8 विज्ञान

मित्र जैसे सूक्ष्मजीव

कई सूक्ष्मजीव हमारे लिए मित्र जैसे होते हैं। ये सूक्ष्मजीव हमारे बहुत काम आते हैं। सूक्ष्मजीव की मदद से दूध से दही जमता है, एंटीबायोटिक बनते हैं, खेती में मदद मिलती है और वैक्सीन यानि टीका भी बनता है। सूक्ष्मजीवों से और भी कई फायदे होते हैं, जिनके बारे में नीचे बताया गया है।

लैक्टोबेसाइलस एक बैक्टीरिया है। यह दूध को दही में बदल देता है।

फर्मेंटेशन

यीस्ट एक फंजाई है। यह खाद्य पदार्थों के किण्वन (फर्मेंटेशन) में मदद करती है। सूक्ष्मजीवों द्वारा अवायवीय श्वसन (एन-एयरोबिक रेस्पिरेशन) के कारण शुगर के अल्कोहल में बदलने की प्रक्रिया को किण्वन या फर्मेंटेशन कहते हैं।

जब केक, इडली या पकौड़े के घोल में यीस्ट मिलाई जाती है, तो यीस्ट द्वारा श्वसन के कारण कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है। कार्बन डाइऑक्साइड गैस के बुलबुले से आटे या घोल का आयतन बढ़ जाता है। इससे फूले हुए केक, इडली, डोसा, आदि बनते हैं।

फलों के रस, गन्ने के रस या फिर अनाज के फर्मेंटेशन से अल्कोहल बनता है। इस प्रक्रिया के इस्तेमाल से शराब, बीयर और अन्य अल्कोहल उत्पाद बनाए जाते हैं।

एंटीबायोटिक

जो पदार्थ बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकता है या बैक्टीरिया को मारता है उसे प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक कहते हैं।

एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1929 में पेनिसिलिन नामक एंटीबायोटिक की खोज की थी। अपने एक प्रयोग के दौरान फ्लेमिंग ने देखा कि एक कल्चर में जहाँ एक फंगस (पेनिसिलियम नोटेटम) था वहाँ बैक्टीरिया नहीं पनप रहे थे। इस तरह से पेनिसिलियम से पेनिसिलिन को बनाया गया। पेनिसिलिन से कई मुश्किल रोगों के उपचार में मदद मिली। आजकल इस्तेमाल होने वाले ज्यादातर एंटिबायोटिक पेनिसिलिन के ही बदले हुए रूप हैं, जैसे एमॉक्सिसिलिन, सेफोटैक्सिम, सेफोपेराजोन, सेफ्युरॉक्साइम, सेफ्टाजिडीम, आदि। एंटिबायोटिक के कुछ अन्य उदाहरण हैं, टेट्रासाइक्लिन, नॉरफ्लॉक्सासिन, सिप्रोफ्लॉक्सासिन, डॉक्सिसाइक्लिन, आदि।

वैक्सीन

हमारे शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता होती है। हमारा शरीर, शरीर में आने वाले रोगाणुओं से लड़ने के लिए एंटीबॉडी (प्रतिजीवी) बनाता है। जब ऐसा होता है तो हमारा शरीर इस बात को याद कर लेता है कि भविष्य में उस रोगाणु से कैसे लड़ा जाए। कई रोगों से बचाव के लिए वैक्सीन बनाने में इसी सिद्धांत का इस्तेमाल होता है।

वैक्सीन को किसी रोगाणु के मृत या निष्क्रिय नमूने से बनाया जाता है। जब वैक्सीन शरीर में जाता है तो शरीर उसके खिलाफ एंटीबॉडी बना लेता है। इस तरह भविष्य में उस रोगाणु लड़ने के तरीके को हमारा शरीर याद कर लेता है।

ब्रिटेन के वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर ने 1798 में चेचक का टीका बनाया था। एडवर्ड जेनर ने गौर किया कि जो लोग गाय पालते थे उन्हें चेचक नहीं होता था। इसी आधार पर चेचक के टीके की खोज हुई थी।

आज कई बीमारियों से बचाने के लिए वैक्सीन उपलब्ध है, जैसे चेचक, टीबी, पोलियो, टेटनस, डिप्थीरिया, कुकुरखांसी, हेपेटाइटिस, आदि। अब तो कोविड-19 से बचाव के लिए भी वैक्सीन आ गई है।

पल्स पोलियो

पोलियो

यह वायरस से होने वाली बीमारी है जिसमें रीढ़ में मौजूद तंत्रिकाएँ खराब हो जाती हैं। इससे पेशियाँ कमजोर हो जाती हैं और लकवा मार देता है। पोलियो का असर सबसे अधिक पैरों में होता है। पोलियो बच्चों को प्रभावित करता है इसलिए इसे इंफैंटाइल पैरालिसिस (नवजात का लकवा) कहते हैं। पोलियो के टीके से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है।

पल्स पोलियो

भारत से पोलियो को समाप्त करने के लिए यूनाइटेड नेशन और भारत सरकार ने मिलकर पल्स पोलियो अभियान चलाया था। इस अभियान में पाँच वर्ष से कम की आयु के हर बच्चे को पोलियो ड्रॉप दिया जाने लगा। पल्स पोलियो काफी सफल हुआ और आज भारत पोलियो मुक्त हो चुका है।

मिट्टी की उर्वरता

कुछ बैक्टीरिया और ब्लू-ग्रीन एल्गी (नील-हरित शैवाल) वायुमंडल के नाइट्रोजन का मिट्टी में स्थिरीकरण करते हैं। राइजोबियम बैक्टीरिया, फलीदार पौधों की जड़ों की गाँठों में रहते हैं और मिट्टी में नाइट्रोजन फिक्सेशन में मदद करते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है।

पर्यावरण की सफाई

कई सूक्ष्मजीव अपना भोजन मृत अवशेषों से लेते हैं। इस तरह से सूक्ष्मजीव, अपघटक की भूमिका निभाते हैं। हमारे पर्यावरण में जैविक कचरे को साफ करने में सूक्ष्मजीवों से बड़ी मदद मिलती है। यदि अपघटन करने के लिए सूक्ष्मजीव न हों तो फिर चारों ओर मरे हुए जानवर, मीट और मछली की दुकान का कचरा, सब्जी मंडी का कचरा, आदि के ढ़ेर लग जाएंगे।