8 विज्ञान

चंद्रमा की कलाएँ

खगोलीय पिंड: ब्रह्मांड में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले किसी भी पिंड को खगोलीय पिंड कहते हैं। तारे, ग्रह, उपग्रह, धूमकेतु, आदि खगोलीय पिंड के उदाहरण हैं।

चंद्रमा हमारी पृथ्वी का इकलौता प्राकृतिक उपग्रह है। ब्रह्मांड में यह हमारा निकटतम पड़ोसी है। पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी लगभग 400,000 किलो मीटर है। पृथ्वी का आकार चंद्रमा से 81 गुना बड़ा है। चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं है। इसकी सतह पर बड़े-छोटे गड्ढ़े और पर्वत हैं। चंद्रमा के कुछ पर्वत तो पृथ्वी के सबसे ऊँचे पर्वतों से भी ऊँचे हैं।

चंद्रमा की आकृति हर दिन बदलती रहती है। चंद्रमा की विभिन्न आकृतियों को चंद्रमा की कलाएँ कहते हैं। चंद्रमा लगभग 29 दिनों में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है। इस अवधि को लूनर (चंद्र) कैलेंडर का एक महीना माना जाता है।

अमावस्या: जिस रात को आकाश में चाँद दिखाई नहीं देता है उसे अमावस्या कहते हैं।

बालचंद्र: अमावस्या के एक दो दिन बाद चंद्रमा किसी हँसिया की तरह दिखता है। इसे बालचंद्र कहते हैं।

पूर्णिमा: अमावस्या के 15 दिनों के बाद चंद्रमा किसी पूरे वृत्त की तरह दिखता है। इसे पूर्णिमा का चाँद कहते हैं।

चंद्रमा की कलाओं का कारण

चंद्रमा जितने दिनों में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है, उतने ही दिनों में अपनी धुरी पर भी एक चक्कर लगाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो चंद्रमा के घूर्णन और परिक्रमा में बराबर समय लगता है। इसलिए पृथ्वी पर से चंद्रमा की सतह का एक ही हिस्सा दिखाई देता है। इसलिए जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी होती है और तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं तो पूर्णिमा का चाँद नजर आता है। ऐसे में चंद्रमा का वह पूरा हिस्सा दिखाई देता है जो सूर्य की रोशनी में रहता है। जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा होता है और तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं तो अमावस्या होती है यानि चाँद दिखाई नहीं देता है। ऐसे में चंद्रमा का वह हिस्सा पृथ्वी से दिखाई देता है जो सूर्य की रोशनी में नहीं होता है।

प्रकाश वर्ष

तारों के बीच की दूरी और विभिन्न आकशगंगाओं के बीच की दूरी इतनी अधिक होती है कि उसे किलोमीटर में व्यक्त करना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए हमें किसी अधिक सहूलियत वाली इकाई की जरूरत पड़ती है। इतनी अधिक दूरियों के लिए प्रकाश वर्ष नामक यूनिट का प्रयोग होता है। प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गई दूरी को एक प्रकाश वर्ष कहते हैं।

सूर्य के प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिनट लगते हैं। इसका मतलब है कि सूर्य हमसे 8 प्रकाश मिनट की दूरी पर है। जब इसकी तुलना अल्फा सेंटॉरी से करते हैं तो वह हमसे 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है।

एस्ट्रोनोमिकल यूनिट: सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी को एक एस्ट्रोनोमिकल यूनिट कहते हैं। इस यूनिट द्वारा सूर्य से विभिन्न ग्रहों की दूरी को व्यक्त करना आसान हो जाता है।

तारे

तारा एक विशाल खगोलीय पिंड है। तारों में बहुत ही गर्म गैसें भरी होती हैं इसलिए तारों से प्रकाश और ऊष्मा निकलती है। पृथ्वी से सबसे नजदीक वाला तारा सूर्य है। यह धरती से 150,000,000 (150 बिलियन) किलो मीटर दूर है। अगला सबसे नजदीकी तारा है अल्फा सेंटॉरी, जो 40,000,000,000,000 (चालीस ट्रिलियन) किलोमीटर की दूरी पर है।

तारों, सूर्य और चांद की आकाश में गति

जब आकाश में देखेंगे तो आपको तारे, सूर्य और चांद पूरब से पश्चिम की ओर चलते हुए दिखाई देंगे। हम जानते हैं कि पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। इसलिए हमें ऐसा लगता है कि सूर्य, चंद्रमा और तारे पूर्व से पश्चिम की ओर चल रहे हैं। यह भ्रम वैसे ही है जैसे चलती रेलगाड़ी में बैठने पर लगता है कि प्लेटफॉर्म, पेड़, बिजली के खंभे, आदि पीछे की ओर भाग रहे हैं।

ध्रुव तारा

ध्रुव तारा आकाश में एक ही जगह स्थिर दिखाई देता है। ऐसा इसलिए होता है कि ध्रुव तारा हमारी पृथ्वी के अक्ष की रेखा में स्थित है। ध्रुव तारा उत्तर दिशा में रहता है और इसे केवल उत्तरी गोलार्ध में देखा जा सकता है। ध्रुवतारे ने अपनी अनूठी स्थिति के कारण सदियों से इंसानों की मदद की है। नाविक और यात्री ध्रुवतारे को देखकर दिशा का पता लगाते थे।

तारामंडल

तारों के कुछ समूह कुछ खास आकृतियों की तरह दिखते हैं। इन्हें तारामंडल कहते हैं। इंसानों में अमूर्त चीजों में चेहरे और आकृतियाँ ढ़ूँढ़ने की काबलियत होती है। हम बादल, धुआँ, आदि में कोई न कोई आकृति बना लेते हैं। अपनी इसी हुनर के कारण इंसानों ने कई तारामंडलों को काल्पनिक आकृति दी और उनका नामकरण किया। विभिन्न तारमंडलों के नाम अलग-अलग संस्कृतियों में अलग-अलग होते हैं। इसे समझने के लिए राशियों का उदाहरण लेते हैं। इन बारह राशियों के हिंदी नाम हैं, मेष, वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर, धनु, कुंभ और मीन। अंग्रेजी में इसी क्रम में इनके नाम हैं एरीस, टॉरस, जेमिनी, कैंसर, वर्गो, लियो, लिब्रा, स्कॉर्पियो, कैप्रीकॉर्न, सैजिटैरियस, एक्वैरियस और पाइसीज

The Big Dipper

सप्तर्षि: इस तारामंडल में सात मुख्य तारे होने के कारण इसे सप्तर्षि कहते हैं। इन पौराणिक ऋषियों के नाम हैं, मरीचि, वशिष्ठ, श्रृंगिरस, अत्रि, ऋतु, पुलह और पुलस्त्य। इसे अर्सा मेजर और बिग डिप्पर भी कहा जाता है। यह कलछी की आकृति का दिखता है इसलिए इसे बिग डिप्पर कहते हैं। इस तारामंडल के चार तारे एक चतुर्भुज बनाते हैं जो कलछी की कटोरी बनती है और बाकी के तीन तारे कलछी का हैंडल बनाते हैं। सप्तर्षि उत्तर में दिखाई देता है। इसके चतुर्भुज के आखिरी दो तारे ध्रुवतारे के साथ सीधी रेखा में होते हैं। ध्रुवतारे के काफी नजदीक होने के कारण यह ध्रुवतारे का चक्कर लगाता हुआ प्रतीत होता है।

ओरायन: इसे शिकारी भी कहते हैं। इस तारामंडल के तीन सबसे स्पष्ट दिखने वाले तारे शिकारी की बेल्ट बनाते हैं। यह गर्मी के मौसम में दक्षिण के आकाश में दिखाई देता है।