाजवादी क्रांति के लिए अभी उचित समय नहीं था। वह चाहते थे कि अंतरिम सरकार कुछ दिन और काम करे। लेकिन आने वाले महीनों में जो कुछ हुआ उससे उनका दिमाग भी बदल गया।

गर्मियों में मजदूरों का आंदोलन और फैल गया। औद्योगिक क्षेत्रों में ट्रेड यूनियन की संख्या बढ़ गई। सेना में सैनिकों की कमिटी बनी। जून के महीने में ऑल रसियन कॉन्ग्रेस ऑफ सोवियत में सोवियत से 500 प्रतिनिधि भेजे गये।

इन गतिविधियों से अंतरिम सरकार को लगने लगा कि उसकी शक्तियाँ कम हो गईं और बोल्शेविक का प्रभाव बढ़ गया। अंतरिम सरकार ने कड़े कदम उठाने का फैसला कर लिया। 1917 की जुलाई में बोल्शेविक द्वारा किए जा रहे प्रदर्शनों को कठोरता से कुचल दिया गया। कई बोल्शेविक नेता जमींदोज हो गये और कई भाग गये। किसान और उनके सोशल रिवोल्यूशनरी नेता जमीन के पुन:वितरण की माँग करने लगे। 1917 की जुलाई और सितंबर के बीच किसानों ने जमीन हथिया ली।