8 विज्ञान

प्रजातियों के प्रकार और संरक्षण

विशेष क्षेत्री प्रजाति (Endemic Species)

जो प्रजाति केवल किसी विशेष क्षेत्र में पाई जाती है उसे विशेष क्षेत्री प्रजाति कहते हैं। पचमढ़ी बायोस्फेयर रिजर्व में पाई जाने वाली ऐसी प्रजातियाँ हैं साल, जंगली आम, बाइसन, विशाल गिलहरी और उड़ने वाली गिलहरी। विशेष क्षेत्री प्रजाति पर अधिक खतरा रहता है क्योंकि ये और कहीं नहीं पाई जाती है।

संकटापन्न प्रजाति (Endangered Species)

जिस प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा बना रहता है उसे संकटापन्न प्रजाति कहते हैं। उदाहरण: हाथी, शेर, जंगली भैंस, आदि।

विलुप्त प्रजाति (Extinct Species)

जो प्रजाति अब इस पृथ्वी पर नहीं पाई जाती है उसे विलुप्त प्रजाति कहते हैं। उदाहरण: डायनोसॉर, डोडो, आदि।

पारितंत्र (Ecosystem): किसी क्षेत्र में सजीव और निर्जीव के बीच एक दूसरे पर आश्रित होने के सिस्टम को पारितंत्र कहते हैं।

रेड डाटा बुक

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने रेड डाटा बुक की शुरुआत की थी। इस किताब में सभी संकटापन्न प्रजाति का रेकॉर्ड रहता है। समय समय पर हर देश अपने हिसाब से रेड डाटा बुक निकालता है।

प्रोजेक्ट टाइगर

भारत में बाघों के संरक्षण के उद्देश्य से 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई थी। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य है बंगाल टाइगर का संरक्षण करना। आज इस प्रोजेक्ट पर किये गए प्रयासों के कारण भारत में बाघों की जनसंख्या 2,000 से अधिक है।

प्रवास: विपरीत परिस्थियों से बचने के लिए जंतुओं द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा तय करने के काम को प्रवास कहते हैं। विपरीत परिस्थितियों से बचने के लिए कई पक्षी और जानवर हजारों किलोमीटर की यात्रा करते हैं। साइबेरियन क्रेन सर्दियों के मौसम में साइबेरिया से भारत चले आते हैं ताकि साइबेरिया के कड़ाके ठंड से बच सकें।

कागज का पुन:चक्रण: कागज बनाने के लिए कच्चा माल पेड़ों से मिलता है। कागज की जितनी अधिक खफत होती है उतनी ही तेजी से पेड़ काटने की जरूरत होती है। यदि हम समझदारी से कागज का इस्तेमाल करें तो पेड़ों की कटाई को बहुत हद तक रोका जा सकता है। कागज का पुन:चक्रण इस दिशा में एक अच्छा कदम साबित होता है।

पुनर्वनरोपण: वन को फिर से हरा भरा करने के लिए पेड़ लगाने के काम को पुनर्वनरोपण कहते हैं। यह काम प्राकृतिक रूप से भी होता है और इंसानों द्वारा भी किया जाता है।

इंडियन फॉरेस्ट (कन्जर्वेशन) एक्ट: यह एक्ट 1927 में लागू हुआ था। इस एक्ट का उद्देश्य है वनों का संरक्षण और वनों में और उनके नजदीक रहने वाले लोगों की मूल जरूरतों को पूरा करना।